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Sunday, April 17, 2016

हिंदू राष्ट्र के खतरे का खटराग

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी में बदलाव को सीपीएम के महासचिव बिल्कुल अलग तरीके से देखते हैं । येचुरी के मुताबिक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में बदलाव असहिष्णुता का उदाहरण है । येचुरी इतने पर ही नहीं रुकते हैं वो कहते हैं कि ये हिंदू राष्ट्र की तरफ बढ़ा एक कदम है । उन्होंने अपने बयान को और आगे बढ़ाते हुए कहा कि इस तरह की संस्थाओं के मैनेजमेंट के पुनर्गठन करके केंद्र सरकार देश की धर्मनिरपेक्षता को कोमजोर कर रही है । येचुरी के मुताबिक मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुरू से ही धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करके हिंदू राष्ट्र बनाना चाहती है । दरअसल हाल ही में केंद्र सरकार ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी के चेयरमैन चिन्मय गरेखान समेत तमाम सदस्यों को हटाकर उनकी जगह पर नई नियुक्तियां की हैं । वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय को इसका नया चेयरमैन नियुक्त किया गया है । अब सीताराम येचुरी को लग रह है कि राम बहादुर राय को चेयरमैन बनाकर केंद्र सरकार देश को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहती है । यह ठीक है कि राम बहादुर राय वामपंथी नहीं हैं और विचारों से वो दक्षिणपंथी हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वो देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को कोमजोर करने के लिए नियुक्त किए गए हैं । हर सरकार अपने हिसाब से संस्थाओं में नियुक्तियां करती हैं । इसमें येचुरी साहब को असहिष्णुता नजर आती है तो आश्चर्य की बात है । येचुरी साहब के इस बयान से उनका नहीं बल्कि पूरे वामपंथ की हताशा नजर आती है । जब से केंद्र में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में सरकार बनी है उस वक्त से ही वामपंथियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया कि अब संस्थाओं को खत्म किया जा रहा है । येचुरी साहब को जिसमें असहिष्णुता नजर आती है वो दरअसल संस्थाओं के सम्मान की परंपरा है । केंद्र सरकार अगर चाहती तो दो साल पहले भी इसके बोर्ड को भंग करके मन-मुताबिक नियुक्तियां कर सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया । इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में सरकार बदलने के बाद क्या क्या और किस तरह से किया गया है वो ज्ञात है और उसको दोहराने की जरूरत नहीं है ।
दरअसल सीताराम येचुरी जब इस तरह के बयान देते हैं तो उसके पीछे हताशा के अलावा संस्थाओं से बाहर होने का दर्द भी छलकता है । इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी ने कला और संस्कृति के साथ-साथ साहित्यक संस्थाएं भी उनके हवाले कर दी थी । करीब चार दशक से इन संस्थाओं पर कुंडली मारकर बैठे वामपंथियों को जब हटाया जाने लगा तो उनको असहिष्णुता और हिंदू राष्ट्र की ओर बढ़ा कदम नजर आने लगा । सीताराम येचुरी बेहद पढे लिखे महासचिव हैं लेकिन जब वो इस तरह की बातें करते हैं तो भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र की ताकत को कम करके आंकते हैं । हमारे देश का धर्मनिरपेक्ष चरित्र इतना मजबूत है और उसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि किसी दो चार या दर्जन भर संस्थाओं में किसी को भी पदासीन कर उसको कमजोर नहीं किया जा सकता है । येचुरी को लगत है कि सिर्फ उनकी ही विचारधारा यानि मार्क्सवाद धर्मनिरपेक्षता की ध्वजवाहक है । येचुरी को ये भी लगता है कि उनकी ही विचारधारा लोकतंत्र को मजबूत कर सकती है । लेकिन देश-दुनिया में ऐसे तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं जहां मार्क्सवादियों का शासन रहा वहां उन्होंने तानाशाही को अपनाया और लोकतंत्र को कमजोर किया । चाहे चीन हो, रूस यो फिर क्यूबा हो । पश्चिम बंगाल में दशकों तक वामपंथी शासनकाल के दौरान क्या हुआ उसका मूल्यांकन होना शेष है । इसलिए जब येचुरी जैसे लोग हिंदू राष्ट्र के खतरे का राग अलापते हैं तो उसका ज्यादा असर होता नहीं है । साख के लिए जरूरी है मजबूत बुनियाद, जो अब वामपंथियों के पास रही नहीं ।  


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