थर्डफ्रंट पर हर ओर चर्चा हो रही है । क्या भूमिका होगी इस चुनाव में इस फ्रंट की, और क्या रहा है इसके नेताओं का ऐतिहासिक चरित्र -इसका आकलन कर हैं वरिष्ठ पत्रकार प्रभात शुंगलू । प्रभात की भाषा से शुद्धतावादियों को आपत्ति हो सकती है लेकिन एक ही वाक्य में अंग्रेजी के कठिन शब्द के साथ बेहद भदेस शब्द का इस्तेमाल पाठकों को आनंद देगा- अनंत विजय
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सुना है फिर से थर्ड फ्रंट बन रहा। सुना है एक बार फिर भारतीय राजनीति को नई दिशा देने की कवायद चल रही। सुना है इलेक्शन फिर पास है। सुना है इस थर्ड फ्रंट में लेफ्ट भी है। सुना है ये थर्ड फ्रंट बड़ा सेक्यूलर होगा। सुना है ये थर्ड फ्रंट भारत की थर्ड वर्ल्ड दुनिया के दर्द को समझेगा। सुना है ये थर्ड फ्रंट देश को नया प्रधानमंत्री देगा। सुना है देश की राजनीति में फिर क्रांति आने वाली है।
तो क्या थर्ड फ्रंट के इन क्रांतिकारियों से आप मिलना चाहेंगे। आइये इधर आइये। थोड़ा नीचे नजर डालिये। देखिये तो भारतीय राजनीति के इस विशाल समंदर में थर्ड फ्रंट की नाव में कौन कौन सवार कहां पर कैसे कांटा डाल रहा।
ये हैं हरदनहल्ली डोडेगौड़ा देवेगौड़ा। एक्स पीएम। एक्स सीएम। एक्स प्रो सोनिया। एक्स प्रो बीजेपी। एक्स ऐन्टी लेफ्ट। मोजूदा एन्टी सोनिया। मौजूदा एन्टी बीजेपी। मौजूदा प्रो लेफ्ट। भावी पीएम इन मेकिंग। मौजूदा पीएम इन मेकिंग जैसे मायावती, जयललिता, चंद्रबाबू नायडू एटसेटरा सरीखी लश्कर के लीडर। मुंह से किसान, कर्म से डेवलपमेंट के दुश्मन। एक्स एन्टी डाइनेस्टी। मौजूदा बेटे के अंध भक्त। सत्ता की लोलुपता है पिता-पुत्र डुओ की पहचान। बीजेपी से बेटे ने टाइ-अप किया। पिता श्री सोनिया के भरोसे 1996 में प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन फिलहाल हठ ये कि कांग्रेस और बीजेपी दोनो से बराबर की दूरी। 16 मई बाद इनमें से किसी की सरकार बनती दिखी तो एक को बड़ा मैनेस बता कर दूसरे से सट लेंगे।
सीपीएम - इनके पब्लिसिटी मैनेजर ने पार्टी की पब्लिसिटी कम अपनी ज्यादा की। इसलिये आज राज्य सभा में हैं। इनकी पार्टी कहती कुछ है करती कुछ है। बंगाल में कुछ बोलती है, दिल्ली में कुछ। 86 साल के ज्योति बसु को बंगाल की सीएमशिप से विदा करती है, केरल के अछूतानंदन को 85 की उम्र में मुख्यमंत्री बनाती है। टाटा से हैंडशेक करती है। केन्द्र में एसईजेड का विरोध। मजलूम की राजनीति भी करते हैं। नंदीग्राम और सिंगूर में उनपर गोली भी चलाते हैं। इनके मुताबिक मोदी घोर कम्यूनल है। लेकिन बंगाल का मुस्लिम डेवलेप्मेंट इन्डेक्स अरसों से लुढ़का पड़ा है। अभी तक उठ नहीं पाया। सरकार बनवाते है। सरकार गिराते हैं। दूर बैठ के खेल का मजा लेते हैं। छोटे भाई सीपीआई को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में घुसा देते हैं। खुद हिस्टॉरिक ब्लंडर कर देते हैं। सामने सामने पाक साफ मगर बैकसीट ड्राइविंग के उस्ताद। अब मायावती को स्टीयरिंग थमा कर सत्ता का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखने के मंसूबे बांध रहे।
