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Wednesday, June 26, 2013

रणनीतियों के खतरे

लियो टालस्टॉय के मशहूर उपन्यास वॉर एंड पीस में एक बेहद दिलचस्प प्रसंग है नेपोलियन और रूस की सेनाओं के युद्ध की रणनीति तय करने का वर्णन है । उसी प्रसंग में टालस्टॉय यह कहते हैं कि दोनों की सेना वही काम कर रही थी जिससे उनका खुद का नुकसान हो रहा था, लेकिन दोनों को यह बात समझ में नहीं आ रही थी । नेपोलियन चाहता था कि उसकी सेना सीधे मॉस्को पर कब्जा कर विजय पताका फहराए और वो इसी के मद्देनजर अपनी सारी रणनीति बना रहा था । सारी ताकत इसको हासिल करने में हीं झोंक रहा था । उधर रूस की सेना नेपोलियन को मॉस्को पर कब्जा करने से रोकने में प्राणपन से जुटी थी । सारा फोकस नेपोलियन को मास्को आने से रोकने पर था । दोनों की रणनीति से दोनों का ही नुकसान हुआ था जो बाद में साबित भी हुआ । अगर नेपोलियन रूस की परिधि के क्षेत्रों पर कब्जा कर आगे बढ़ते तो उसकी विजय का अर्थ होता और वो लंबे समय तक कायम रह सकता था । उनका नुकसान नहीं होता । मॉस्को फतह के बाद से ही उसके पतन की कहानी शुरू होती है । जब नेपोलियन की सेना वहां से लौटने लगी तो रास्ते में रूस के मामूली किसानों ने उनका खात्मा कर दिया । क्योंकि नेपोलियन ने मास्को के अलावा कहीं ध्यान ही नहीं दिया था और उसकी सेना मास्को विजय के उपरान्त विजय के मद में इतनी चूर थी कि वो आलसी हो गई थी । उधर रूस की सेना ये आकलन कर पाने में नाकाम रही कि मास्को पर कब्जे से नेपोलियन का नुकसान होगा लिहाजा उसने अपनी पूरी ताकत मास्को को बचाने में लगा दी थी । नतीजा यह हुआ कि पूरी सेना तबाह हो गई । कुछ इसी तरह की ही स्थिति इस वक्त कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की बन रही है । दोनों पार्टियां ऐसी राजनीतिक रणनीतियां बना रही हैं जिनसे दोनों का ही नुकसान हो रहा है । कांग्रेस मोदी को रोकने की रणनीति बनाकर उसके ट्रैप में पड़ गई है उधर भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों को रिझाने की रणनीति बनाने में जुटकर अपनी असल ताकत को खोने का खतरा उठा रही है ।  
दरअसल नरेन्द्र मोदी के भारतीय जनता पार्टी के केंद्र में आने से देश की सियासत में जबरदस्त ध्रुवीकरण होना लगभग तय हो गया है । नकेन्द्र मोदी की छवि एक ऐसे कट्टर हिंदूवादी नेता की है जो मुसलमानों से सम्मान की टोपी भी नहीं लेता है इस ध्रुवीकरण का असर आगामी चुनावों पर साफ तौर पर देखने को मिलेगा । इस ध्रुवीकरण को और मजबूती देगा 2002 के गुजरात दंगों का दाग । दंगों के ग्यारह साल बाद अबतक मोदी ने एक बार भी उसपर अफसोस तक नहीं जताया है, माफी की बात तो दूर । मोदी इसे अपनी ताकत समझते हैं लेकिन अब जबकि वो गुजरात के बाहर की राजनीति करेंगे तो यह उनकी कमजोरी बन सकती है । पार्टी के रणनीतिकारों और खुद मोदी अपनी इस कमजोरी से निजात पाने की कोशिश में जुट गए हैं । अभी हाल ही में सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जयपुर में अल्पसंख्यकों के समक्ष चुनौतियां विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में परोक्ष रूप से मुसलमानों से दो हजार दो के गुजरात दंगों को भूलकर आगे बढ़ने की अपील की । राजनाथ सिंह ने इस मौके का इस्तेमाल मुसलमानों को रिझाने के लिए भी किया । उन्होंने साफ तौर पर कहा कि मुल्क की तरक्की के लिए मुलमानों का साथ चाहिए । राजनाथ ने दावा किया कि जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है वहां सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए । आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर राजनाथ सिंह ने मुसलमानों को भारतीय जनता पार्टी पर भरोसा करने का दावत दिया और जोर देकर कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान मुसलमानों के विकास के जितने काम हुए उतने कांग्रेस के साठ सालों के शासन के दौरान नहीं हुए। राजनाथ सिंह के इन बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी की चुनाव