जब जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की शुरुआत हुई थी तब शायद ही किसी को अंदाजा रहा हो
कि ये फेस्टिवल अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पाने के बाद अंतराष्ट्रीय स्तर पर विश्व
के अलग अलग देशों में आयोजित होगा । जयपुर में आयोजित ये लिटरेचर फेस्टिवल साल दर साल
लोकप्रियता की नई ऊंचाइयां हासिल कर रहा है । इस फेस्टिवल के सफल होने में साल दर साल
होनेवाले विवादों की भी महती भूमिका है । विवादों ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को खासा
चर्चित किया । आयोजकों की मंशा विवाद में रही है या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता है
लेकिन इतना तय है कि विवाद ने इ, आयोजन को लोकप्रिय बनाया । चाहे वो सलमान रश्दी के
कार्यक्रम में आने को लेकर उठा विवाद हो या फिर आशुतोष और आशीष नंदी के बीच का विवाद
हो, सबने मिलकर इस फेस्टिवल को साहित्य की चौहद्दी से बाहर निकालकर आम जनता तक पहुंचा
दिया । नतीजा यह हुआ कि साहित्य का ये फेस्टिवल धीरे धीरे मीना बाजार, यह शब्द इस स्तंभ
में कई बार इस्तेमाल किया जा चुका है, बन गया । आयोजकों को स्पांसरशिफ से फायदा हुआ
तो इस पेस्टिवल का दायरा और इसका प्रोडक्शन बेहतर होता चला गया । आठ नौ साल के अंदर
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल विश्व में जाना पहचाना फेस्टिवल हो गया । इसको विश्व में लोकप्रिय
बनाने में इसके आयोजकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी और वी एस नायपाल से लेकर जोनाथन फ्रेंजन
तक की भागीदारी रही। भारत के दर्शकों की रुचि को ध्यान में रखकर कभी गुलजार तो कभी
जावेद शबाना, तो कभी राहुल द्रविड़- राजदीप सरदेसाई तो कभी शर्मिला टैगोर की उपस्थिति
सुनिश्चित की जाती रही । इसका फायदा भी मिला । अब जब यह लिटरेचर फेस्टिवल एक मुकाम
हासिल कर लिया है तो इसको आयोजकों ने इसको विश्व के अन्य देशों में ले जाने का फैसला
किया । इस क्रम में पहले लंदन में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल आयोजित किया गया । इस साल
मई में लंदन के साउथबैंक सेंटर में दो दिनों तक लेखकों ने साहित्य और राजनीति के सवालों
से मुठभेड़ की । जयपुर लिटरेटर फेस्टिवल को आयोजित करनेवाले लेखक द्वय नमिता गोखले
और विलियम डेलरिंपल ने लंदन में भी सफलतापूर्व इसका आयोजन किया जिसमें कई भारतीय लेखकों
ने भी शिरकत की । जयपुर की तरह लंदन का दो दिनों का फेस्टिवल में मुफ्त प्रवेश नहीं
था बल्कि एक निर्धारित शुल्क लेकर श्रोताओं को प्रवेश दिया गया । लंदन में सफलतापूर्वक
आयोजन के बाद अब जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल अमेरिका जा रहा है । आठारह लेकर बीस सितंबर
तक तक अमेरिका में अब जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन होगा । आयोजकों का दावा है कि
अमेरिका में होने वाले इस लिटरेचर फेस्टिवल में करीब सौ से ज्यादा लेखक शामिल होंगे
। कोलोराडो में आयोजित होनेवाले इस फेस्टिवल में लेखकों के साथ विमर्श के अलावा राजनीति
और पर्यावरण की चिंताओं पर भी बात होगी । इसका मतलब यह है कि ये लिटरेचर फेस्टिवल लगातार
अपना दायरा बढाता जा रहा है । विमर्श से लेकर आयोजन तक का । जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल
के आयोजकों ने यह साबित कर दिया कि साहित्य का भी बहुत बड़ा बाजार है । उसने यह भी
साबित कर दिया कि साहित्य और बाजार साथ साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकते हैं । साबित
तो यह भी हुआ कि बाजार का विरोध करनेवाले नए वैश्विक परिवेश में कहीं ना कहीं पिछड़ते
जा रहे हैं । पिछड़ते तो वो पाठकों तक पहुंचने में भी जा रहे हैं । इसके विरोध में
तर्क देनेवाले यह कह सकते हैं कि यह अंग्रेजी का मेला है लिहाजा इसको प्रायोजक भी मिलते
हैं और धन आने से आयोजन सफल होता जाता है । सवाल फिर वही कि हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं
में हमने कोई कोशिश क्या ? बगैर किसी कोशिश के अपने
ठस सिद्धातों के यह मान लेना कि हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में इस तरह का आयोजन संभव
नहीं है, गलत है । आसमान में सूराख हो सकता है जरूरत इस बात की है कि पत्थर जरा तबीयत
से उछाली जाए ।
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