Translate

Thursday, April 25, 2019

प्रेम के प्रतीक चिन्ह के 70 साल


राज कपूर की फिल्मों के प्रशंसकों को दो चीजें याद हैं। पहली ये कि राज कपूर की हर फिल्म की शुरूआत पृथ्वीराज कपूर के भगवान शंकर के पूजन से होती थी। इसकी वजह ये कि पूरा कपूर खानदान भगवान शिव का अनन्य भक्त रहा। दूसरी महत्वपूर्ण और आवश्यक उपस्थिति आर के फिल्म्स का लोगो। ये लोगो इस मायने में ऐतिहासिक है कि इसमें राजपूर और नर्गिस हैं। आज से सत्तर साल पहले एक फिल्म रिलीज हुई थी बरसात। फिल्म बरसात राजकपूर की वो फिल्म थी जिससे पहली बार राजकपूर ने सफलता का स्वाद चखा था। इस फिल्म में एक सीन जहां राजकूपर वायलिन बजा रहे होते हैं। फिल्म की नायिका नर्गिस तेजी से उनकी ओर आती है और उनकी बांहों में झुक जाती है। राज कूपर के एक हाथ में वॉयलिन और दूसरे में गरिमापूर्ण तरीके से पीछे की ओर झुकी हुई नर्गिस। राज कपूर ने शूटिंग खत्म होने के बाद जब इस सीन को कई बार फ्रीज करके देखा । फिर इस सीन की फोटो निकलवाई गई। उनको ये सीन इतना पसंद आया कि फिल्म बरसात के इस दृष्य को अपनी फिल्म कंपनी का लोगो बना लिया। राज कपूर ने एक साक्षात्कार में कहा भी था कि उनको इस तस्वीर को देखने के बाद लगा था कि ये समग्र सृजन की प्रतिनिधि तस्वीर है लिहाजा उन्होंने इसको अपनी फिल्म स्टूडियो का लोगो बनाने का फैसला लिया। जब 1949 में फिल्म बरसात रिलीज हुई थी तो उसके पोस्टर पर भी इसी सीन को लगाकर प्रचारित किया गया था।
राज कपूर को इस सीन में समग्र सृजनात्मकता दिखाई देती है लेकिन कई फिल्म इतिहासकार इसको संगीत और प्यार का ऐसा तराना मानते हैं जिसने इसके बाद की राज कपूर की सभी फिल्मों को बहुत गहरे तक प्रभावित किया। 1949 की फिल्म बरसात के पहले राजकपूर और नर्गिस फिल्म आग में काम कर चुके थे लेकिन ये फिल्म बरसात ही थी जिसने राज कपूर और नर्गिस के संबंधों को गाढ़ा किया था। जब फिल्म बरसात के निर्माण के समय राज कपूर के पास पैसे नहीं बचे और लगा कि अब फिल्म आगे नहीं बढ़ पाएगी तो नर्गिस ने अपने सोने के कंगन बेचकर राज कपूर को फिल्म बनाने के लिए पैसे दिए थे। फिल्म बरसात इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि बतौर संगीतकार शंकर-जयकिशन की ये पहली फिल्म थी। शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी पहली बार गीतकार के तौर पर दर्शकों के सामने थे। राज कपूरे कि फिल्मों में लता मंगेशकर के गाने की शुरूआत भी फिल्म बरसात से ही होती है। एक और बेहद रोचक तथ्य इस फिल्म से जुड़ा है । नर्गिस की मां जद्दनबाई राज कपूर और नर्गिस की बढ़ती नजदीकी से इतनी चिंतित थी कि उन्होंने फिल्म बरसात की शूटिंग के लिए नर्गिस के कश्मीर जाने से मना कर दिया था। मजबूरी में राज कपूर को कई दृष्य महाबलेश्वर में फिल्माने पड़े थे। सत्तर साल की लंबी अवधि के बाद भी फिल्म बरसात में रोमांस और प्रेम की तीव्रता के चित्रण को कम ही फिल्मों ने टक्कर दी है।

2 comments:

Vartika Nanda said...

बहुत ही सुंदर। सटीक। आज मुझे वो दोपहर याद आ गई जब मैं पहली बार पुणे से मुंबई एक गाड़ी से गई थी ताकि दिल्ली आने से पहले आरके स्टूडियो को कम से कम बाहर से ही देख सकूं। बरसात ने फिल्मों की दुनिया में एक परंपरा की शुरुआत की थी। आपने इस कथा को लिखकर बहुत भला काम किया। बधाई। शुक्रिया।

Vartika Nanda said...

बहुत ही सुंदर। सटीक। आज मुझे वो दोपहर याद आ गई जब मैं पहली बार पुणे से मुंबई एक गाड़ी से गई थी ताकि दिल्ली आने से पहले आरके स्टूडियो को कम से कम बाहर से ही देख सकूं। बरसात ने फिल्मों की दुनिया में एक परंपरा की शुरुआत की थी। आपने इस कथा को लिखकर बहुत भला काम किया। बधाई। शुक्रिया।