दिल्ली में हाल
ही में संपन्न हुए विश्व पुस्तक मेले में इस बात के संकेत मिले कि भारत में भी ई बुक्स
की तरफ पाठकों का आकर्षण बढ़ा है । ई बुक्स के बारे में जानने समझने के लिए भारी संख्या
में पाठकों ने संबंधित स्टॉल का रुख किया था । दिल्ली के प्रगति मैदान में, जहां विश्व
पुस्तक मेला आयोजित हुआ था, किताबों के पोस्टर और बैनर के अलावा किंडल व्हाइट के भी
पोस्टर काफी संख्या में लगे थे । पाठकों के बीच किंडल और ईबुक्स को लेकर चर्चा भी रही
। हिंदी के मंडप में भी ईबुक्स के बारे में वरिष्ठ लेखकों के बीच भी बातें हो रही थी
। हलांकि हिंदी के वरिष्ठ लेखक छपे हुए के आगे ई बुक्स के महत्व को बिल्कुल ही नकार रहे थे
। हिंदी मंडप के अंदर ही साहित्य और मीडिया पर हुई एक गोष्ठी में इस बात पर खासी चिंता
व्यक्त की गई कि हिंदी के लेखक तकनीक को अपनाने को तैयार नहीं हैं । उस गोष्ठी में
एक बात उभर कर आई कि हिंदी के स्थापित लेखकों में से कई तो इंटरनेट की दुनिया से अनभिज्ञ
हैं और उन्हें इस बात का मलाल भी नहीं है, बल्कि उन्हें इस बात का फख्र है कि उनके
पास ईमेल अकाउंट नहीं है । आज जब पूरी दुनिया का लेखकीय और पाठकीय परिदृश्य बदल रहा
है । फिजिकल से वर्चुअल की ओर कदम बढ़ चुके हैं ऐसे में हिंदी के वरिष्ठ लेखकों का
तकनीक को लेकर हठ खतरनाक हो सकता है । आज जमाना पूरी तरह से बदल गया है । जब देश में
मोबाइल क्रांति आई थी तो कहा जाता था मोबाइल फर्स्ट लेकिन देश में इंटरनेट के बढ़ते
घनत्व के बाद अब यह नारा बदलकर मोबाइल ओनली तक पहुंच गया है । इस बात को साफ तौर पर
देखा जा सकता है कि देश में थ्री जी तकनीक के प्रसार की वजह से स्मार्ट फोन उपभोक्ताओं
की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है । विदेश के अलावा देसी मोबाइल फोन निर्माताओं ने
भी बड़ी स्क्रीन साइज और बेहतर रिजोल्यूशन वाले मोबाइल फोन बाजार में पेश किया । इस
तरह के मोबाइल के मॉडल ग्राहकों के बीच खासे लोकप्रिय भी हो रहे हैं । भारतीय बाजार
में बड़ी स्क्रीन की लोकप्रियता और खपत को देखते हुए आई फोन ने भी अपनी परंपरा और लीक
से हटते हुए बड़े स्क्रीन वाले मोबाइल फोन लॉंच करने का ऐलान किया है । यह सब पाठकों
की सहूलियत को ध्यान में रखकर किया जा रहा है । बदले हालात में अब यह बात साफ हो गई
कि पाठक अब अपने मन की करेगा । अब पाठक यह तय करेगा कि वो किस प्लेटफॉर्म पर कोई रचना
पढ़ना चाहता है । वह छपी हुई किताबें पढ़ना चाहता है या फिर ई बुक्स पढ़ना चाहता है
। सामाजशास्त्रीय विश्लेषण करने से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते
हैं कि इक्कीसवीं सदी के पाठकों की रुचि में सत्तर और अस्सी के दशक के पाठकों की रुचि
में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है । सन 1991 को हम इस रुचि का प्रस्थान बिंदु मान सकते
हैं । हमारे देश में 1991 से अर्थव्वयस्था को विदेशी कंपनियों के लिए खोला गया और उससे
करीब सात साल पहले देश में संचार क्रांति की शुरुआत हो चुकी थी । हमारे देश के लिए
ये दो बहद अहम पड़ाव थे जिसका असर देश की साहित्य संस्कृति पर बेहद गहरा पड़ा । संचार
क्रांति और उदारीकरण का असर यह हुआ कि देश में पश्चिमी संस्कृति से देश की जनता का
परिचय हुआ । जो बातें अबतक सुनी जाती थी वो प्रत्यक्ष रूप से देखी जानी लगी ।
बाजारवाद और नवउदारवाद के प्रभाव में भारत
में आम जनता की और खासकर युवा वर्ग की रुचि में बदलाव तो साफ तौर पर रेखांकित किया
जा सकता है । युवा वर्ग और इन दशकों में जवान होती पीढ़ी में धैर्य कम होता चला गया
और एक तरह से इंस्टैंट का जमाना आ गया चाहे वो कॉफी हो या अफेयर । यह अधीरता कालांतर
में और बढ़ी । यह लगभग वही दौर था जब हमारे देश के आकाश को निजी टेलीविजन के तरंगों
