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Sunday, August 3, 2014

आत्मकथा से निकला विवाद का जिन्न

गांधी नेहरू परिवार के दशकों से करीबी रहे और पूर्व विदेश मंत्री और पूर्व कांग्रेस नेता नटवर सिंह की किताब- वन लाइफ इज नॉट एनफ - को लेकर खसा विवाद हो गया है । दरअसल नटवर सिंह ने अपनी किताब में खुलासा किया है कि दो हजार चार में सोनिया गांधी ने अंतरात्मा की आवज पर नहीं बल्कि राहुल गांधी के दबाव में प्रधानमंत्री का पद ठुकराया था । इस किताब से ही एक दूसरा खुलासा यह हुआ है कि यूपीए शासन काल में अहम सरकारी फाइलें सोनिया गांधी के पास मंजूरी के लिए जाती थी । इन दोनों खुलासे के बाद देश की सियासत में भूचाल आ गया । दो हजार चार में सोनिया गांधी के त्याग को मजबूरी का त्याग या मजबूरी का बलिदान करार दिया जाने लगा । फाइलों के संबंध में मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने भी लगभग ऐसी ही राय रखी थी । नटवर सिंह भी गांधी-नेहरू परिवार के बेहद करीबी रह चुके हैं । इंदिरा गांधी के तो वो इतने करीब थे कि जब इक्कीस अगस्त उन्नीस सौ सडसठ को उनकी शादी हेम से हुई थी तो गवाह के तौर पर इंदिरा गांधी ने दस्तखत किए थे । नटवर सिंह उन भारतीय नेताओं में हैं जो कांग्रेस के शासक परिवार के करीब रहे हैं और सत्ता के करीब होने के जो सुख होते हैं उसका भी आनंद उठाया है । परिवार के इतने करीबी ने जब इस तरह का खुलासा किया तो उसपर अविश्वास की वजह नहीं रही । इस विवाद को देखते हुए मुझे यूरोप और अमेरिका में किताबों के छपने से पहले हुए कई विवाद अचानक याद आए । चंद वर्षों पहले जब न्यूयॉर्क टाइम्स के पूर्व कार्यकारी संपादक जोसेफ लेलीवेल्ड की गांधीजी पर लिखी किताब- ग्रेट सोल महात्मा गांधी एंड हिज स्ट्रगल विद इंडिया छपकर आई थी तब भी जबरदस्त विवाद हुआ था । किताब के प्रकाशक ने गांधी जी और उनके दोस्त हरमन कैलनबाख के बीच के पत्रों को इस तरह से प्रचारित किया कि समलैंगिक संबंध का शक हो । ब्रिटेन के अखबार डेली मेल ने तो खबर तक लिख दी थी जिसका शीर्षक था - गांधी लेफ्ट हिज वाइफ टू लिव विद मेल लवर । डेली मेल की इस खबर के हवाले से भारत के अखबारों में खबर छपी कि एक जर्मन व्यक्ति गांधी जी का सेक्रेट लव था । विवाद इतना बढ़ा कि गुजरात विधानसभा ने इस किताब की पाबंदी का प्रस्ताव पारित कर दिया था । कई और अन्य सूबों में इस किताब पर पाबंदी की मांग उठी थी । नतीजा किताब के प्रति पाठकों में उत्सुकता । इसी तरह से जब ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेर की आत्मकथा - अ जर्नी - प्रकाशित होनेवाली थी तो प्रकाशकों ने पूरी दुनिया में एक उत्सुकता का वातावरण तैयार किया और टोनी और उनकी पत्नी चेरी के बीच के रसभरे प्रसंगों के चुनिंदा अंश जारी कर दिए । टोनी और चेरी की स्कॉटिश कैसल में छुट्टियों के दौरान रूमानी प्रसंगों के चुनिंदा अंश जारी किए गए । सात सौ पन्नों की टोनी ब्लेयर की किताब में इस तरह के प्रसंग मुश्किल से पचास पृष्ठों में थे लेकिन प्रचारित इस तरह से किया गया कि लगा ऐसे प्रसंगों की भरमार है । नतीजा किताब के प्रकाशन के चार हफ्तों में छह संस्करण ।
दरअसल विदेशों में किताबों की बिक्री के लिए और उसके प्रमोशन के लिए प्रकाशक अलग से बजट रखते हैं जिसका उन्हें फायदा होता है । विवाद से बिक्री बढ़ाने के इस हथकंडे को भारत के अंग्रेजी के प्रकाशक कभी कभार अपनाते हैं और इसका उन्हें फायदा भी मिलता है । जब सिस्टर जेस्मी की आत्मकथा आमीन द स्टोरी ऑफ अ नन के प्रकाशन के बाद भी अंग्रेजी के प्रकाशकों ने इस तरह के हथकंडे का इस्तेमाल किया था । तब भी उक्त किताब के कई संस्करण जल्दी जल्दी प्रकाशित हुए थे और कई अन्य भाषाओं में भी छपकर लोकप्रिय हुए थे । किताब के विवादित अंश को लीक कर कृति को हिट करवाने का फॉर्मूला विदेशों  में काफी चलन में है । विदेशी प्रकाशक और लेखक किताब के प्रकाशन के पहले रणनीति के तहत उसके विवादित अंशों को लीक करते हैं । इस लीक को मीडिया में इस तरह से प्रकाशित प्रसारित किया जाता है जैसे कोई बड़ा खुलासा हो रहा हो । चुनिंदा अंशों की प्रकृति के हिसाब से अलग अलग माध्यम उसको तवज्जो देते हैं । लेकिन सबका लक्ष्य बिक्री बढ़ना और मुनाफा कमाना ही होता है । नटवर सिंह की आत्मकथा के चुनिंदा अंश लीक करवाकर प्रकाशक सनसनी फैलाने में तो कामयाब रहा है । किताब के फ्लैप पर ही लिखा है कि नटवर सिंह उन चंद लोगों में हैं जो यह बात जानते हैं कि दो हजार चार में किन वजहों से सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद ठुकराया था और मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया था । 
