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Saturday, April 23, 2016

साहित्य में ग्लैमर का तड़का ·

सनी लियोनी और साहित्य । सुनकर कुछ अजीब लगता है क्योंकि एक एडल्ट फिल्मों की नायिका जो इन दिनों बॉलीवुड फिल्मों में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रही है, जो लगातार चाल साल तक गूगल में सबसे ज्यादा सर्च की जानेवाली शख्सियत रही हों, उनका साहित्य से क्या लेना देना । परंतु सनी लियोनी अब कहानीकार के तौर पर सामने आई हैं । दो दिनों पहले भारतीय प्रकाशन जगत में एक नए डिजीटल पब्लिशिंग हाउस ने दस्तक दी है, नाम है जगरनॉट । इसने शुक्रवार को इसकी शुरुआत सनी लियोनी की कहानियों से की है । जगरनॉट के मोबाइल ऐप पर अगले दस दिनों तक हर रोज रात दस बजे सनी लियोनी की एक नई कहानी अपलोड की जाएगी । सनी लियोनी के कहानी संग्रह का नाम स्वीट ड्रीम्स है और इसको उनकी छवि के हिसाब से ही प्रकाशक ने प्रचारित भी किया है । दरअसल खबरों के मुताबिक प्रकाशन संस्थान ने सनी लियोनी को अपने लांच के लिए साइन किया था और उसकी तारीख को ध्यान में रखकर कहानी संग्रह तैयार करवाया गया था । सनी लियोनी की कहानियों में प्यार होगा, रोमांस होगा और डिजायर भी होगा । इसके अलावा जगरनॉट के लेखकों में विलियम डेलरिंपल, श्वेतलाना एलेक्सविच, अरुंधति राय, पोलस्टर प्रशांत किशोर और हुसैन हक्कानी जैसे बड़े नाम शामिल किए गए हैं । अभी इस डिजीटल प्रकाशन गृह की शुरुआत करीब सौ टाइटल के साथ की गई है और इसकी भविष्य की योजना में और भी किताबें हैं । सौ में से करीब पचास किताबें इन्होंने खुद तैयार की हैं और बाकी पटास अन्य प्रकाशकों के साथ साझा समझौते के तहत जारी की गई हैं ।  जगरनॉट की योजना के मुताबिक वो पहले ई फॉर्मेट में किताबें प्रकाशित करेंगे और फिर पाठकोंके रेस्पांस के हिसाब से उसको किताब के रूप में प्रकाशित करेंगे । भारतीय प्रकाशन जगत के लिए ये ठीक उल्टी प्रक्रिया है । यहां तो पहले कोई भी कृति किताब के रूप में प्रकाशित होती है फिर बाद में उसका डिजीटल संस्करण जारी किया जाता है या ज्यादा से ज्यादा दोनों एक साथ ही जारी किए जाते हैं ।  
जगरनॉट का दावा है कि वो भारत की पहली एप आधारित डिजीटल प्रकाशन गृह है जो पाठकों को इतनी कम कीमत पर किताबें उपलब्ध करवा रही है । इस महात्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत पाठकों के लिए पंद्रह रुपए रोज या फिर दो सौ निन्यानबे रुपए महीने की सदस्यता पर किताबें उपलब्ध की जाएंगी । अगर पाठक सदस्यता नहीं लेना चाहे तो निन्यानवे रुपए में किताबें उपलब्ध हैं जिसे डाउनलोड किया जा सकता है । दरअसल ये कहा जा सकता है कि प्रकाशन की दुनिया का ये स्टार्ट अप है जिसने मोबाइल यूजर के लिए उसकी सहूलियत को ध्यानमें रखते हुए उस फॉर्मेट में किताबों को पेश करने की योजना बनाई है । इस प्रकाशन गृह के पीछे पेंग्विन प्रकाशन की पूर्व एडिटर इन चीफ चिक्की सरकार और उनकी सहयोगी दुर्गा रघुनाथ हैं । अबतक इस स्टार्टअप में करीब पंद्रह करोड़ का निवेश हो चुका है । निवेशकों में नंदन नीलेकणी, फैब इंडिया के विलियम बिसिल और बोस्टन कंस्ल्टिंग ग्रुप के भारत प्रमुख नीरज अग्रवाल प्रमुख हैं । जगरनॉट का मानना है कि मोबाइल ऐप का जो इकोसिस्टम है वो पारंपरिक प्रकाशन से कम खर्चे पर चलता है । कम खर्चे की बात इस वजह से होती है कि ईबुक्स को एक बार तैयार करवाने में खर्च होता है बाकी तो उसके बाद जितने भी डाउनलोड होते हैं वो मुनाफा ही होता है ।  किताबों की तरह यहां नहीं है कि जितनी भी प्रति बिकेगी सबकी कुछ ना कुछ लागत होगी । संभव है तिक्की सरकार का अलग गणित हो लेकिन मोबाइल ऐप आधारित सभी कारोबार का इकोसिस्टम बेहद खर्चीला माना जाता है । स्टार्टअप बिजनेस के लिए किसी भी तरह का मोबाइव एप बनवाना बहुत आसान और सस्ता है लेकिन उस मोबाइल एप को डाउनलोड करवाना और फिर उसको रिटेन करवाना बहुत ही मुश्किल है । गूगल और फेसबुक भी छह सौ रुपए में एक ग्राहक बेचते हैं लेकिन उसको रिटेन करवाने का कोई फॉर्मूला उनके पास भी नहीं है ।  इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि एक मोबाइल एप को डाउनलोड करवाने का खर्च लगभग पांच सौ रुपए आता है और उसको ग्राहक अपने मोबाइल में कब तक रखेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है । भारत में मोबाइल के ग्राहकों की विशाल संख्या को देखते हुए वेंचर कैपिटलिस्टों को और स्टार्टअप को यहां एक बड़ा बाजार नजर आता है । वो भूल जाते हैं कि ज्यादातर स्मार्टफोन में मेमोरी बहुत कम होती है और ग्राहक अपने मोबाइल में खरीदारी के एप को ज्यादा से ज्यादा दो की संख्या में रखते हैं, नए डाउनलोड करते हैं तो पुराने हटा देते हैं ।  ये पूरा बिजनेस ट्रांसेक्शन की संख्या पर भी निर्भर करता है । जगरनॉट ने तो मोबाइल वैलेट कंपनी पेटीएम के साथ भी करार किया है । इस करार के मुताबिक कोई भी ग्राहक जिसके पास पेटीएम का ऐप है वो उसके जरिए भी जगरनॉट के ऐप तक पहुंच सकता है । जगपनॉट को पेटीएम के मोबाइल ग्राहकों की संख्या पर भी भरोसा है कि उनके जरिए किताबों की बिक्री हो सकेगी । ये तो आनेवाला वक्त ही तय करेगा कि मोबाइल वैलेट के लोग कितना पैसा किताबों के लिए निकालते हैं ।  दरअसल हमारे देश में हाल के दिनों में ग्रॉसरी से लेकर सब्जी तक के स्टार्टअप खुलते जा रहे हैं और उसी रफ्तार से बंद भी हो रहे हैं । मोबाइल एप पर आधारित इस तरह की ज्यादातर कंपनियां घाटे में चल रही हैं । घाटे में चल रही इन कंपनियों के लिए वेंचर कैपटलिस्ट की पूंजी प्राणवायु का काम तो करती है लेकिन ये दीर्घकालीन हल नहीं देते हैं क्योंकि वेंचर कैपटलिस्ट पहली बात तो इक्विटी से अपना घाटा पूरा करते हैं और फिर कंपनी की वैल्यूएशन के आधार पर उसको मौका मिलते ही बेच देते हैं । किसी भी कारोबार को शुरू करने और उसकी सफलता के लिए माना जाता है कि आपको अपने प्रोडक्ट के बारे में औरों से बेहतर जानकारी हो, आपको अपने ग्राहकों के स्वभाव और उनकी खरीदारी के पैटर्न का बेहतर अंदाजा हो और कारोबार को सफल करने का ख्वाब हो । लेकिन स्टार्टअप में एक और चीज जोड़ी जानी चाहिए कि कारोबारी को इस बात का भी इल्म हो कि उसके ट्रांजेक्शन कैसे बढ़ाए जा सकते हैं । चिक्की सरकार को अपने प्रोडक्ट के बारे में बेहतर ज्ञान है और पेटीएम के विजय शेखर शर्मा खरीदारी के पैटर्न का अंदाज है । विजय शर्मा भी जगरनॉट के सलाहकार हैं तो ये उम्मीद की जानी चाहिए कि ये स्टार्टअप सफल होगा । साहित्य जगत के लिए भी इसका सफल होना बेहतर होगा ।

