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Sunday, April 12, 2009

जूता, कांग्रेस और अपराध बोध

पत्रकार जरनैल के जूते ने जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार का टिकट कटवा दिया । इस बारे में अपनी राय रख रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार प्रभात शुंगलू
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नेता और जूता। क्या नेताओं को जूते की भाषा में तौला जायेगा। जो जरनैल ने किया वो कतई अशोभनीय था। पत्रकार की पहचान जूता नहीं कलम है। जरनैल अपने इमोशन पर काबू नहीं ऱख पाये इस पर उन्होने खेद भी जताया। 

जरनैल का ये जूता चिदंबरम को भले न लगा हो मगर जनता भांप गयी जूता किस पर फेंका गया था। जूता चिदंबरम पर नहीं कांग्रेस की उस राजनीतिक सोच पर फेंका गया था जिसके तहत वो कुछ ऐसे लोगों को पाल पोस रही थी जिनपर 25 साल पहले दिल्ली में सिखों के खिलाफ दंगे भड़काने का आरोप लगा। 1984 के अक्टूबर नवंबर के उन चार दिनों में दिल्ली की सड़कों पर 3000 से ज्यादा लाशे बिछीं थीं। कत्लेआम का ऐसा घिनौना रूप की इसकी दर्दनाक कहानी जल्लाद बैतुल्ला महसूद भी सुने तो शर्मसार हो उठे।

सवाल ये उठता है कि चुनाव के ऐन वक्त सरकार के हाथ की कठपुतली कहे जानी वाली सीबीआई ने टाइटलर को क्लीन चिट क्यों दिया। आखिर कांग्रेस को टाइटलर को बचाने की क्या जरूरत आन पड़ी। मोदी की राजनीति को गरियाने वाली कांग्रेस, अपने आप को सेक्यूलरिज्म का चौकीदार बताने वाली कांग्रेस,  वरूण के जहरीले बयान पर गीता का पाठ पढ़ाने वाली कांग्रेस को आखिर जगदीश टाइटलर को टिकट देने की क्या जरूरत पड़ गयी थी। सीबीआई के क्लीन चिट देने से क्या सिखों के दिलो-दिमाग से वो तस्वीरें पोछी जा सकती हैं जो वो अपने जहन में आरकाइव कर चुके हैं। 

टाइटलर पर जब 2005 में दोबारा सिख विरोधी दंगो का मुकद्दमा खुला तो मनमोहन मंत्रिमंडल से उन्हे इस्तीफा देना पड़ा था। सीबीआई ने भले ही उन्हे क्लीन चिट दे दी हो मगर उनके खिलाफ दिल्ली की अदालत में आज भी मुकद्दमा चल रहा है। तो क्या इस देश में अब सीबीआई तय करेगी कौन अपराधी है और कौन निर्दोष। इसका मतलब जब सोनिया गांधी सीबीआई चलायेंगी तो वो तय करेंगी टाइटलर निर्दोष हैं और जब आडवाणी चलायेंगे तो वो कहेंगे माया कोडनानी निर्दोष हैं। लोकतंत्र का स्तंभ कहे जाने वाली ज्यूडिशियरी फिर क्या करेगी। दस जनपथ और 7 रेसकोर्स रोड में आने जाने वालों की प्रेस विज्ञप्ति जारी करेगी। 

कांग्रेस ने मनमोहन को प्रधानमंत्री बना कर किसी हद तक अपनी गिल्ट फीलिंग पर काबू पा लिया था। मनमोहन सिंह ने संसद में 1984  के सिख विरोधी दंगो को 'नेश्नल शेम' करार दिया था। मगर हाई कमांड सोनिया बस अफसोस जता कर रह गयीं। दिल में सज्जन कुमार और टाइटलर की फांस कहीं न कहीं उसे इस अपराध बोध से उबरने में रूकावटें भी डाल रही थी। तो एक को जब अदालत ने बरी कर दिया तो उसे टिकट थमा दिया तो दूसरे को खुद ही दोष मुक्त बता दिया। ताकि पार्टी के अपराध बोध को किरपाण के एक झटके में खत्म कर दिया जाये और कांग्रेस फिर से सीना तान के अपनी राजनीतिक रोटी सेंके।