जयललिता - इनके पास कभी बाटा के स्टोर से ज्यादा सैंडिलस्स और जूतियों की दुकान थी। यानि एक कमरे में अम्मा की जूतियां ही सजी थी। अम्मा अपने मूड के हिसाब से सैंडिल्स पहनती हैं। जितना सोना भप्पी लहरी अपने सीने पर लाद के चलते हैं उतना सोना तो जयललिता ने अपने खानसामे की बीवी को गिफ्ट कर दिया था। जयललिता खुद मैकेनास गोल्ड की वो गुफा जहां के सोने की रखवाली एक तीसरी शक्ति करती है। वो तीसऱी शक्ति भी खुद जयललिता ही हैं। इस गोल्ड से ऊबी तो तमिलनाडू के रियल एस्टेट गोल्ड पर नजर जमाती हैं। एक बार तो यें जबरदस्त फंस गयीं। जया अम्मा को अदालत नें तांसी जमीन घोटाले में पांच साल की सजा सुना दी। चुनाव भी नहीं लड़ पायीं। कभी हां तो कभी न। आडवाणी जी ने अंग वस्त्रम पहनाया तो अम्मा ने वाजपेयी के लिये रिटर्न गिफ्ट में ये गाना ब्लूटूथ किया --- खींचे मुझे कोई डोर, तेरी ओर... लेकिन साल भर बाद वाजपेयी जी ये गाते हुये नजर आये - तुम्हारी नजर क्यों खफा हो गयी..खता बख्श दो गर खता हो गयी। इस बार आडवाणी नहीं कांग्रेस पर डोरे डाल रहीं। थर्ड फ्रंट में हैं भी और नहीं भी। 16 मई बाद थर्ड फ्रंट से जुड़ कर यूपीए की शिप में कूदने का जुगाड़ भी तलाश रहीं।
सुश्री मायावती - मैं बन की चिड़िया बन के बन बन डोलूं रे...मास्टर कांशीराम से इस स्टूडेंट ने यही सीखा सत्ता के लिये कुछ भी करेगा। मन किया तो मुलायम से सटे, मन किया तो उसे दुतकार दिया। मन किया तो कल्याण से संधि। मन किया तो बीजेपी मनुवादी। मन किया तो बहुजन। मन किया तो सर्वजन। मन किया तो क्रिमिनल का सफाया। मन किया तो क्रिमिनल को चुनावी टिकट। मन किया तो हाथी को कांग्रेसी बन में दौड़ा दिया। मन किया तो रायबरेली में कांग्रेसी बन को रौंद दिया।
मन किया तो मास्टर जी की याद में करोड़ो की मूर्ति तराश दी। मन किया तो सैंकड़ो करोड़ लगा कर अपनी मूर्ती और विशाल बनवा दी। मन किया तो 5 कालीदास मार्ग से ताजमहल के बीच करप्शन का एक्सप्रेसवे बनवा दिया। मन किया तो ब्लू। मन किया तो पिंक। अब बोल रहीं पीएम बनना है सो, गिव मी रैड।
