अभी हाल ही में उर्दू के सबसे बड़े कहानीकारों में एक जोगेन्द्र पॉल
का निधन हुआ तो अचानक सेउनके पहले कहानी संग्रह धरती का काल में प्रकाशित कृष्ण
चन्दर की टिप्पणी स्मृति में कौंध गई । कृष्ण चन्दर ने लिखा था – ‘पहली बार जब मैं जोगेन्द्र
पॉल से मिला तो वो मुझे अपनी शक्लो-सूरत, चाल-ढाल और किरदार के एतबार से एक मालदार
जौहरी नजर आया । बाद में मुझे मालूम हुआ कि मेरा अंदाजा ज्यादा गलत भी ना था । वह
जौहरी तो जरूर है पर हीरे-जवाहरात का नहीं, कहानियों का –और मालदार है लेकिन अपने
फन का । जोगेन्द्र पॉल ने उर्दू अफसाने की दुनिया में एक नये माहौल का इजाफा किया
है । उसने दास्तान का लुत्फ बरकरार रखा है क्योंकि वो मगरबी फन का कायल बड़ा कायल
है । सस्पेंस में उसे बड़ा मजा आता है और
सस्पेंस के बाद उसे झटका देना भी खूब आता है ।‘ जोगेन्द्र
पॉल पर कृष्ण चन्दर की यह टिप्पणी उनके लेखन को समझने के लिए काफी है । जोगेन्द्र
पॉल उर्दू के बहुत बड़े लेखक थे और उस पूरे उपमहाद्वीप में उर्दू पाठकों के बीच
उनकी लोकप्रियता काफी थी । जोगेन्द्र पॉल की मातृभाषा पंजाबी थी लेकिन उन्होंने उर्दू
में रचमात्मक लेखन कर उस भाषा और साहित्य को समृद्ध किया । जोगेन्द्र पॉल का मानना
था कि उर्दू भाषा नहीं बल्कि तहजीब है वो अपना रचनात्मक लेखन एक तहजीब में करते
हैं । जोगेन्द्र पॉल का जन्म 1925 में अविभाजित भारत के सियालकोट में हुआ था और
विभाजन के बाद वो हरियाणा के अंबाला में आकर रहने लगे । इस बीच उनकी पहली कहानी
उर्दू की मशहूर पत्रिका साकी में प्रकाशित होकर पाठकों और आलोचकों का द्यान अपनी
ओर खींच चुकी थी । अंबाला पहुंचने पर उनका विवाह हुआ और पत्नी के साथ उनको केन्या
जाना पड़ा । उनकी रचनाओं में विभाजन और विस्थापन का दर्द कई बार झलकता है । केन्या
में वो अंग्रेजी पढ़ाते थे और एक लंबे अंतराल के बाद वो भारत लौटे और महाराष्ट्र
के औरंगाबाद में एक कॉलेज में चौदह साल तक प्रिंसिपल रहे और उसके बाद उन्होंने
नौकरी नहीं की और पूर्णकालिक लेखक बनकर दिल्ली में रहने के लिए चले आए । जोगेन्द्र
पॉल का पहला संग्रह उन्नीस सौ इसठ में छपा –धरती का काल । इस संग्रह में नैरोबी के
इनके प्रवास के दौरान वहां के जीवन को केंद्र में रखकर लिखी गई कहानियां हैं । इस
संग्रह से साहित्य की दुनिया में प्रवेश करनेवाले जोगेन्द्र पॉल ने उस वक्त की
अफ्रीका की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक गतिविधियों से उर्दू साहित्य का परिचय
करवाया गया है । उर्दू के मशहूर आलोचक गोपी चन्द नारंग का कहना है कि- जोगेन्द्र पॉल
इशारों और अलामतों में पनाह नहीं लेते, वह हकीकत का तजजिया करके उसे मजरूह भी नहीं
करते , बल्कि उसकी सालिमियत को नुकसान पहुंचाए बगैर बड़ी सादगी से उसे हू ब हू पेश
कर देते हैं । किसी भी तख्लीक के फन का कमाल यह है कि उसपर फनकारी का गुमान न हो ।
जोगेन्द्र पॉल की कहानियां इस लिहाज से मुमताज हैं ।‘ जोगेन्द्र
पॉल ने विपुल लेखन किया है और उनके तेरह से अधिक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके
हैं जिनमें खुला, खोदू बाबा का मकबरा और बस्तिआन शामिल हैं । कहानियों के अलावा
पॉल ने कई उपन्यास भी लिखे जिनमें से एक बूंद लहू की खासी चर्चित रही है । जोगेन्द्र
पॉल के तीन लघुकथा संगह भी प्रकाशित हुए हैं । अच्छी बात यह है कि पॉल की ज्यादातर
किताबें हिंदी में भी अनूदित हैं । उनकी कुछ किताबों को अंग्रेजी के प्रकाशकों ने
भी प्रकाशित किया है । जोगेन्द्र पॉल को ढेर सारे सम्मानों से भी सम्मानित किया जा
चुका है उनको सार्क लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, बहादुरशाह जफर पुरस्कार, गालिब
पुरस्कार मिल चुका है । उर्दू साहित्य में उनके योगदान को लेकर कतर में
अंतराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । जोग्नद्र पॉल का निधन से उर्दू
के अलावा हिंदी के लिए भी बड़ी क्षति है ।
No comments:
Post a Comment