के लिए खोल दिया गया । मतलब यह है कि देश में कई देशी विदेशी मनोरंजन और न्यूज चैनलों
ने अपना प्रसारण शुरू किया । यह वही वक्त था जब हिंसा प्रधान फिल्मों की जगह बेहतरीन
रोमांटिक फिल्मों ने ली । मार-धाड़ वाली फिल्मों की बजाय शाहरुख काजोल की रोमांटिक
फिल्मों को जबरदस्त सफलता मिली । लगभग इसी वक्त राष्ट्रीय अखबारों के पन्ने रंगीन होने
लगे और फिल्मों के रंगीन परिशिष्ट अखबारों का एक अहम अंग बन गया । यह सब बताने का तात्पर्य
यह है कि नवें दशक में हमारे देश की लोगों की पसंद बदलने लगी । आज की युवा पीढ़ी की आदतों को देखें तो वो
ऑन द मूव पढ़ना चाहती है । उसके लिए मोबाइल फोन या फिर किंडल से बेहतर कोई प्लेटफॉर्म
हो ही नहीं सकता है । किंडल एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां आप किताबों के ई वर्जन डाउनलोड
कर सकते हैं और फिर उसको अपनी सुविधानुसार पढ़ सकते हैं । कई साइट्स तो फ्री में ई
बुक्स डाउनलोड करने की सुविधा प्रदान करती है अन्यथा कीमत चुकाकर ईबुक्स खरीदने का
ऑप्शन तो आपके पास है ही । पूरी दुनिया में ई बुक्स की सफलता के बरक्श अगर हम हिंदी
प्रकाशन की तुलना करते हैं तो वो काफी पिछड़ा हुआ नजर आता है । हिंदी के कुछ प्रकाशकों
ने अब इस दिशा में पहल की शुरुआत की है । इस बार के पुस्तक मेले के आयोजक नेशनल बुक
ट्रस्ट ने भी व्यापक पाठक वर्ग को ध्यान में रखते हुए अपने बेहतरीन प्रकाशनों को ई
प्लेटफॉर्म पर लांच करने के इरादों का ऐलान किया ।1957 में नेशनल बुक ट्र्स्ट की स्थापना
के पीछे उद्देश्य था पाठकों के बीच पढ़ने की संस्कृति का विकास किया जाए । अपनी स्थापना
के सत्तावन साल बाद नेशनल बुक ट्रस्ट ने पहला ईबुक्स जारी किया । दिल्ली के इस विश्व
पुस्तक मेले में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉक्टर पल्लम राजू ने विवेकानंद
पर पहली ई बुक जारी की । इसके साथ ही नेशनल बुक ट्रस्ट, जो कि अठारह भाषाओं में किताबें
छापता है, ने ई बुक्स की ओर तेजी से कदम बढ़ाने के संकेत दिए । एनबीटी ने एलान कि है
कि एंडरॉयड और एप्पल प्लेटफॉर्म पर उनकी संस्था का ऐप बनाया जाएगा ताकि पाठक उसे अपने
मोबाइल, टैबलेट या आईपैड पर डाउनलोड कर मनपसंद कृतियों तक पहुंच सकें । एनबीटी के मुताबिक
पहले ये काम बच्चों की किताबों के लिए किया जाएगा ।
दो हजार सात में
अंतराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार करनेवाली कंपनी अमेजॉन ने इलेक्ट्रानिक बुक रीडर किंडल
लॉच किया था। शुरुआत में इसकी कीमत तकरीबन पच्चीस हजार रुपए रखी गई थी । ई बुक्स की
लोकप्रियता को बढ़ाने में किंडल का खासा योगदान है । अमेजॉन ने बहुत सोच-समझकर ये रीडिग
डिवाइस लांच किया था । ऑनलाइन कारोबार करनेवाली इस कंपनी के पास तकरीबन दस लाख किताबों
के इलेकट्रानिक फॉर्मेट के अधिकार थे । कंपनी ने उसको भुनाने के लिए बाजार में किंडल
को उतारा जो काफी लोकप्रिय हुआ । किंडल के साथ साथ कई किताबें प्री लोडेड आती हैं और
बाद में आप चाहें तो नई से नई किताबें खरीदकर डाउनलोड कर सकते हैं । किंडल पर मौजूद
ई बुक्स बाजार से खरीदी गई किताबों से सस्ती होती हैं । ऱखने में आसानी होती है । हजारों
किताबें एक छोटे से टेबलेटनुमा डिवाइस में स्टोर की जा सकती हैं । एक बार डाउनलोडकर
लेने के बाद इंटरनेट कनेक्शन की भी जरूरत नहीं पड़ती है। जब चाहें जहां चाहें पाठक
अपनी पसंद की किताबें पढ़ सकते हैं । इस डिवाइस को किसी कंप्यूटर या तार से जोड़ने
का झंझट भी नहीं है । इस डिवाइस पर अखबारों का स्बसक्रिप्शन लेकर अखबार भी पढ़े जा
सकते हैं । पिछले साल ई एल जेम्स कीमशहूर फिफ्टी शेड्स ट्रायोलॉजी यानि तीन किताबें –फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे, फिफ्टी शेड्स डार्कर, फिफ्टी शेड्स फ्रीड अमेरिका में प्रिंट और ई एडीशन दोनों श्रेणी मेंकई
