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Monday, October 3, 2016

जंग नहीं डिप्लोमेसी में दो मात


पिछले सप्ताह पाकिस्तान में सर्जिकल ऑपरेशन के बाद दो अहम घटनाएं हुईं जिसपर ध्यान देकर पाकिस्तान को अलग थलग करने की जरूरत है । पाकिस्तान के साथ सिंधु नदी समझौते पर पुनर्विचार करने की भारत की मंशा के बीच चीन ने ब्रह्मपुत्र का पानी रोका और संयुक्त राष्ट्र में मुंबई पर हमले के मास्टरमाइंड आतंकवादी हाफिज सईद और लखवी को आतंकवादी घोषित करने की मुहिम पर वीटो कर दिया । हलांकि ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी जियोबुकु का पानीरोकने का भारत पर बहुत मामूली असर पड़ेगा याकह सकते हैं कि इसका कोई असकर नहीं पड़ेगा । लेकिनइस तरह के कदमों के एलाम का एक प्रतीकात्नमक महत्व होता है और चीन उसी महत्व को समझकरऐसा कर रहा है । पाकिस्तान के साथ तनातनी के बीच भारत को चीन को लेकर सतर्क रहना होगा । पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल ऑपरेशन के बाद जिस तरह से भारत के डिप्लोमैट्स ने दुनियाभर की राजधानियों में पाकिस्तान के खिलाफ या भारत के पक्ष में माहौल बनाया वो काबिले तारीफ है । इस राजनयिक जंग की कमान विदेश सचिव एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीक डोबल ने संभाला हुआ है और इसके नतीजे भी मिल रहे हैं । गौरतलब है कि पिछले कई सालों से पाकिस्तान की हरकतों ने इन दोनों का काम थोड़ा आसान भी कर दिया है । बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान ने जिस तरह से भारत का साथ दिया वो रेखांकित किया जाना चाहिए । सार्क के राष्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन रद्द करते हुए नेपाल ने भी काफी कड़ा रुख अख्तियार किया था । बाद में तो भारत के रुख को मालदीव और श्रीलंका का भी साथ मिला । आतंकवाद के खिलाफ लगभग सभी सार्क देशों ने नई दिल्ली के सुर में सुर मिलाया । अमेरिका ने भी भारत के सर्जिकल हमले को परोक्ष रूप से समर्थन दिया । उसने इस मसले पर तटस्थ रुख अख्तियार किया हुआ है लेकिन पाकिस्तान के आतंकवादियों के खिलाफ लगातार अमेरिका से बयान आ रहे हैं । यह भारत की कूटनीतिक सफलता ही मानी जाएगी । रूस को भी भारतीय राजयनियों ने एक तरह से समझाने में सफलता प्राप्त कर ली है लेकिन भारत की अमेरिका से बढ़ती नजदीकी रूस को पाकिस्तान की ओर ले जा सकती है । इस बारे में भारत के राजनयिकों को सोचना होगा । सर्जिकल अटैक के मुद्दे पर बीजिंग का रुख साफ नहीं था लेकिन जिस तरह से उसने ब्रह्मपुत्र नदी के पानी औप हाफिज सईद और लखवी पर स्टैंड लिया है उससे साफ है कि उसका झुकाव पाकिस्तान की तरफ है । भारत पाकिस्तान के बीच जारी इस माहौल में चीन को तटस्थ रखना या अपने पाले में लाना भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है । भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध तो अंतिम विकल्प होना चाहिए उसके पहले ये युद्ध राजनयिक स्तर पर लड़कर जीतने और पाकिस्तान को विश्व पटल पर हाशिए पर धकेलने की कोशिश की जानी चाहिए । क्योंकि युद्ध से नुकसान तो दोनों का होना तय है ।

पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है । स्रजिकल अटैक के बाद बौखलाहट में रावलपिंडी से आतंकवादियों को और मदद मिलेगी और ये तो पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि वो नॉन स्टेट एक्टर्स के कंधे पर बंदूक रखकर चलाता रहा है । आजादी के बाद 1947 से लेकर अगर अबतक के दोनों देशों के बीच संघर्ष का इतिहास देखें तो पाकिस्तान हमेशा से नॉन स्टेट एक्टर्स के माध्यम से ही अपनी सीमाओं को बढ़ाने की जुगत में लगा रहा है । इस बार भी पीओके में बारत के सर्जुकल अटैक के बाद माना जा रहा था कि पाकिस्तान की ओर से उसके समर्थित आतंकवादी भारतीय सेना के कैंपों पर हमले कर सकते हैं । इस आशंका के मद्देनजर भारत की सेना और अर्धसैनिक बदल पूरी तरह से ना केवल सजग थे बल्कि वो पलटवार करने को भी तैयार थे । लिहाजा जब रविवार की रात को बारामूला के सेना के कैंप पर आतंकवादियों ने हमला किया तो सैनिकों ने उनको मुंहतोड़ जवाब दिया । राष्ट्रीय राइफल्स के बारामूला के कैंप पर आतंकवादियों ने कैंप से सटे पार्क के रास्ते घुसने की कोशिश की लेकिन चौकन्नी सेना ने आतंकवादियों को देखकर उनको चारों तरफ से घेर कर फायरिंग शुरू कर दी और आतंकवादियों को ढेर कर दिया । इस बीच जम्मू कश्मीर और राजस्थान के कई इलाकों से पाकिस्तानी घुसपैठ को नाकाम करने की खबरें भी हैं । सवाल यही है कि क्या पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत क उसपर हमला कर देना चाहिए । देश में कुछ उत्साही समूह इस तरह की मांग कर रहे हैं लेकिन युद्ध से ज्यादा जरूरी है पाकिस्तान को डिप्लोमैसी में परास्त कर फसको पूरीदुनिया से काट देना । इस काम को बेहद संयम से करना होगा लेकिन डिप्लौमैसी के इस युद्ध को जीतने के लिए पाकिस्तान को लगातार सर्जिकल अटैक जैसे झटके भी नियमित अंतराल पर देते रहने होंगे ।  
(नारद न्यूज- 3 अक्तूबर)

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