बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार सरकार ने शिक्षा
माफिया पर नकेल कसना शुरू कर दिया है । एक ऐतिहासिक फैसले में बिहार विद्याल.
परीक्षा समिति ने 68 स्कूलों की बारहवीं की मान्यता रद्द कर दी है । इसके अलावा 19
स्कूलों की मान्यता को भी निलंबित कर दिया गया है । बिहार में टॉपर घोटाले के बाद ये
अबतक की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है । बिहार की सियासत को नजदीक से देखने वालों
का मानना है कि नीतीश कुमार इस मामले में लालू यादव के दबाव में नहीं आते हुए
कार्रवाई कर रहे हैं । दरअसल बिहार के टॉपर घोटाले के मास्चर माइंड और बोर्ड के
पूर्व अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद के साथी बच्चा राय को लालू यादव का करीबी माना
जाता है । पहले शहाबुद्दीन के मामले में सुप्रीम कोर्ट जाकर नीतीश ने साफ कर दिया
कि वो किसी के दबाव में नहींआनेवाले हैं और अब इस कार्रवाई से भी कुछ इसी तरह के
संकेत निकल रहे हैं । मान्यता रद्द करने की इस कार्रवाई के बाद बच्चा राय पर
शिकंजा और कसेगा । पिछले साल टॉपर घोटाले के सामने आने के बाद ताबड़तोड़ छापेमारी
समेत कई कार्रवाइयां की गई थीं और ये संदेश देने की कोशिश की गई कि शिक्षा में
घपला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा । कई गिरफ्तारियां भी हुईं थी । प्रशासनिक मामलों
में कार्रवाई होना और कार्रवाई होते दिखना दोनों आवश्यक है । दरअसल पिछले साल
बिहार में बोर्ड की परीक्षा के वक्त एक तस्वीर छपी थी जिसमें स्कूल की हर खिड़की
पर एक शख्स खड़ा होकर नकल करवा रहा था । ये फोटो और इस घटना का वीडियो सोशल साइट्स
पर वायरल हुआ । देश विदेश के अखबारों में इस तस्वीर के हवाले से लेख लिए गए, न्यूज
चैनलों पर प्रोग्राम बने । इस तस्वीर की स्मृति धुंधली हो ही रही थी कि बिहार में
टॉपर घोटाला हो गया ।
हाजीपुर की एक लड़की ने बोर्ड में टॉप किया वो पॉलिटिकल साइंस को
प्रोडिकल साइंस कह रही थी । इसको भी गिरफ्तार आदि कर तमाम कार्रवाईयां की गईं । कहना
ना होगा कि शिक्षा घोटाले पर बिहार सरकार सख्त है लेकिन सरकार को इस समस्या की जड़
में भी जाना होगा । इस तरह के घोटालों या फिर हर खिड़की पर नकल करानेवालों की
तस्वीर सामने आने के पीछे बिहार की शिक्षा व्यवस्था में लगा घुन या फिर राज्य
सरकार की उदासीनता है ।
बताया जा रहा है कि देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने छपरा के जिस
स्कूल से दसवीं पास की थी उस स्कूल की हालत ये है कि वहां नवीं- दसवीं के लिए एक
भी शिक्षक नहीं हैं । चूंकि राजेन्द्र बाबू ने वहां पढ़ाई की थी लिहाजा उसकी
ऐतिहासिकता को देखते हुए हाई स्कूल को इंटर कॉलेज बना दिया गया । स्कूल को अपग्रेड
तो कर दिया गया लेकिन स्कूल की रीढ़ माने जानेवाले शिक्षक वहां नहीं है । अब जिस
स्कूल में कोई शिक्षक नहीं हो और साल दर साल वहां परीक्षा हो तो फिर क्या हो सकता
है इसकी कल्पना ही की जा सकती है । ये तो रहा हाईस्कूल का हाल, अब जरा उसी इंटर कॉलेज
में शिक्षकों की स्थिति देख लीजिए जहां स्वीकृत पद से एक तिहाई शिक्षक नियुक्त हैं
