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Sunday, March 20, 2016

असगर वजाहत को श्लाका सम्मान

दिल्ली की हिंदी अकादमी में जब से मैत्रेयी पुष्पा ने उपाध्यक्ष का पद संभाला है तब से अकादमी की सक्रियता काफी बढ़ गई है । हर महीने ताबड़तोड़ आयोजन हो रहे हैं- कविता, कहानी, नाटक से लेकर पत्रकारिता तक के विषयों पर विमर्श आयोजित किए जा रहे हैं । अब हिंदी अकादमी ने पिछले दो साल से रुके पुरस्कारों को भी फिर से देना शुरू किया है । दरअसल दिल्ली में सरकारों के बनने बिगड़ने के खेल में पिछले दो साल से साहित्यक पुरस्कार नहीं दिए जा रहे थे । अब अकादमी ने पुरस्कार की राशि बढ़ाते हुए एक बार फिर से इन पुरस्कारों का एलान किया है । इस बार हिंदी अकादमी का सबसे बड़ा पांच लाख रुपए का श्लाका सम्मान हिंदी के वरिष्ठ लेखक असगर वजाहत को दिया गया है । इसके अलावा राजी सेठ को भी हिंदी अकादमी ने सम्मानित करने का एलान किया है । हिंदी अकादमी के पुरस्कृत लेखक-पत्रकारों की सूची लगभग अविवादित है । कहना न होगा कि मैत्रेयी पुष्पा की अगुवाई में बेहतर लेखकों का चयन हुआ है । पुरस्कार की चयन समिति में जो लोग थे उनमें से एक को छोड़कर दो से बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती थी क्योंकि उनको हिंदी साहित्य से बहुत लेना देना है नहीं । जिन एक का लेना देना है वो बेहद सौम्य हैं । दरअसल मैत्रेयी पुष्पा का चयन समिति में इस तरह के लोगों को रखने का प्रयोग भी सही रहा और उनके चुनाव को चयन समिति ने सहूलियतें दी बाधा पैदा नहीं की होंगी । साहित्य से इतर जिन लोगों को पुरस्कार दिया गया वो आम आदमी पार्टी की नीतियों और नेताओं के प्रशंसक रहे हैं । सरकारी अकादमियों को ऐसे फैसले लेने होते हैं । संतोष कोली के नाम पर शुरू किया गया पुरस्कार छत्तीसगढ़ की सोनी सोरी को दिया गया है । सोनी सोरी के साथ क्या हुआ है ये ज्ञात है और उसको दोहराने का ये अवसर नहीं है।  
असगर वजाहत इस वक्त हिंदी के उन गिने चुने लेखकों मे जो विवादों से परे हैं । उनकी प्रतिबद्धता को लेकर कभी कभार कोने अंतरे से हल्की फुल्की आवाज उठती रहती है लेकिन कमोबेश वो पाठकों के प्यारे हैं । उनके उपन्यासों की पठनीयता और पाठकों से सीधे संवाद करने की उनकी कला उनकी रचानओं को अलग करती हैं । असगर वजाहत के उपन्यासों के अलावा उनका एक नाटक- जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ- बेहद लोकप्रिय रहा है और उसके हजारों मंचन हो चुके हैं । आज के करीब दस साल पहले हिंदी की एक समाचार पत्रिका के एक सर्वेक्षण में असगर वजाहत को हिंदी के दस श्रेष्ठ लेखकों में चुना गया था । उपन्यासों और नाटक के अलावा असगर वजाहत के यात्रा संस्मरण भी बेहतरीन माने जाते हैं । ईरान और आजरबाइजान की यात्रा को केंद्र में रखकर असगर वजाहत ने चलते तो अच्छा था के नाम से एक किताब लिखी जो इस विधा में अपना अलग मुकाम रखती है । असगर वजाहत की लेखन के अलावा चित्रकला में भी गहरी रुचि है । मुजे याद है कि आजमगढ़ के जोकहरा में रामानंद सरस्वती पुस्तकालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान असगर वजाहत ने बातों बातों में एक रेखाचित्र बनाया और मुझे भेंट कर दिया । लगभग बारह तेरह साल बाद भी मैंने उस खूबसूरत चित्र को संभाल कर रखा है । असगर वजाहत उन लेखकों में हैं जिनकीओर साहित्य अकादमी का ध्यान नहीं गया, ऐसे में हिंदी अकादमी का उनको श्लाका सम्मान से सम्नानित करना संतोष की बात है । वैसे तो साहित्य अकादमी का ध्यान अबतक किसी भी मुस्लिम लेखक की ओर नहीं गया जो हिंदी में लिखते हैं चाहे वो राही मासूम रजा हो, मंजूर एहतेशाम हो या फिर नासिरा शर्मा । यह साहित्य अकादमी की अपनी बौद्धिक सांप्रदायिकता है जो अब जाकर रेखांकित होनी शुरू हुई है ।   


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