प्रचार कमेटी की कमान संभालने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी एक सभा में कुछ इसी तरह के संकेत देते नजर आए । मोदी ने कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति पर प्रहार करते हुए कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला लेकिन साथ ही उन्होंने दिलों को जोड़ने की बात भी कही । मोदी के इस भाषण में अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि को बदलने की बेचैनी और बेकरारी साफ दिख रही थी । देश के मुसलमानों के लिए साफ साफ संकेत दिया जा रहा था कि मोदी बदल रहे हैं । दरअसल नरेन्द्र मोदी अब अटल बिहारी वाजपेयी जैसा उदारवादी मुखौटा लगाना चाहते हैं । मोदी को लगने लगा है कि मुस्लिम विरोध की राजनीति लंबे समय तक नहीं चल सकती है । मोदी ने चुनाव प्रचार समिति की कमान संभालने के बाद से ही मुसलमानों को अपने साथ लाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है । उनके खास सिपहसालार और पार्टी के महासचिव ने उत्तर प्रदेश का प्रभार संभालते ही अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की बैठक की और मुसलमानों को पार्टी के पाले में लाने की रणनीति पर मंथन किया । अमित शाह ने प्रकोष्ठ के नेताओ से अपने समुदाय में मोदी को लेकर जारी दुश्प्रचार का जोरदार प्रतिकार करने का हुक्म दिया । एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश में तकरीबन उन्नीस फीसदी मुसलमान हैं जो तकरीबन दो दर्जन लोकसभा सीटों का भविष्य तय करते हैं । मोदी और उनके कारिंदे इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं कि उन्हें दो हजार चौदह के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा सीटों का फायदा मिल सकता है । लिहाजा मुसलमानों को रिझाने की रणनीति पर काम शुरू हो गया है ।  
अब भारतीय जनता पार्टी ने मुसलमानों को लेकर एक विजन डॉक्यूमेंट बनाने का ऐलान किया है । इसके लिए पार्टी के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी की अध्यक्षता में बकायदा एक कमेटी बना दी गई है माना जा रहा है कि ये पहल गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के आशीर्वाद के बाद शुरु हुई है इस विजन डॉक्यूमेंट में मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक पिछड़ेपन की वजहों और उसको दूर करने के उपायों को बारे में विचार किया जाना है भारतीय जनता पार्टी इस विजन डॉक्यूमेंट को सभी राज्य मुख्यालयों में गाजे बाजे के साथ पेश करने की तैयारी में है । मंशा यह है कि अल्पसंख्यकों के मन में नरेन्द्र मोदी को लेकर जो संशय है उसको दूर किया जाए । इसके अलावा मोदी की छवि को लेकर एनडीए के सहयोगी भी खुद को असहज महसूस करने लगे हैं । नीतीश कुमार तो मोदी की कट्टरवादी छवि को लेकर ही एनडीए से बाहर हो गए। सहयोगियों के छिटकने के बाद से पार्टी की देश में भौगोलिक उपस्थिति भी कांग्रेस की तुलना में काफी कम है । लोकसभा सीटों के आधार पर आंध्र प्रदेश ,पश्चिम बंगाल ,तमिलनाडु, उड़ीसा, केरल, हरियाणा की कुल 174 सीटों में से बीजेपी की उपस्थिति शून्य है । पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों को जोड़ दें तो यह आंकड़ा और उपर जाता है । अगर नरेन्द्र मोदी दो हजार चौदह का रण जीतना चाहते हैं तो उन्हें अपनी स्वीकार्यता के साथ साथ  भौगोलिक उपस्थिति बढ़ानी होगी । इसको ही ध्यान में रखते हुए और नए साथियों की तलाश में मुसलमानों को लेकर पार्टी अपनी रणनीति बदल रही है । लेकिन भारतीय जनता पार्टी जिस विचारधारा में दीक्षित है उसकी सोच मुसलमानों को लेकर बिल्कुल साफ है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बुनियाद ही मुस्लिम विरोध को लेकर है । ऐेसे में सवाल यह उठता है कि भारतीय जनता पार्टी की इस नई चाल पर मुसलमान कितना भरोसा कर पाते हैं । लेकिन मुसलमानों को रिझाने की ज्यादा कोशिश पार्टी को कट्टर हिंदू वोटों से अवश्य दूर ले जा सकती है ।

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