नरेन्द्र मोदी ने 2014 में जब प्रधानमंत्री के
तौर पर देश की बागडोर संभाली तो संस्कृति मंत्रालय को लेकर खूब चर्चा होती रही।
उनके पहले कार्यकाल के शुरुआती दो वर्षों में संस्कृति मंत्रालय के काम और उसके अधीन
संस्थाओं में हुई नियुक्तियों को लेकर भी सवाल उठे। इस तरह की बातें भी हुईं कि राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को इन संस्थाओं में बिठाया जा रहा है। इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय कला केंद्र में हुई नियुक्तियों पर तो सीताराम येचुरी तक ने सवाल खढ़े
किए थे। लगातार सवाल उठते रहने का नतीजा यह हुआ कि मंत्रालय यथास्थितिवाद की राह
पर चल पड़ा। फैसले लगभग बंद हो गए। जो जैसा चल रहा है चलने दो की प्रवृत्ति हावी
हो गई। नियुक्तियां बहुत कम हो गईं। संस्कृति मंत्रालय के अधीन कई संस्थाओं के
अध्यक्ष और निदेशकों की नियुक्तियां नहीं हुईं। तदर्थ व्यवस्था से संस्थाएं
संचालित होती रहीं। पता नहीं कब से राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में कार्यकारी
चेयरमैन हैं। महीनों से इस संस्था में निदेशक का पद खाली है। दूसरे कार्यकाल में
संस्कृति मंत्रालय में नए मंत्री आए, वो सक्रिय भी दिख रहे हैं लेकिन नई सरकार के
गठन के साढे चार महीने बीतने के बाद भी उपरोक्त पध खाली पड़े हैं।
इस बीच कैबिनेट सचिवालय ने एक अधिसूचना जारी की
जिसके मुताबिक पूर्व नौकरशाह राघवेन्द्र सिंह को संस्कृति से संबंधित महती
जिम्मेदारी सौंपी गई । राघवेन्द्र सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर हैं और
संस्कृति मंत्रालय और वस्त्र मंत्रालय में सचिव रह चुके है। राघवेन्द्र सिंह को
संस्कृति मंत्रालय में सीईओ-डीएमसीएस ( डेवलपमेंट ऑफ म्यूजियम और कल्चरल स्पेसेज)
की जिम्मेदारी दी गई है। उनको भारत सरकार के सचिव के बराबर प्रशासनिक शक्तियां दी
गई हैं और वो सीधे संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल को रिपोर्ट करेंगे। उनको
राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान, नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी, इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय कला केंद्र के अलावा उन सभी विषयों के अधिकार दिए गए हैं जो संग्रहालयों
से संबंधित हैं। उनको राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक और राष्ट्रीय संग्रहालय
संस्थान के कुलपति के तौर पर भी कार्य करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस
अधिसूचना के पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को इंदिरा गांधी
राष्ट्रय कला केंद्र और नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट का दौरा किया था। तब से ये
उम्मीद जगी थी कि प्रधानमंत्री इन कलाओं के संरक्षण आदि को लेकर गंभीर हैं। फिर
खबर आई कि लटियंस दिल्ली की सूरत बदलने की योजना पर काम हो रहा है और राघवेन्द्र
सिंह को जिस कल्चरल स्पेसेज की जिम्मेदारी दी गई है उसमें नॉर्थ ब्लॉक और साउथ
बल्क में बनने वाले म्यूजियम भी हैं।अब सवाल यह उठता है कि संस्कृति मंत्रालय के
सचिव के अधिकारों में कटौती क्यों की गई। संस्कृति मंत्रालय में उपरोक्त संस्थानों
