मशहूर लेखक चेतन भगत ने कुछ दिनों पहले ट्विटर पर लिखा- जब
मेरी किताब फाइव प्वाइंट समवन रिलीज हो रही थी तो दो लड़के मेरे पास आए और कहा कि सर
हम भी आईआईटी के हैं और एक छोटी सी ई बुक्स शॉप चलाते हैं । मैंने जब ई बुक शॉप का
नाम पूछा तो उन्होंने कहा फ्लिपकार्ट । फ्लिपकार्ट एक आनलाइन कंपनी हैं और चेतन से
बात करनेवाले दोनों इस कंपनी के मालिक । हाल में फ्लिपकार्ट ने अपनी स्थिति काफी मजबूत
की है । अब उसी ऑनलाइन कंपनी के दोनों मालिकों ने चेतन भगत के नए उपन्यास हाफ गर्लफ्रेंड
की साढे सात लाख प्रतियों का अग्रिम ऑर्डर दिया है । एक राष्ट्रीय अखबार के पहले पन्ने
पर चेतन भगत की फोटो के साथ हाफ गर्लफ्रेंड का विज्ञापन भी छपा । मेरे जानते भारत में
इस तरह का ये पहला और अनूठा प्रयोग है । चेतन भगत मूलत: अंग्रेजी में लिखते हैं । उन्हें हल्का फुल्का लेखक माना
जाता है । गंभीर साहित्य लिखनेवाले लेखक और आलोचक चेतन के उपन्यासों हल्का और चालू
किस्म का मानते हैं । लेकिन चेतन भगत अपनी और अपनी किताबों की मार्केटिंग करने का नुस्खा
जानते हैं । उनके उपन्यास पर फिल्में भी बन चुकी हैं । साहित्य के इतने बड़े बाजार की कल्पना भारत में
नहीं की गई थी । उपन्यास छपने के पहले करीब पचास लाख रुपए उसके विज्ञापन पर खर्च करना
। यह आक्रामक मार्केटिंग रणनीति का हिस्सा है । जिसमें पाठकों को पहले चौंकाओ और फिर
उसे किताब खरीदने के लिए बाध्य कर दो । छपने के पहले उपन्यास की साढे सात लाख प्रतियों
का ऑर्डर देना और उसे प्रचारित करना उसी रणनीति का हिस्सा है । पहले दो महीने किताब
सिर्फ ऑनलाइन ही मिलेगी और कंपनी की बेवसाइट पर उसकी प्री बुकिंग भी खुल गई है । यह
सब भारतीय किताब बाजार के लिए नई घटना है । भारत में किताबों का इतना बड़ा बाजार है
इसकी कल्पना नहीं की गई थी लेकिन ऑनलाइऩ के कारोबार के फैलाव ने इसको यथार्थ बना दिया
। भारत की जनसंख्या और साक्षरता दर में बढ़ोतरी के बाद पाठकों की संख्या में अभूतपूर्व
इजाफा हुआ है । इस इजाफे को भुनाने में ऑनलाइन कंपनियां आगे हैं ।
इस पूरे प्रसंग में इस बात का खुलासा नहीं हुआ है कि चेतन
भगत को इस किताब की रॉयल्टी के तौर पर अग्रिम कुछ मिला या फिर बिक्री के बाद ही हिसाब
किताब होगा । किताब के कारोबार को जानने समझने वाले इस बात का अंदाज लगा रहा हैं कि
कम से कम चेतन भगत को इस किताब से एक करोड़ रुपए की रॉयल्टी अवश्य मिलेगी । चेतन की
इस किताब की ही तरह विदेशों में इस तरह के प्रयोग होते रहे हैं । जैसे ब्रिटेन के पूर्व
प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की आत्मकथा अ जर्नी के भी अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन
आए थे । उन्हें किताब के लिए अग्रिम पांच बिलियन डॉलर का भुगतान भी हुआ था । इसी तरह
से दो साल पहले जब ई एल जेम्स की किताब आई थी तब भी पूरी दुनिया का प्रकाशन जगत हिल
गया था । उसे भी लाखों बिलियन डालर की राशि अलग अलग भाषाओं में छपने के लिए दी गई थी
। इन प्रसंगों के बरक्श अगर हम हिंदी भाषा में उपन्यासों की स्थिति देखते हैं तो वहां
एक खास किस्म की उदासीनता और विपन्नता दिखती है । हिंदी के प्रकाशकों से यह उम्मीद
की जा सकती है कि वो इस तरह का कोई प्रयोग कर पाएंगे । निकट भविष्य में तो ऐसे आसार
नहीं दिखाई देते ।
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