। छपरा के इस इंटर क़लेज के बारे में जिला के शिक्षा अधिकारियों को जानकारी है
लेकिन फिर भी बगैर शिक्षक के स्कूल चल रहा है । ऐसा नहीं है कि ये स्थिति छपरा के
एक स्कूल की है । बिहार में कई ऐसे कॉलेज भी हैं जहां विषय विशेष में कोई भी
शिक्षक नहीं है लेकिन वहां हर साल एडमिशन हो रहा है और छात्र पास भी कर रहे हैं । मुंगेर
के एक कॉलेजों में केमिस्ट्री, ज्योग्राफी और संस्कृत में कोई शिक्षक नहीं है
लेकिन वहां हर साल इन विषयों में छात्रों का नामांकन हो रहा है । इसी तरह से इसी
शहर के एक और कॉलेज में शिक्षकों की संख्या इतनी कम हो गई है कि कॉलेज के जरूरी
काम भी संभव नहीं हो पा रहे हैं । पास के खड़गपुर के कॉलेज की भी स्थिति कुछ बेहतर
नहीं है । अब यह तो अजूबा है कि किसी कॉलेज में विषय का कोई शिक्षक नहीं हो और
वहां से हर साल उसी विषय में छात्र पास कर रहे हों । यहीं से नकल और टॉपर घोटाले
की जमीन तैयार होती है । छात्र मजबूर हैं, स्कूल और क़ॉलेज के शिक्षक इस नासूर को
रोकने में बेबस । सवाल यही उठता है कि टॉपर घोटाले में छापेमारी करके मुजरिम तो
पकड़े जा सकते हैं लेकिन साल दर साल इस तरह के घोटाले के लिए तैयार होनेवाली
स्थिति के बारे मे बिहार सरकार कब सोचना शुरू करेगी ।
बिहार की शिक्षा व्यवस्था में कमजोरी की जड़ में बहुत हद तक शिक्षकों
की कमी का होना है । प्रशासनिक लालफीताशाही में शिक्षकों की नियुक्ति का मामला
उलझता रहा है और विभागीय मंत्रियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया । प्राइमरी स्कूल से
लेकर कॉलेज तक ये बीमारी व्याप्त है लेकिन इसके इलाज के लिए पिछले एक दशक में कुछ
किया गया हो ये दिखाई नहीं देता । चंद सालों पहले जब ठेके पर प्राइमरी शिक्षक रखे
गए थे तब उसमें भी गड़बड़झाला हुआ था । बाद में पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद तीन
हजार कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों को बर्खास्त करने की प्रक्रिया शुरू की गई थी क्योंकि
जब उनका टेस्ट लिया गया तो वो आधारभूत जानकारी भी नहीं बता पाए । दो हजार बारह में
भी एक सौ इक्यावन प्राइमरी शिक्षकों को योग्य नहीं होने के चलते हटा दिया गया था ।
बिहार में महागठबंधन की सरकार में इस वक्त कांग्रेस कोटे से शिक्षा मंत्री हैं ।
पिछले दिनों उनका तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी से ‘डियर’ विवाद हुआ था । अशोक
चौधरी से अपेक्षा की जाती है कि पहले वो बिहार के स्कूल और कॉलेजों में बुनियादी
सुविधा मुहैया करवाएं फिर विवादों में उलझें । योग्य शिक्षकों की नियुक्ति करवाएं
तभी ना तो खिड़की से लटके नकल करवानेवाले की तस्वीर सामने आएगी और ना ही टॉपर
घोटाला होगा और ना ही बिहार की बदनामी होगी और बिहारियों का मजाक बनेगा ।
1 comment:
शिक्षा राजनितिक दलों और राजनीतिज्ञों के लिए कभी प्राथमिकता वाला क्षेत्र रहा ही नहीं।सिर्फ बिहार ही क्यों कमोबेश पुरे देश में शिक्षा की यही स्थिति है।
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