लेकिन कांग्रेस का ये अपराध बोध विरासत में मिला है। कांग्रेस पर एक हिंदुवादी पार्टी होने का आरोप पार्टी के जन्म के समय से ही लगता रहा है। मुस्लिम लीग के जन्म की एक वजह कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व था। बाल गंगाधर तिलक हों या लाला लाजपत राय। तिलक मंदिर में आरती कराकर लोगों ( इसे हिंदुओं पढ़िये ) को अंग्रेजो के खिलाफ गोलबंद करते थें तो नेहरू 1939 के चुनाव में मुस्लिम लीग से सरकार में भागीदारी पर कन्नी काट लेते हैं। महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर बैन लगाते हैं और चीन युद्ध के बाद आरएसएस को गणतंत्र दिवस की परेड में शिरकत करने का न्योता देते हैं। नेहरू 1949 में अयोध्या में राम लला की मूर्ति स्थापित करवाते है और लगभग चालीस साल बाद उनके नाती राजीव  अयोध्या मंदिर के ताले खुलवाकर अपने हिंदुत्व का प्रमाण पेश करते हैं। पुरषोत्तम दास टंडन हों या इंदिरा गांधी। देश में कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में अनगिनत देंगे हों या असम में 1983 के अख्लियतों की हत्यायें। मेरठ हो या मुरादाबाद के दंगे। अयोध्या में मस्जिद गिराये जाते समय नरसिंह राव का नीरो की तर्ज पर सोते रहना भी सॉफ्ट हिंदुत्व की कैटिगरी में ही तो आयेगा। और फिर चाहे वो 1984 का दिल्ली हो या कानपुर। 

इंदिरा ने भिंदरनवाले को पाल पोस कर फ्रैन्किस्टीन न बनाया होता तो ऑप्रेशन ब्लू स्टार की नौबत न आती। भिंद्रनवाले ने पंजाब में मार काट मचाये रखी मगर केन्द्र की इंदिरा सरकार सोती रही। हिंदु कार्ड भी खेला और अकालियों को सबक सिखाने की अपनी जिद भी पूरी की। इंदिरा के लिये ये जानलेवा साबित हुया। हिंदु मुस्लिम रिश्तों पर भी प्रतिकूल असर पड़ा।

और फिर जो राजीव नें तब बोला क्या वो सेक्यूलर  भाषा थी - जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती कांप उठती है। यानि जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार और हरकिशन लाल भगत के खिलाफ सिखों के खिलाफ देंगा भड़काने के जो आरोप लगे, वो गलत थे ? देश में दर्जन भर कमीशनों ने 84 दंगों की तफ्तीश की क्या वो हवा में थी। चलो राजीव तो राजनीति में नये थे तो क्या उनकी सॉफ्ट हिंदुत्व की कांग्रेसी 'कोटरी'  ने उन्हे ये बयान जारी करने की मुगली घुट्टी पिलायी थी। अल्लाह जाने। 

लेकिन जरनैल के जूता कांड से पंजाब से लेकर दिल्ली और जम्मू तक सिखों के प्रदर्शन उग्र होने लगे। तब कांग्रेस को लगा शायद टाइटलर और सज्जन को टिकट देकर गल्ती हो गयी। इन राज्यो में करीब 20-25 सीटों पर सिख वोटर पार्टी की किस्मत तय कर सकते हैं। इसलिये कांग्रेस का अपराध बोध ने एक बार फिर उसका गिरेबान पकड़ कर कहा अब बच के कहां जाओगे बच्चू। इस अपराध बोध से बच निकलने का एक ही रास्ता दिखा। पब्लिक ने कहा ना तो ना। पब्लिक परसेप्शन के आगे झुकना पड़ा। क्योंकि सवाल तो है ज्यादा लाओगे तो ज्यादा पाओगे। गद्दी भी तो बचानी है। 

कांग्रेस के अपराध बोध का एक हाथ उसके गिरेबान पर था तो उसके दूसरे हाथ में जूता था। जरनैल वाला नहीं। ये जूता पब्लिक परसेप्शन का था। ये जूता बड़ा सेक्यूलर है। ये जूता जनता जनार्दन के कान्शेन्स का है। जो सिर्फ उसपर पड़ता है जो राजनीति के नाम पर समाज को बांटता है। 


1 comment:

हरि said...

प्रभात जी ने सोलह आना खरा लिखा है। जूते के बहाने इतिहास के कुछ बंद पन्‍ने भी खुल रहे हैं।