चंद्रबाबू नायडू - लेफ्ट वालों की तरह ये विदेशी ब्रांड की सिग्रेट नहीं पीते। लेकिन लेफ्ट से अलग शहरों के विकास और चकाचौंध पर बड़ा जोर देते हैं। मॉल कल्चर में घोर विश्वास है। सीपीएम की तरह सरकार को बाहर से समर्थन देते हैं। सीपीएम की तरह स्पीकर अपना बनाते हैं मगर सरकार से डिस्टेंस बना कर रखते हैं। कहीं अख्लियत छिटक न जाये। सीपीएम बैकसीट में माहिर तो बाबू केन्द्र से फंड निकलवाने में। वाजपेयी की इंडिया शाइनिंग में बाबू के मॉल कल्चर का भी योगदान था। फिर पब्लिक ने बाबू के मॉल और वाजपेयी के एनडीए कल्चर दोनों पर शटर गिरवा दिया। मन किया तो एनडीए मन किया तो अकेले। और फिर मन किया तो थर्ड फ्रंट जिन्दाबाद। बाबू कहते हैं पीएम नहीं बनना। ये चुनाव से पहले। चुनाव के बाद - वी विल क्रॉस द ब्रिज वेन इट कम्स।
थर्ड फ्रंट की चुनावी नौका में या तो लोग प्रधानमंत्री रह चुके हैं या पीएम बनने की ऐम्बिशन पाल रहे। ठीक भी है। खुदा न खास्ता सरकार बनी भी तो हर एक शक्स रोटेशन से एक साल प्रधानमंत्री रह सकता है। जिनको प्रधानमंत्री नहीं बनना वो अपना अपना कस्बा लेकर खुश हैं। अलग राज्य मिलेगा तो मुख्यमंत्री बन ही जायेंगे। इस थर्ड फ्रंट में सभी के लिये कुछ न कुछ है। ये थर्ड फ्रंट सर्वजन है। ये थर्ड फ्रंट सेक्यूलर है। इस थर्ड फ्रंट में लेफ्ट है। इस थर्ड फ्रंट में बड़े बड़े क्रांतिकारी है। ये भारी भरकम थर्ड फ्रंट की नाव किस ओर जायेगी पता नहीं। मंजिल मिलेगी या नहीं पता नहीं। चुनावी थपेड़ों को साथ झेल पायेगी पता नहीं। चुनाव के बाद किनारा मिलेगा या नही पता नहीं। किनारा आते आते कहीं सवार बीच में ही कूद के दूसरी शिप पर सवार हो जायेगा, पता नहीं। मगर हिंदुस्तान की राजनीति में जब जब इलेक्शन आयेंगे, थर्ड फ्रंट की नाव दूर क्षितिज पर नजर आ ही जायेगी।
3 comments:
काँग्रेस और भाजपा दोनों जनता के काम के न रहे। अब जो तीसरा मोर्चा बन रहा है इस में भाँत-भात के लोग और दल हैं। नेता चाहे कैसे भी हों इन दलों के लोगों की अन्तर्क्रिया करने का अवसर तो मिलेगा। एक साथ आने से क्षेत्रीयता के दुराग्रहों को कम करने में मदद मिलेगी, और हो सकता है कुछ नया निकल आए जो भविष्य की नींव बने। काँग्रेस और भाजपा से तो बिलकुल आशा नहीं है।
आप की आलोचना भी पूरी तरह एक पक्षीय है प्रायोजित लगने लगती है, कहीं ऐसा ही तो नहीं है।
थर्ड फ्रंट नहीं ये भारतीय राजनीति का "जंकयार्ड" है. राजनीति की मुख्यधारा से ठुकरा दिए गए अवसरवादी यहाँ जमा हो गए हैं जनता को बेवकूफ बनाने. चुनाव के बाद यही थर्ड फ्रंट के दल कांग्रेस- भाजपा के सामने समर्थन देने - समर्थन वापसी की दुकान सजा कर बैठ जायेंगे. जो ज्यादा मलाई कटवाएगा उसके साथ चले जायेंगे.
ये मुख्य दलों से अलग रहने की जानबूझकर कोशिश कर रहे हें ... ताकि खरीद फरोख्त का अच्छा मौका मिल सके ... क्या लोकतंत्र के बचने की उम्मीद रख सकते हें हम इस तरह ?
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