हफ्तों तक बेस्ट सेलर बनी रही । फिफ्टी शेड्स ट्रायोलॉजी लिखे जाने की कहानी बेहद दिलचस्प है । टीवी की नौकरी छोड़कर पारिवारिक जीवन और बच्चों की परवरिश के बीच एरिका जेम्स ने फैनफिक्शन नाम के बेवसाइट पर शौकिया तौर पर मास्टर ऑफ यूनिवर्स के नाम से एक सीरीज लिखना शुरू किया । ई रीडर्स की मांग पर उसे बार बार लिखने को मजबूर होना पड़ा ।पाठकों के दबाव में एरिका ने अपनी कहानियों का पुर्नलेखन किया और उसे ई रीडर्स के लिए पेश कर दिया । पात्रों के नाम और कहानी के प्लॉट में बदलाव करके जब
उसकी पहली किश्त बेवसाइट पर प्रकाशित हुई तो वह पूरे अमेरिका में वायरल की तरह फैल गई । सालभर के अंदर इसने अमेरिका में धूम
मचा दी । इस पूरे प्रसंग को लिखने का उद्देश्य ई बुक्स की बढती लोकप्रियता बताना है । विदेश में लेखकों की कोशिश ये होने लगी कि उन पाठकों की झुधा शांत करे जो अपने प्रिय लेखक की कृतियां एक क्लिक से डाउनलोड कर पढ़ना चाहता है ।
ई रीडिंग और ई राइटिंग के पहले के दौर में लेखक साल में एक कृति की रचना कर लेते थे तो उसे बेहद सक्रिय लेखक माना जाता था । जॉन ग्रीशम जैसा लोकप्रिय लेखक भी साल में एक ही किताब लिखता था । पाठकों को भी साल भर अपने प्रिय लेखकों की कृति का इंतजार रहता था । पुस्तक छपने की प्रक्रिया भी वक्त लगता था । लेकिन वक्त बदला, स्टाइल बदला, लेखन और प्रकाशन की प्रक्रिया बदली । अब तो ई लेखन का दौर आ गया है । ई लेखन और ई पाठक के इस दौर में पाठकों की रुचि में आधारभूत बदलाव देखने को मिल रहा है । इंटरनेट के इस दौर में पाठकों का लेखकों से भावनात्मक संबंध की
जगह सीधे संवाद ने ले ली । ऑनलाइन रहकर लेखक पाठकों से बात करते हैं
और उनकी पसंद जानते हैं । ट्विटर पर सवालों के जवाब देते हैं । पेसबुक पर अपना स्टेटस अपडेट कर पाठकों की प्रतिक्रिया हासिल
करते हैं ।
विदेशों में ई रीडर्स की बढ़ती तादाद का फायदाउठाने के लिए प्रकाशकों ने एक रणनीति बनाई हुई है । किसी बड़े लेखक की कोई अहम कृति प्रकाशित होनेवाली होती है तो प्रकाशक लेखकों से आग्रह कर प्रकाशन के पहले ई रीडर्स के लिए छोटी छोटी कहानियां लिखवाते हैं । जो सिर्फ डिजिटल फॉर्मेट में उपलब्ध होती
है । इसका फायदा यह होता है कि छोटी कहानियों की लोकप्रियता से लेखक के पक्ष में एक माहौल बनता है और आगामी कृति के लिए पाठकों
के बीच उत्सुकता पैदा होती है । जब उत्सुकता अपने चरम पर होती है तो प्रकाशक बाजार में उक्त लेखक की किताब पेश कर देता है । मशहूर और बेहद लोकप्रिय ब्रिटिश थ्रिलर लेखक ली चाइल्ड ने भी अपने उपन्यास के पहले कई छोटी छोटी कहानियां सिर्फ डिजीटल फॉर्मेट में लिखी । उन्होंने साफ तौर पर माना कि ये कहानियां वो अपने आगामी उपन्यास के लिए पाठकों के बीच एक उत्सुकता का माहौल बनाने के लिए लिख रहे हैं । चाइल्ड के मुताबिक दौड़ में बने रहने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी भी है । इन स्थितियों की तुलना में अगर हम हिंदी लेखकों की बात करें तो वहां
एक पिछड़ापन नजर आता है ।ज्यादातर लेखकों की अपनी कोई बेवसाइट नहीं है । दो-चार प्रकाशकों को छोड़ दें तो हिंदी के प्रकाशकों की भी बेवसाइट नहीं है । नतीजा यह कि हिंदी में लेखकों पर पाठकों की पसंद का दबाव नहीं बन पाता और वो अपनी रफ्तार से लेखन करते हैं । फिर रोना रोते हैं कि पाठक नहीं । ई बुक्स की बढ़ती लोकप्रियता हिंदी के लेखकों के लिए एक अवसर दे रही है। जरूरत है इस अवसर का लाभ उठाने और इंटरनेट
के फैलाव के साथ साथ विशाल पाठक वर्ग तक पहुंचने की ।
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