बद्री नारायण की एक कविता है – प्रेम पत्र । इस कविता में बद्री
प्रेत, गिद्ध, बारिश, चोर, आग, सांप, झींगुर, कीड़े आदि का नाम लेकर कहते हैं कि
इन सबके निशाने पर प्रेम पत्र होगा । आगे वो कहते हैं- प्रलय के दिनों में
सप्तर्षि मछली और मनु / सब वेद बचाएंगें/ कोई नहीं बचाएगा प्रेमपत्र/ कोई रोम बचायेगा कोई मदीना/ कोई चांदी बचाएगा कोई
सोना/ मैं निपट अकेला कैसे बचाऊंगा तुम्हारा प्रेमपत्र ।‘
इस कविता में कवि प्रेम
पत्र को बचाने की चिंता करता है । चिंता वाजिब भी है तकनीक के दौर में पत्रों का
चलन तो कम हो गया लेकिन प्रेमपत्र ना तो खत्म हुए हैं और ना ही खत्म होंगे । मुझे
तो लगता है कि जबतक बचा रहेगा प्रेम, तबतक रहेंगे प्रेमपत्र । अभी हाल ही में
फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौट और कथित रूप से ऋतिक रोशन के बीच के ईमेल सार्वजनिक
हुए हैं । कथित तौर पर ऋतिक रोशन इस वजह से कि ये मामला अभी कोर्ट में है और ऋतिक
के वकीलों का दावा है कि ऋतिक के नाम से किसी ने फर्जी ईमेल आईडी बनाई थी।अब
अमेरिकी कंपनी से अनुरोध किया जा रहा है कि वो ऋतिक रोशन के कथित ईमेल अकाउंट की
जानकारी मुहैया करवाएं । खैर हम तो बस प्रेम पत्रों तक अपनी बात को सीमित रखेंगे ।
एक सौ चालीस करेन्क्टर के ट्विटर के दौर में भी प्रेम पत्र का बचा
होना प्रेम के बचे होने की आश्वस्ति देता है । आज अपने रिश्तों को, अपने संबंधों
को, अपनी विरासत को, अपने अतीत को, अपने पूर्वजों को, अपने शिक्षकों को, अपने
साथियों को, अपने दोस्तों, अपनी प्रेमिकाओं को, अपने प्रेमियों को भूलने का दौर है
। इस अकल्पनीय युग में अगर हम प्रेम पत्र को नहीं भूल पा रहे हैं तो ये प्रेम की
ही ताकत है । प्रेम में वो ताकत है जिसके सैकड़ों परमाणु बम मिलकर भी खत्म नहीं कर
सकते हैं । सृष्टि बची रहेगी तो प्रेम भी बचा रहेगा । प्रेम बचेगा तो प्रेम पत्र
भी बचे रहेंगे । संभव है कि प्रेम पत्रों का रंग रूप, मन-मिजाज, आकार प्रकार आदि
बदल जाएं पर प्रेम की अभिव्यक्ति का ये माध्यम कायम रहेगा । ऐसा शायद ही कोई शख्स
होगा जिसने अपनी जिंदगी में प्रेम पत्र ना लिखा हो । कई वीर पुरुष अपने प्रेम पत्रों
को गंतव्य तक पहुंचा देते हैं तो कई डरपोक किस्म के आशिक प्रेम पत्रों को तह लगाकर
तकिए के नीचे रखकर जिंदगी गुजार देते हैं । स्कूली दिनों से कॉलेज के दिनों तक
प्रेम पत्र लिखने के कई तरह के किस्से आम हैं । प्रेमिका तक उसके छोटे भाई और उसकी
बहन के मार्फत प्रेम-पत्र पहुंचाने की परंपरा रही है । प्रेमिका के छोटे भाई या
बहन के मार्फत भेजे जानेवाले प्रेम पत्र बहुधा पकड़ भी लिए जाते थे और फिर मोहब्बत
का फसाना आम हो जाता था । कभी प्रेमी की पिटाई तो कभी प्रेमिका पर बंदिश लगाकर
मोहब्बत पर ब्रेक लगाने की कोशिश की जाती रही है लेकिन प्रेम पत्रों को रोकना
नामुमकिन होता है । तमाम बाधाओं के बाद भी प्रेम पत्र अपने गंतव्य तक पहुंचते रहे
हैं । बदलते जमाने के साथ तो प्रेम पत्रों को फॉर्मेट भी बदल गया है । पहले याहू
चैट, फिर जीमेल चैट, फिर एसएसएस संदेश के मार्फत इजहार ए मोहब्बत और अब तो सबसे
ज्यादा लोकप्रिय है व्हाट्सएप चैट । तकनीक के उन्नत होने के दौर ने लंबे लबे प्रेम
पत्रों की परंपरा अवश्य खत्म की लेकिन व्हाट्सएप जैसे एप के मार्फत होनेवाले लंबे
चैट ने उसकी जगह ले ली । अब तो प्रेमी प्रेमिकाओं के पास अपने संवेदनाओं को प्रेषित
करने के साथ साथ अपनी तस्वीरें भेजने का विकल्प भी है ।
