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Tuesday, November 24, 2015

गरमाहट भरा होगा शीतकालीन सत्र

बिहार विधानसभा चुनाव में शानदार जीत और असहिष्णुता को लेकर देश विदेश में मचे कोलाहल के बीच संसद का शीतकालीन सत्र हंगामेदार होने के आसार नजर आ रहे हैं । विपक्ष के हौसले सातवें आसमान पर हैं और वो सरकार को घेरने की रणनीति बनाने में जुटा है । बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने विपक्ष को एकजुट होकर सरकार पर हमला करने का मौका भी दे दिया है । विफ7 इस सत्र में आक्रामक नजर आ सकता है लेकिन लोकसभा में संख्याबल एनडीए के पक्ष में है । राज्यसभा में सत्तापक्ष अल्पमत में है । यही लोकतंत्र की खूबसूरती है । लेकिन लोकतंत्र की सार्थकता इस बात में भी है कि पक्ष-विपक्ष इस खूबसूरती को बचाते हुए विधायी कार्यों को संपन्न करने में सहयोग करें । इस वक्त भारत की स्थिति वहां तक पहुंच चुकी है कि विकास के लिए दूसरे दौर के रिफॉर्म की जरूरत है । इस रिफॉर्म के लिए कई बिल पास होने हैं जिसके लिहाज से संसद का शीतकालीन सत्र बेहद अहम है । कई सालों से गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स बिल यानि जीएसटी बिल लटका हुआ है । यूपीए शासनकाल के दौरान भी इस बिल को लेकर लंबे समय तक माथापच्ची हुई थी लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका था । सरकार के फ्लोर मैनेजरों के लिए ये बात राहत की हो सकती है कि गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स बिल को लेकर कांग्रेस ने बहस में भाग लेने के संकेत दिए हैं । हाल ही में वित्त मंत्री अरुण जेटली और राहुल गांधी की मुलाकात के बाद बीजेपी-कांग्रेस के बीच जमी रिश्तों की बर्फ पिघली है । कांग्रेस पार्टी की तरफ से बयान आया है कि ये उनका बिल है और वो इस बिल को पास करवाना चाहते हैं । लेकिन उसने साफ कर दिया कि मौजूदा बिल को लेकर उनके सुझावों पर सरकार लचीला रुख अपनाए और उसके हिसाब से बिल में संशोधन हो । जीएसटी पर सरकार को उम्मीद है कि जयललिता की पार्टी उनका समर्थन कर देगी लेकिन अब तक एआईएडीएमके की तरफ से किसी ने भी इस तरह के संकेत नहीं दिए हैं । जीएसटी बिल पास करवाना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है । कर सुधार के लिए यह बेहद आवश्यक है । जीएसटी के रेट को लेकर ही अबतक सहमति नहीं बन पाई है । पूरी दुनिया में जीएसटी की बीस फीसदी के इर्द गिर्द है लिहाजा विशेषज्ञों की राय इसके पक्ष में है । लेकिन मौजूदा वक्त में राज्य और केंद्र के बीच जो समझ बनी है उसके मुताबिक जीएसटी के तीन दर होंगे । इसको लेकर विशेषज्ञों की कमेटी ने सरकार के सामने तेइस से लेकर 25 फीसदी तक के जीएसटी की सिफारिश की है । दरों के दायरे में उलझा ये बिल सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है । इसके अलावा आगामी सत्र में रीयल एस्टेट बिल, फैक्टरी अमेंडमेंट बिल, जुवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन बिल भी पास होना है । आज देश में रीयल एस्टेट सेक्टर का हाल बहुत ही बुरा है । कई लाख फ्लैट बनकर तैयार हैं लेकिन खरीदार नहीं होने की वजह से इस सैक्टर का ग्रोथ निगेटिव में दिखाई दे रहा है । स्मार्ट सिटी को लेकर महात्वाकांक्षी योजना पर काम रही केंद्र सरकार के सामने रीयल एस्टेट सेक्टर को निगेटिव ग्रोथ से निकालने के लिए यह आवश्यक है कि इस सेक्टर में निवेश हो । निवेश के लिए आवश्यक है आर्थिक सुधार । आर्थिक सुधार का एजेंडा लागू करने के लिए सरकार को विपक्ष से बेहतर रिश्ते रखने होंगे । सरकार को विपक्ष को विश्वास में लेकर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाना होगा । सरकार और विपक्ष के बीच तनातनी से आर्थिक सुधार का एजेंडा लागू होना संभव नहीं है । एक जिम्मेदार विपक्ष होने के नाते कांग्रेस की भी जिम्मेदारी है कि वो सरकार के आर्थिक सुधार की राह में रोड़े ना अटकाए । संसदीय लोकतंत्र में सरकार की जिम्मेदारी बिल पास करवाने कि होती है और विपक्ष का सहयोग हासिल करने की प्राथमिक जिम्मेदारी भी सत्तादारी दल की होती है । 26 नवंबर से शुरू होकर करीब महीने भर चलनेवाले शीतकालीन सत्र में विपक्ष के साथ बेहतर रिश्ते बनाकर बिल पास करवाने होंगे ।
अब दूसरी चुनौती केंद्र सरकार के सामने राजनीतिक है । पिछले अठारह महीनों में जब से केंद्र में मोदी सरकार बनी है तो पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरे देश में बीजेपी को मजबूत करने में लगे हैं । अपनी पार्टी को मजबूत करने की योजना की वजह से सरकार को खामोशी से सपोर्ट कर रही पार्टियों के बीच मतभेद की खाई चौड़ी होती जा रही है । इसको बीजू जनता दल के रुख से साफ तौर पर समझा जा सकता है । पिछले अठारह महीने से सरकार को समर्थन कर रही बीजू जनता दल ने एलान कर दिया है कि वो संसद में विपक्ष की भूमिका में होगी । बीजेडी का आरोप है कि सरकार का समर्थन करने के बावजूद ओडीशा के लिए केंद्र सरकार ने पिछले डेढ साल में कुछ नहीं किया । बीजेडी को भी अब देश में बढ़ रही असहिष्णुता नजर आने लगी है । इस मसले पर अकाली दल और शिवसेना ने सरकार के कदमों से अपनी नाखुशी पहले ही जता चुकी है । सरकार के समर्थक दलों के रुख को भांपते हुए कांग्रेस इसका फायदा उठाने की फिराक में है । कांग्रेस ने लोकसभा सचिवालय को देश में बढ़ते असहिष्णुता पर बहस के लिए नोटिस दे दिया है । सहिष्णुता को लेकर संसद में गर्मागर्म बहस होने की पूरी संभावना है । सहिष्णुता- असहिष्णुता की इस बहस में आर्थिक सुधार का एजेंडा कमजोर ना पड़े इसके लिए सरकार को ओवरटाइम करना होगा ।
 

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