दिसंबर दो हजार पंद्रह तक भारत में मोबाइल पर इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाले तीस करोड़ छह लाख ग्राहक थे और इंडस्ट्री के अनुमान के मुताबिक ये इक्कीस फीसदी की दर से बढ़कर जून दो हजार सोलह तक सैंतीस करोड़ की संख्या को पार कर जाएगा । मोबाइल पर इंटरनेट के इस्तेमाल के विस्तार को देखते हुए जगरनॉट का बिजनेस मॉडल बेहतर कर सकता है बशर्ते कि इसका खूब प्रचार प्रसार हो । जगरनॉट का मानना हो सकता है कि जिस तरह से मोबाइल का विस्तार हो रहा है उससे ये संख्या और भी बढ़ सकती है । जगरनॉट जून में हिंदी की किताबें भी ईफॉर्मेट में पेश कर रही है । हिंदी के प्रकाशक वाणी प्रकाशन की कॉपीराइट की निदेशक अदिति माहेश्वरी जगरनॉट का स्वागत करती हैं और कहती हैं कि ये भारतीय भाषाओं के लिए अच्छी बात है नए नए फॉर्मेट में किताबें आ रही हैं और साथ ही पूंजी निवेश भी हो रहा है । पर मुझे लगता है कि पाठकों को मोबाइल के एप तक पढ़ने के लिए लाना बहुत मुश्किल काम है । इस तरह का काम काफी सालों से डेलीहंट नाम की कंपनी करती है जो बेहद कम मूल्य पर भारतीय भाषाओं की पुस्तकें बेच रही हैं । उनके बिजनेस मॉडल का पता नहीं है कि वो मुनाफे में है या नहीं । प्रकाशन कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि भारत में किताबों को लेकर जो प्यार और अपनापन पाठकों के दिलो दिमाग तक छाया हुआ है वो अहसास उनको वर्चुअल बुक्स से नहीं मिलता है यही वजह है कि भारत में अबतक ईबुक्स का बहुत बड़ा बाजार नहीं बन पाया है । इस साल जनवरी में दिल्ली में हुए विश्व पुस्तक मेले में पाठकों की उमड़ती भीड़ ने भी इस बात तो साबित किया है कि पुस्तकों के प्रति पाठकों का प्यार कम नहीं हुआ है । तो पुस्तक प्रेमियों के इस समाज में सनी लियोनी जैसी सेलिब्रिटी ईफॉर्मेट तक ले जाएंगी, देखना दिलचस्प होगा । 

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