प्राय: यह माना जाता है कि साहित्य की दुनिया में प्रवेश करनेवाले ज्यादातर लेखक
प्रेम पत्रों के जबरदस्त लेखक होते हैं । एक जमाना था जब साहित्य में भी प्रेम
पत्रों की खासी अहमियत होती थी । सारिका जैसी साहित्यक पत्रिका ने, मेरे जानते, दो
अंक सिर्फ प्रेम पत्रों पर केंद्रित किए थे । अभी हाल ही में प्रतिलिपि डॉट कॉम और
हिंदी अकादमी की पत्रिका इंद्रप्रस्थ भारती ने प्रेम पत्रों को तवज्जो देने का
ऐलान किया है । प्रतिलिपि डॉट कॉम ने तो प्रेम पत्रों को पुरस्कृत करने का एलान
किया है वहीं हिंदी अकादमी की उपाध्यक्षा मैत्रेयी पुष्पा ने अपने संस्थान से
निकलनेवाली पत्रिका के लिए प्रेम पत्र लेखकों को आमंत्रित किया है । इन्हें हम
प्रेम पत्र की वापसी का दौर तो नहीं मान सकते हैं क्योंकि वापसी तो उसकी होती है
जो खत्म हो चुका होता है, हां इतना अवश्य कह सकते हैं कि साहित्य के लोगों ने एक
बार फिर से प्रेम पत्रों की ओर ध्यान दिया है । अभी पिछले दिनों ज्ञानपीठ ने
पुष्पा भारती के धर्मवीर भारती को लिखे प्रेम पत्रों का संकलन छापा था । यह एक
बेहद दिलचस्प किताब बनी है । कहानियों और उपन्यासों में तो प्रेम पत्रों के महत्व
पर कई लेखकों ने प्रकाश डाला है । लेकिन यथार्थ की खुरदरी जमीन पर प्रेम सूखने लगा
था और कहानियों, उपन्यासों आदि से प्रेम गायब होने लगे थे । विचारधारा के कोलाहल
के बीच, नारेबाजी के बोलबाले के दौर में लिखे जानेवाले साहित्य ने कविता से लेकर
कहानी और उपन्यास हर जगह प्रेम को नेपथ्य में भेज दिया । यह अकारण नहीं है कि धर्मवीर
भारती के गुनाहों के देवता और मनोहर श्याम जोशी के कसप के बाद कोई दूसरा प्रेम
उपन्यास पाठकों के बीच उतना लोकप्रिय नहीं हो सका । आज भी पुस्तक मेलाओं में
गुनाहों का देवता और कसप के पीछे पाठक पागल रहते हैं । कविता की दुनिया से भी
प्रेम लगभग ओझस नजर आता है । एक बड़ी लाइन और फिर छोटी लाइन वाली कविता से प्रेम
गायब है । कुछ कवि अवश्य प्रेम कविताएं लिख रहे हैं लेकिन उन कविताओं में प्रेम को
लेकर एक हिचक है, हिचक विचारधारा से खौफ का है । कहा गया है कि आधे मन से किया गया
गया कोई कभी वो प्रभाव नहीं छोड़ता जो पूरे नम से किया गया काम छोड़ता है । इधर
कुछ नए लेखकों के उपन्यासों में प्रेम बगैर सेंसर किए रूप में प्रकट होने लगा है ।
उम्मीद की जानी चाहिए कि हिंदी का कोई लेखक तकनीक के इस उन्नत दौर में प्रेम-पत्रों
के लिए कुछ करेगा अन्यथा बद्री नारायण जैसे कवि को एक बार फिर से प्रेम पत्रों को
लेकर चिंता प्रकट करनी पड़ सकती है ।
2 comments:
प्रतिलिपि डॉट कॉम सिर्फ प्रेम पत्रों को ही नहीं हर तरह के पत्रों को प्र्रस्कृत करेगी - हमारा उद्देश्य हिंदी साहित्य में लगभग मृत हो चुकी पत्र -लेखन की विधा को पुनर्जीवित कर उसे समृद्ध करना है | आपने हमरे इस अभियान को उल्लिखित किया इसके लिए पूरी प्रतिलिपि टीम की ओर से आपको हार्दिक धन्यवाद - वीणा वत्सल सिंह (हिंदी अधिकारी @ pratilipi.com
प्रतिलिपि डॉट कॉम सिर्फ प्रेम पत्रों को ही नहीं हर तरह के पत्रों को प्र्रस्कृत करेगी - हमारा उद्देश्य हिंदी साहित्य में लगभग मृत हो चुकी पत्र -लेखन की विधा को पुनर्जीवित कर उसे समृद्ध करना है | आपने हमरे इस अभियान को उल्लिखित किया इसके लिए पूरी प्रतिलिपि टीम की ओर से आपको हार्दिक धन्यवाद - वीणा वत्सल सिंह (हिंदी अधिकारी @ pratilipi.com
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