
मुंबई में अन्ना
के अनशन से उनकी विश्वसनीयता और आंदोलन के उद्देश्य पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया था जब
बीजेपी के मुतल्लकि पूछे सवाल पर अन्ना उठकर चले गए थे और अरविंद ने भी कन्नी काट ली
थी । मुंबई के बाद आंदोलनकारियों के तेवर ढीले पड़ गए थे । बीच-बीच में अरविंद केजरीवाल
सांसदों को बुरा भला कह कर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखे थे । लेकिन टीम के बीच मनभेद
की खबरें आती रही । खबरों से बाहर होने की वजह से टीम हताश थी और इस हताशा में मीडिया
पर भी आरोप मढे जाने लगे । यह सब चलता रहा । इस बीच अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र में
मजबूत लोकायुक्त की मांग को लेकर प्रदेश भर का दौरा किया । महाराष्ट्र के दौरे पर अरविंद
केजरीवाल और टीम का कोई भी अहम सदस्य अन्ना के साथ नहीं रहा । एकाध दिन के लिए कोई
मिलने चला गया हो तो अलग बात है । वहां से अरविंद और अन्ना के बीच पहली बार एक खिंचाव,
एक दूरी दिखाई दी । कहा तो यहां तक गया कि अरविंद केजरीवाल ने जिन 15 केंद्रीय मंत्रियों
पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं उनमें विलासराव देशमुख का नाम शामिल करने पर अन्ना
को आपत्ति थी । इस वजह से वो उस प्रेस कांफ्रेंस में शामिल नहीं हुए जिसमें इन मंत्रियों
पर टीम अरविंद ने आरोप जड़े । लेकिन टीम अरविंद ने अन्ना की आपत्ति को दरकिनार करते
हुए प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों पर आरोप लगाए । अन्ना की कभी हां और कभी ना वाले बयानों
से भ्रम की स्थिति बनी । पहले मनमोहन सिंह को दोषी करार देना, फिर ठाणे में उन्हें
क्लीन चिट देने से अन्ना की स्टैंड लेने और उसपर कायम रहने पर सवाल खड़े होने लगे ।
उधर टीम अरविंद ने प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों पर हमलावर रुख जारी रखकर अन्ना हजारे
को भी एक संदेश दे दिया कि अब उनका रुख अंतिम और सर्वमान्य नहीं है । मनभेद- मतभेद
में बदला ।
रही सही कसर दिल्ली
के संसद मार्ग पर रामदेव के साथ अन्ना की गलबहियां ने पूरी कर दी । अन्ना की सबसे बड़ी
ताकत उनका नैतिक बल था । रामदेव के साथ गले लगते ही वो नैतिक बल निस्तेज हो गया । रामलीला
मैदान पर भारत माता की जय की हुंकार लगाने वाले अन्ना हजारे रामदेव के सुर में सुर
मिलाने लग गए । भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ रहे अन्ना हजारे एक ऐसे शख्स के साथ गले
लग रहे थे जिसके ट्रस्टों के खिलाफ इंकम टैक्स समेत कई सरकारी विभाग जांच कर रहा है
। जिस शख्स के ट्रस्ट पर कई एकड़ जमीन हथियाने का आरोपों पर खासा बवाल मचा था । जो
शख्स अपने एक आंदोलन के दौरान पुलिस के डर से महिलाओं के कपड़े पहनकर आंदोलन छोड़कर भागता हुआ
पकड़ा गया था । लेकिन अन्ना हजारे कह रहे थे कि उस शख्स के साथ आने से आंदोलन को ज्यादा
मजबूती मिलेगी । मंच पर बालकृष्ण भी बैटे थे जिनके फर्जी पासपोर्ट की जांच चल रही है
। उसी मंच पर बैठने से अन्ना और अरविंद केजरीवाल की साख को तगड़ा झटका लगा । अरविंद
केजरीवाल बीमारी की बात कहकर वहां से चले गए लेकिन जो नुकसान होना था वो हो गया ।
दरअसल रामदेव को
लेकर टीम अन्ना में दो धारा है । एक धारा का प्रतिनिधित्व खुद अन्ना हजारे करते हैं
और उनके साथ हैं किरण बेदी हैं जो लगातार बैठकों में रामदेव के साथ आने की वकालत करते
है । वहीं दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण हैं जिन्हें रामदेव के नाम से
ही चिढ़ है ।कई बार बैठकों में इस बात पर जमकर बहस भी हुई है । टीम में ये विभाजन बहुत साफ है । दिखता भी है । रामदेव की मंशा और राजनीति बहुत साफ है । रामदेव
अब चाहे जो भी कहें लेकिन एकाधिक बार अपने साक्षात्कार में वो यह बात स्वीकार कर चुके
हैं कि उनकी राजनीतिक महात्वाकांक्षाएं हैं । वो तो पार्टी बनाकर हर सीट से लोकसभा
चुनाव लड़ने की बात भी कह चुके हैं । जबकि अब तक टीम अन्ना चुनाव से दूर रहने की बात
करती आई है । खुद अन्ना ने भी चुनाव की राजनीति को अपने आंदोलन से अलग रखा था ।
अन्ना और रामदेव
के ताजा गठजोड़ से भ्रम और गहरा गया है । रामदेव सबसे पहले समर्थन के लिए गडकरी के
पास पहुंचते हैं जहां वो उनका पांव छूकर आशीर्वाद लेते हैं । गडकरी के पांव छूने के
अलग निहितार्थ है । रामदेव हर नेता के दर पर मत्था टेक कर काला धन के खिलाफ समर्थन
मांग रहे हैं । विडंबना देखिए कि शरद पवार और मुलायम से भी काला धन के खिलाफ लड़ाई
में रामदेव समर्थन मांग रहे हैं । जबकि भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी जंग से टीम अन्ना
ने नेताओं को दूर ही रखा था और खुद भी उनसे दूर रहे थे ।
रामदेव के साथ आने
से इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन की दिशा भटक गई है । काला धन और भ्रष्टाचार एक
दूसरे से जुड़े जरूर हैं लेकिन एक और जहां काला धन रोज रोज लोगों को प्रभावित नहीं
करता है वहीं भ्रष्टाचार से हर रोज आम आदमी का वास्ता पड़ता है । इंडिया अगेंस्ट करप्शन
की मूल लड़ाई उसी भ्रष्टाचार के खिलाफ थी जो रामदेव के साथ आने से भटक सी गई लगती है
। अब टीम अन्ना की मांगें भी खंड़ित हो गई हैं । जनलोकपाल की मूल मांग के समांतर काला
धन और पंद्रह मंत्रियों के खिलाफ आरोप की जांच की मांग ने आंदोलन को मूल से भटका दिया है । अपने आंदोलन को
राह से भटकते देख फौरन अरविंद केजरीवाल ने रणनीति बनाई और बेहद सफाई से जनलोकपाल की मांग से दूर हटकर मंत्रियों के भ्रष्टाचार
को मुद्दा बना लिया । बीच बीच में जनलोकपाल की मांग उठाते रहने की रणनीति बनी । एक
बार फिर से 25 जुलाई से अनशन का ऐलान है लेकिन अन्ना तबियत खराब होने की वजह से अनशन
नहीं करेंगे । पूरा शो अरविंद केजरीवाल का होगा । उस दिन ही अरविंद केजरीवाल का और
भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का भी भविष्य तय हो जाएगा ।