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Monday, September 5, 2016

पैंतालीस साल बाद इंसाफ

आतंकवाद और कठमुल्लापन की मार झेल रहे बांग्लादेश की शेख हसीना की अगुवाई वाली सरकार इनसे लोहा लेती दिखाई दे रही है । आतंक के खिलाफ बांग्लादेश ने तो जंग छेड़ ही रखी है । अपने देश के अंदर इस्लामी कठमुल्लापन और उससे उपजने वाले विद्रोह, जिसका रास्ता राष्ट्र के खिलाफ जाता है, को उसकी जगह दिखाने के लिए भी सरकार कटिबद्ध दिखाई देती है । एक तरफ वो अपने देश के अंदर कट्टरपंथी ताकतों को अदालत से सुनाई गई सजा की तामील करवा रही है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान को कूटनीति के माध्यम से भी बांग्लादेश की अंदरुनी गतिविधियों से से दूर रहने का कड़ा संदेश दे रही है । उन्नीस सौ इकहत्तर के मुक्ति संग्राम के दौरान के अपराधियों को सजा दिलाने में शेख हसीना की सरकार ने कड़ा रुख अख्तियार किया हुआ है ।अभी हाल ही में बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन जमाते इस्लामी के नेता और वहां के प्रमुख मीडिया संस्थान के मालिक मीर कासिम अली को बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान किए गए युद्ध अपराध की वजह से फांसी दी गई । मीर कासिम अली बांग्लादेश के छठे युद्ध अपराधी हैं जिनको फांसी की सजा दी गई है । दरअसल जब कुछ दिनों पहले मीर कासिम ने राष्ट्रपति के पास क्षमा याचना की अर्जी देने से इंकार कर दिया था तब से इस बात के कयास लगाए जा रहे थे लेकिन बांग्लादेश में मीर कासिम के प्रभाव, दबदबे और अकूत संपत्ति के मद्देनजर कुछ लोगों को लग रहा था कि शायद उनको फांसी नहीं दी जाए । बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने फांसी के खिलाफ उसकी अर्जी को खारिज कर दिया था और उसके तीन दिन बाद मीर कासिम अली को फांसी पर लटका दिया गया । दरअसल अगर हम देखें तो मीर कासिम अली को फांसी पर लटकाने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है क्योंकि बांग्लादेश के कट्टरपंथी मुसलमानों के बीच वो काफी लोकप्रिय था और इस्लामिक संगठनों को काफी पैसे दिया करता था । अपने अकूत संपत्ति के बल पर उसने कई कट्टरपंथी संगठनों को अपने कब्जे में कर रखा था ।
उन्नीस सौ इकहत्तर में जब बांग्लादेश अपनी मुक्ति के लिए ना सिर्फ छटपटा रहा था बल्कि उसके निर्दोष नागरिकों के खून से धरती लाल हो रही थी उस वक्त मीर कासिम पाकिस्तान समर्थक बदनाम संगठन अल बदर मिलिशिया की नुमाइंदगी कर रहा था । ये वही संगठन था जिसने बांग्लादेश के नागरिकों पर कहर बरपाने में पाकिस्तान की हर तरह से मदद की थी । मीर कासिम अल बद्र के यातना शिविर का इंचार्ज था जहां सैकड़ों बाग्लादेशी मुक्ति योद्धाओं को भयंकर यातनाएं दी गईं और उसके बाद उनको जान से मार दिया गया था । मीर कासिम को उस यातना शिविर में एक मासूम की जान लेने का आरोप साबित हो गया था । एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तानी सेना और उसके पिट्ठुओं ने उस दौर में करीब तीस लाख लोगों को मार डाला था ।  शेख हसीना ने वो दौर देखा था, उसके बाद अपने पिता की हत्या का दर्द भी झेला ।  संभव है कि उनके जेहन में 25 मार्च उन्नीस सौ इकहत्तर और उसके बाद की घटनाएं ताजा हों । 25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी जनरल याह्या खां ने एलान कर दिया कि मुजीबुर्रहमान के साथ बातचीत टूट गई है । 25 मार्च को मुजीब ने अपने देशवासियों के नाम एक संदेश लिखा था- संभव है कि ये मेरा आखिरी संदेश हो लेकिन आज से बांग्लादेश आजाद है । मैं बांग्लादेश के हर नागरिक से अपील करता हूं कि वो जहां भी हों पाकिस्तानी सेना का मरते दम तक विरोध करें । तबकर इस काम पर ड़टे रहें जबतक कि पाकिस्तानी सेना का अंतिम सिपाही आजाद बांग्लादेश की धरती से खदेड़ ना दिया जाए । उसके बाद पाकिस्तानी सेना ने 25 और 26 मार्च की दरम्यानी रात को मुजीब को तो गिरफ्तार किया ही उसके बाद वहां पाकिस्तानी सेना ने करीब दो महीने तक नंगा नाच किया था । मानवाधिकार की तो धज्जियां उड़ी ही थीं लाखों महिलाओं के साथ रेप करने के बाद उनका कत्ल कर दिया । बांग्लादेश के हालात ऐसे रहे कि उस दौर के पाकिस्तानी पिट्ठुओं को सजा दिलवाने की पहल में काफी देर हुई । दो हजार दस में इन युद्ध अपराधियों के खिलाफ केस शुरू किया गया और अबतक छह लोगों को फांसी पर लटकाया जा चुका है ।

बांगलादेश में कट्टरपंथियों के बुलंद हौसलों को देखते हुए शेख हसीना सरकार का ये फैसला एक संदेश तो दे ही रहा है । मीर कासिम को फांसी पर लटकाए जाने के बाद जब पाकिस्तान ने दुख प्रकट करते हुए बयान जारी किया था- गलत तरीके से केस चलाकर विरोधियों की आवाज को दबाना लोकतंत्र की भावनाओं के खिलाफ है । कई अंतराष्ट्रीय संगठनों ने मीर कासिम के खिलाफ चलाए जा रहे केस पर आपत्ति जताई थी । पाकिस्तान के इस बयान को भी शेख हसीना की सरकार ने गंभीरता से लिया और बांग्लादेश में पाकिस्तान के उच्चायुक्त को विदेश मंत्रालय में तलब करके साफ कर दिया कि पाकिस्तान का बयान उनके घरेलू मामलों में दखल है और वो इस तरह की हरकतों से दूर रहे । ये दो घटनाएं ऐसी हैं जिससे ये साफ होता है कि शेख हसीना की सरकार राजनीतिक लाभ लोभ के चक्कर में पड़े इस्लामिक कट्टरपंथियों को उसकी सही जगह दिखा रही है । 

2 comments:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 'मृत्युंजय योद्धा को नमन और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

Madan Mohan Saxena said...

बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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