अपने बारे में दुनिया को क्या कहना है और उसे क्या जानना चाहिए इस बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है किए सहित सनेह जे अघ, ह्रदय राखि चेरी, संग बस किये शुभ, सुनाए सकल लोक निहोरि । मतलब कि परमप्रेम पूर्वक किए गए प्रचंड पापों को तो ह्रदय की अंधेरी कोठरी में छिपाकर रखना लेकिन दूसरे के किसी भी काम को ढोल पीट-पीटकर लोगों को सुनाना ।  नटवर की आत्मकथा को पढ़ने के बाद यह बात साफ है कि उन्हें दो हजार पांच में मंत्री पद गंवाने का जबरदस्त मलाल है। दरअसल वोल्कर कमेटी की रिपोर्ट में फूड फॉर ऑयल में खुलासे के बाद नटवर सिंह को विदेश मंत्री से पद से हटा दिया गया था । नटवर सिंह इस बात से दुखी और क्षुब्ध थे सोनिया ने उस वक्त उनका बचाव नहीं किया। नटवर को दुख इस बात का भी है कि उसके बाद के वर्षों में भी सोनिया ने उनकी सुध नहीं ली । नटवर के मुताबिक सोनिया को जब पता लगा कि नटवर सिंह अपनी आत्मकथा में दो हजार चार के दौरान सोनिया के पद ठुकराने के पूरे प्रसंग पर लिखनेवाले हैं तो नटवर के घर पहुंच गई । इस पूरे प्रसंग को बताकर नटवर सिंह ये संदेश देने में कामयाब हो गए कि सोनिया और प्रियंका गांधी मिलकर उनकी किताब के कुछ अंशों को हटवाना चाहती थी ।  इस खबर के लीक होने से किताब में लोगों की रुचि बढ़ गई और प्रकाशक को भी इस बात की उम्मीद है कि किताब की बिक्री में जोरदारा इजाफा होगा । यह संभव भी और साफ दिख भी रहा है ।
अपनी पत्नी हेम को समर्पित इस किताब के बाइस अध्याय है जिसमें से नटवर सिंह ने अपनी विदेश सेवा के दौरान के संबंधों और विश्व नेताओं के बारे में टिप्पणी की है । इसमें माउत्सेतुंग पर भी टिप्पणी है तो कीनिया की कहानी भी है लेकिन किताब का बड़ा हिस्सा गांधी-नेहरू परिवार पर केंद्रित है । किताबों में छपे चित्र भी इस बात को साफ करते हैं कि नटवर के इस परिवार से कितने गहरे रिश्ते थे । इस किताब में नटवर सिंह ने सोनिया गांधी की हिंदी पर भी टिप्पणी की है उनका दावा है कि सोनिया अपनी हिंदी के भाषण के लिए घंटों तैयारी करती थी । उनका यह भी दावा है कि अगर सोनिया के पास लिखी सामग्री ना हो तो वो भाषण नहीं दे सकती है । नटवर सिंह ने कई जगह पर सोनिया की तारीफ भी की है लेकिन किताब के अंत में उन्होंने सोनिया को कांग्रेस की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार भी माना है । सोनिया को लेकर नटवर सिंह के मन में जो कड़वाहट है वह उनके शब्दों में झलकती है । जैसे उन्होंने सोनिया को मैकेवेलियन करार दिया है । शब्दकोश में इसका मतलब ये है कि राजकाज चलाने के लिए तमाम तरह के दंद फंद का सहारा लेना वाला शख्स । अपनी किताब में नटवर सिंह ने मनमोहन सिंह को भी नहीं बख्शा है उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री को बगैर रीढ़ की हड्डी के करार दिया है । लेकिन नटवर सिंह जब इस तरह के उदाहरण देते हैं तो उनके जेहन में वोल्कर कमेटी की रिपोर्ट की वजह से मंत्रिमंडल से उनकी रुखसती ही रहती है ।

राजनेताओं के अलावा नटवर सिंह के साहित्यकारों, लेखकों और चित्रकारों से नजदीकी रही है और समय समय पर साहित्यक सामाजिक विषयों पर लेख लिखते रहे हैं । उनकी चंद दिनों पहले वॉकिंग विद द लायन्स नाम से लेखों का संग्रह प्रकाशित हुआ था । उसमें उन्होंने अपने संसमरणों को लिखा था । जार्ज ऑरवेल ने आत्मकथा के संदर्भ में कहा था - वही आत्मकथा विश्वसनीय होती है जो जिंदगी के लज्जाजनक और घृणित कृत्यों को उजागर करता हो । नटवर की इस किताब में विश्वसनीयता के इस आदार की कमी लगातार खटकती है । 

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