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Sunday, August 24, 2014

अलविदा अनंतमूर्ति

कन्नड़ के मशहूर साहित्यकार यू आर अनंतमूर्ति का निधन हो गया । अपने प्रशंसकों और साथियों के बीच यूआरए के नाम से जाने जानेवाले यू आर अनंतमूर्ति कन्नड़ के सबसे बड़े साहित्यकारों में से एक थे । उन्होंने पचास और साठ के दशक में कन्नड़ साहित्य को परंपरा की बेड़ियों से मुक्त कर नव्य आंदोलन की शुरुआत की थी । उस दौर में कन्नड साहित्य में गिरीश कर्नाड भी लोकप्रिय हो रहे थे । इस आंदोलन के अगुवा होने की वजह से यू आर अनंतमूर्ति ने उस वक्त तक चली आ रही कन्नड़ लेखन की परंपरा को ध्वस्त कर दिया। बर्मिंघम विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि लेकर भारत लौटे यू आर अनंतमूर्ति कर्नाटक के ही एक कॉलेज में अंग्रेजी के प्राध्यपक हो गए । अनंतमूर्ति के शोध प्रबंध का विषय था उन्नीस सौ तीस के दशक की राजनीति और फासीवाद । यह विषय उनके पूरे लेखन में भी लगातार परिलक्षित होता रहा है । इस साल लोकसभा चुनाव के दौरान अनंतमूर्ति के बयान ने सियासी भूचाल खड़ा कर दिया था । अनंतमूर्ति ने कहा था कि अगर नरेन्द्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री बनते हैं तो वो भारत छोड़ देंगे । इस बयान के बाद उनपर चौतरफा हमले शुरू हो गए थे । धमकियां मिलने लगी थी । बाबवजूद इसके अनंतमूर्ति अपने बयान पर कायम रहे । चुनाव नतीजों में नरेन्द्र मोदी को अभूतपूर्व सफलता के बाद अनंतमूर्ति ने कहा था कि उन्होंने भावना में बहकर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बयान दे दिया था । वो भारत छोड़कर कहीं जा ही नहीं सकते हैं क्योंकि और कहीं वो रह नहीं सकते या रहने का साधन नहीं है । यू आर अनंतमूर्ति की राजनीति में गहरी दिलचस्पी थी और उन्होंने नामवर सिंह की तरह चुनाव भी लड़ा था और उन्हीं की तरह पराजित भी हो गए थे । अनंतमूर्ति खांटी गांधीवादी समाजवादी थे और यह उनके लेखन में लगातार दिखता रहता था । उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक बुराइयों पर जमकर प्रहार किया था । समाज में ब्राह्मणों के वर्चस्व के खिलाफ उन्होंने जमकर लिखा । नतीजा यह हुआ कि उन्हें ब्राह्मणों की नाराजगी और अपने समाज का तिरस्कार झेलना पड़ा ।

1932 में कर्नाटक के शिमोगा जिले में जन्मे अनंतमूर्ति ने अंग्रेजी में एमए किया था । उन्नीस सौ छियासठ में उनका उपन्यास संस्कार प्रकाशित हुआ जो काफी मशहूर हुआ । इस उपन्यास पर फिल्म भी बनी । अनंतमूर्ति के कई उपन्यासों और कहानियों पर फिल्म बन चुकी है । 1994 में उनको भारत का सबसे प्रतिष्ठित साहित्यक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था । चार साल बाद उनको भारत सरकार ने 1998 में पद्मभूषण से नवाजा था । अनंतमूर्ति महात्मा गांधी विश्वविद्यालय केरल के चासंलर भी रहे । 2013 के मैन बुकर प्राइज के लिए उनका नामांकन भी हुआ था । इसके अलावा यू आर अनंतमूर्ति नेशनल बुक ट्रस्ट के चैयरमैन, फिल्म और टेलीविजन संस्थान पुणे और साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी रहे । अनंतमूर्ति विदेश के कई विश्वविद्लायों में विजिटिंग प्रोफेसर भी थे । इसके अलावा देश-विदेश में होनेवाले साहित्यक मेलों और लिटरेचर फेस्टिवल में अनंतमूर्ति अपने बेबाक बयानों की वजह से काफी लोकप्रिय थे । अनंतमूर्ति के निधन से हमने एक ऐसे शख्स को खो दिया जिनकी देश को प्रभावित करनेवाले मसलों पर राय होती थी और बेबाकी से उसको सामने रखते थे । एक लोकतांत्रिक देश के लिए इस तरह के शख्स का जाना आवाम की आवाज को कमजोर कर जाने जैसा है । 

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