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Sunday, December 27, 2015

पुरस्कार वापसी अभियान के नाम साल

वर्ष दो हजार पंद्रह को पुकस्कार वापसी विवाद की वजह से समकालीन साहित्य में याद रखा जाएगा । भारत में बढ़ते असिहुष्णता का आरोप लगाते हुए हिंदी के विवादप्रिय, प्रचारप्रिय लेखक उदय प्रकाश ने इसकी शुरुआत की, लेकिन इसका बड़ा असर तब हुआ जब अशोक वाजपेयी और नयनतारा सहगल ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का एलान कर दिया । इन दोनों के पुरस्कार लौटाने के बाद पुरस्कार वापसी अभियान ने जोर पकड़ा । पंजाब से लेकर कश्मीर और कर्नाटक से लेकर केरल तक के साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कई लेखकों ने विरोधस्वरूप पुरस्कार लौटाने का एलान किया। मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने तो एक खबरिया चैनल के शो के दौरान ही नाटकीय ढंग से पुरस्कार लौटाया । पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों का प्राथमिक आरोप ये था कि कन्नड़ के लेखक कालबुर्गी की हत्या के बाद साहित्य अकादमी ने उनकी शोकसभा आयोजित नहीं की । जब ये आरोप जोरशोर से उठा तब जाकर साहित्य अकादमी ने बेंगलुरू में आयोजित शोकसभा की तस्वीरें और अखबारों में छपी खबरें जारी की लेकिन तब तकक काफी देर हो चुकी थी । साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ने भी संवेदनहीन बयान से लेखकों का गुस्सा भड़का दिया ।लेखकों के पुरस्कार वापसी के विरोध में भी सैकड़ों लेख लिखे गए । सत्ताधारी दल के नेताओं ने इसको बिहार चुनाव से जोड़ने की कोशिश की । वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसके खिलाफ ब्लॉग लिखा लेकिन पुरस्कार वापसी का सिलसिला जारी रहा । लेखकों का आरोप था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी असहिष्णुता के मसले पर खामोश हैं । बाद में प्रधानमंत्री ने अपने लंदन दौरे के वक्त और राष्ट्रपति ने कई बार भारतीय समाज में सहिष्णुता को लेकर बयान दिए  । पुरस्कार वापसी से दबाव में आई साहित्य अकादमी ने कार्यकारिणी की आपात बैठक की और कालबुर्गी की हत्या की निंदा तो की ही पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों के आरोपों का जवाब देने का काम भी किया । इस बीच साहित्य अकादमी के दिल्ली मुख्यालय पर वामपंथी लेखकों ने मुंह पर कालीपट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन किया तो राष्ट्रवादी लेखकों के समूह ने भी पुरस्कार वापसी के खिलाफ प्रदर्शन किया । इस बीच कुछ युवा उत्साही लेखकों ने किताब वापसी अभियान की शुरुआत की और साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटानेवाले लेखकों की किताबें वापस लौटाने उनके घर तक जा पहुंचे । अभी हाल ही में साहित्य अकादमी की कार्यकारिणी ने लेखकों से पुरस्कार नहीं लौटाने की अपील की और ये भी फैसला किया कि जिन लेखकों ने पुरस्कार राशि के चेक अकादमी को भेजे हैं उनको नहीं भुनाया जाएगा । उसी दौर में कुछ फिल्मकारों ने भी राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाकर लेखकों का समर्थन किया था ।

दो हजार चौदह के दिसबंर में छत्तीसगढ़ सरकार ने रायपुर साहित्य महोत्सव का आयोजन किया था । इस आयोजन को लेकर दो-एक वामपंथी समीक्षकों ने वितंडा खड़ा करने की कोशिश की । वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना और विनोद कुमार शुक्ल की रायपुर साहित्य महोत्सव में उपस्थिति पर सवाल खड़े करते हुए अखबारों और पत्रिकाओं में लेख और जवाबी लेख लिखे गए । तीन चार महीने तक ये विवाद हिंदी साहित्य में गूंजता रहा था । वीरेन्द्र यादव के आरोपों का नरेश सक्सेना ने जोरदार तरीके से जवाब दिया था । इसके अलावा आलोचना पत्रिका के नए संपादक अपूर्वानंद ने पत्रिका के स्वरूप में बदलाव किया तो हिंदी में उसपर सवालिया निशान लगे । आलोचना में समाजशास्त्रीय लेखों की भरमार पर शंभुनाथ ने सवाल खड़े किए थे तो कुछ लोगों ने इसको वाणी प्रकाशन से अभय कुमार दूबे के संपादन में निकलने वाली पत्रिका प्रतिमान की अनुकृति करार दिया । साहित्य अकादमी ने गैंगटोक में भारतीय भाषा के लेखकों और प्रकाशकों के बीच संवाद का एक आयोजन किया था । इस कार्यक्रम में नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन बल्देव भाई शर्मा,वरिष्ठ कवि अरुण कमल, लीलाधर जगूड़ी, उपन्यासकार अखिलेश, वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी के अलावा तमिल और तेलुगू के लेखकों और प्रकाशकों ने हिस्सा लिया था । उस गोष्ठी में बेहद सकारात्मक चर्चा हुई थी । यह वर्ष भीष्म साहनी का जन्म शताब्दी वर्ष था जिसको लेकर कई अहम आयोजन हुए । मशहूर लेखक शानी की रचनावली का विमोचन इस साल की अहम साहित्यक घटना रही ।  

1 comment:

अजय कुमार झा said...

सटीक विश्लेषण ...बहुत गहरी समीक्षा की आपने ..इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं को पढना अच्छा लगा