का जिम्मेदार राघवेन्द्र सिंह को क्यों बनाया गया। कहते हैं ना कि कुछ तो वजहें रही
होंगी कोई यूं ही वेबफा नहीं होता। संस्कृति के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों और
जानकारों का मानना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय संस्कृति मंत्रालय के अफसरों के
काम-काज से संतुष्ट नहीं थे। सस्कृति मंत्री भले नए आ गए हैं लेकिन अफसरों ने अबतक
यथास्थितिवाद का रास्ता छोड़ा नहीं है। फैसलों में भी अब भी देरी हो ही रही है। सस्कृति
मंत्रालय से जुड़ी कई संस्थाओं में तो इतनी अराजकता है कि अब उसपर सिर्फ चर्चा ही
की जा सकती है क्योंकि कार्रवाई की उम्मीद लगभग खत्म सी होती जा रही है।
संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक संस्था है ललित
कला अकादमी। ललित कला अकादमी में अव्यवस्थाओं का लंबा इतिहास है। केस मुकदमे भी
खूब होते रहे हैं, अब भी चल रहे हैं। ललित कला अकादमी के दो पूर्व चेयरमैन अशोक
वाजपेयी और के के चक्रवर्ती के खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है। बीच में यहां सी एस
कृष्णा शेट्टी प्रशासक रहे। लेकिन बेहद दिलचस्प रहा मौजूदा चेयरमैन उत्तम पचारणे
की चयन प्रक्रिया। जब चेयरमैन के लिए सर्च कमेटी बनी तो उसमें जे एस खांडेराव को प्रशासक
ने नामांकित किया। सर्च कमेटी के दो अन्य सदस्यों का चयन राष्ट्रपति करते हैं
संस्कृति मंत्री की सलाह पर। संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने 22 फरवरी 2018 को
भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य और अंतराष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के
अध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे और प्रिंस ऑफ वेल्स, म्यूजियम के पूर्व निदेशक सदाशिव
वी गोरक्षकर के नाम को राष्ट्रपति को भेजने की स्वीकृति दी जिसे राष्ट्रपति ने
स्वीकार कर लिया। सर्च कमेटी बन गई। सर्च कमेटी के सदस्य विनय सहस्त्रबुद्धे ने बगैर
तिथि के एक पत्र संस्कृति मंत्रालय के तत्कालीन सचिव को भेजा जो मंत्रालय में 23
मार्च 2018 को प्राप्त हुआ। उस पत्र के माध्यम से विनय सहस्त्रबुद्धे ने संस्कृति
मंत्रालय को सर्च कमेटी की तीन रिजोल्यूशन भेजे। रिजोल्यूशन पर विनय सहस्त्रबुद्धे
के हस्ताक्षर हैं जिसमें 23 मार्च 2018 की तारीख है। दूसरे रिजोल्यूशन में विनय
सहस्त्रबुद्धे और जे एस खांडेराव के हस्ताक्षर हैं और तीसरे रिजोल्यूशन में विनय
और सदाशिव गोरक्षकर के हस्ताक्षर हैं। अब सवाल ये उठता है कि सर्च कमेटी की कोई
बैठक हुई तो तीन रिजोल्यूशन क्यों बने? अगर सर्च कमेटी की
बैठक नहीं हुई तो क्यों नहीं हुई। इसके अलावा एक और प्रश्न और उठता है कि विनय
सहस्त्रबुद्धे ने तीनों रिजोल्यूशन को अग्रसारित क्यों किया? सरकारी पत्र के मुताबिक चयन समिति के तीन सदस्य
नियुक्त किए गए थे तो फिर इसके संयोजन की जिम्मेदारी तो मंत्रालय के किसी अधिकारी
की होती या फिर ललित कला अकादमी के अफसर इसको आयोजित करते। 23 मार्च 2018 को ही मंत्रालय
को नाम मिलता है और उसी दिन राष्ट्रपति को तीनों नाम भेज दिए जाते हैं। ये उस
मंत्रालय में होता है जहां यथास्थितिवाद चरम पर है।
इस सर्च कमेटी ने तीन नामों का पैनल भेजा था, सी
एस कृष्णा शेट्टी, श्याम शर्मा और उत्तम पचारणे। कुछ वजहों से उस दौर में ललित कला
अकादमी के लिए प्रोटेम चेयरमैन की नियुक्ति कर दी जाती है। फिर सस्कृति मंत्रालय की
तत्कालीन अतिरिक्त सचिव सुजाता प्रसाद ने विनय सहस्त्रबुद्धे को पत्र लिखकर ललित
कला अकादमी के अध्यक्ष पद के लिए ताजा पैनल भेजने का अनुरोध किया। यहां तो ठीक था
कि मंत्रालय ने विनय सहस्त्रबुद्धे से अनुरोध किया तो उन्होंने पैनल का नाम भेजा। लेकिन
इस बार दो नाम बदल गए थे। श्याम शर्मा और शेट्टी की जगह हर्षवर्धन शर्मा और सुभाष
भुलकर का नाम आ गया था। उत्तम पचारणे सूची में बने रहे और उनका ही चयन भी हुआ। इस
पूरे प्रकरण में सबसे दिलचस्प है संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव (अकादमी) का 5
अगस्त 2018 को सर्च कमेटी के सदस्य एस वी गोरक्षकर के लिए एक ईमेल किया जिसमें
उनसे अनुरोध किया गया कि ‘जैसा कि फोन पर बात हुई है, रिजोल्यूशन की कॉपी, जो
इस मेल के साथ संलग्न है, पर एस गोरक्षकर के हस्ताक्षर करवा दें। हस्ताक्षरित
प्रति को वापसी मेल से भेजने की कृपा करें। इसको मोस्ट अर्जेंट समझें।‘ अब ये किस रिजोल्यूशन की बात हो रही है क्योंकि
पहले जो रिजोल्यूशन आए थे जिनमें तीन नाम सुझाए गए थे उसमें तो इनके हस्ताक्षर
हैं।
यह अकेला मामला नहीं है। ललित कला अकादमी में
स्थायी सचिव भी नहीं हैं। राजन श्रीपत फुलारी के सचिव पद छोड़ने के बाद से अस्थायी
सचिव संस्थान का कामकाज संभाल रहे हैं।
इसके पहले एक प्रभारी सचिव विशालाक्षी निगम को इसी वर्ष मई में निलंबित कर दिया
गया। 7 मई को निलंबन हुआ और 6 सितंबर को उनको ये बताया गया कि किन वजहों से उन्हें
निलंबित किया गया है, यानि करीब चार महीने बाद। इतनी तरह की अराजकताएं वहां हैं
जिसका असर ललित कलाओं पर भी पड़ रहा है। यह जानना भी दिलचस्प होगा कि पिछले सालों
में ललित कला अकादमी में कितनी प्रदर्शनियां लगीं और उससे अकादमी को कितनी आय हुई।
ललित कला अकादमी ने नया मेमोरेंडम ऑफ अडरस्टैंडिग को अंगीकार किया और उसके अनुसार गवर्निंग
बॉडी और सामान्य परिषद का गठन होना था। लेकिन अकादमी की वेबसाइट के मुताबिक अबतक
इन दोनों का गठन प्रक्रिया में है।
एक तरफ जहां प्रधानमंत्री कार्यालय संस्कृति को
लेकर बेहद गंभीर हैं। राघवेन्द्र सिंह जैसे सक्षम अधिकारियों को जिम्मेदारी दी जा
रही है वहीं दूसरी तरफ संस्कृति मंत्रालय के अधिकारी ललित कला अकादमी को लेकर इतनी
लापरवाही बरत रहे हैं जिससे वहां अराजकता बढ़ती जा रही है। इस तरह की अराजकता
सिर्फ ललित कला अकादमी में नहीं है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में भी स्थायी
चेयरमैन और निदेशक नहीं होने से भी काम-काज पर असर पड़ रहा है और तदर्थवाद का
बोलबाला है। राष्ट्रय महत्व की इन संस्थाओं को लेकर संस्कृति मंत्रालय के अफसरों
की उदासीनता पर संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल को ध्यान देकर चूलें कसनी
चाहिए। करदाताओं के पैसे की कहीं तो जवाबदेही होनी चाहिए।
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