मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में दो दिनों तक चले लिटरेचर फेस्टिवल- लिटो
फेस्ट – ने वहां मौजूद युवाओं और सत्रों में उनकी भागीदारी ने साहित्य के उज्जवल
भविष्य को रेखांकित किया। दरअसल लिट ओ फेस्ट में गंभीर साहित्यक विषयों के अलावा
संगीत और कला पर भी बातचीत हुई । एक बेहद दिलचस्प साहित्य में व्यंग्य की विधा के
हाशिए पर चले जाने पर हुआ । इसमें लेखक रत्नेश्वर और हास्य कवि लोढ़ा ने अपने
भाषणों से श्रोताओं का ज्ञानवर्धन किया । इस सत्र में ये बात निकलकर सामने आई कि हमारे
जीवन से ही हास्य कम हो रहा है । इस बात की कमी को शिद्दत से महसूस किया गया कि
हिंदी में व्यंग्य लेखन की परंपरा हरिशंकर परसाईं से आगे बढ़ वहीं पाई । मेरा
मानना है कि शरद जोशी और के पी सक्सेना के बाद इन दिनों ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य
की मशाल को जलाए हुए हैं अन्यथा को व्यंग्य के नाम पर हिंदी में फूहड़ चुटकुलों ने
ले ली है । जिस तरह का व्यंग्य लेखन हो रहा है उसको देखकर लगता है कि साहित्य में
व्यंग्य और हास्य के बीच का फर्क मिट गया है । दरअसल जब हम हंसने की बात करते हैं
तो आज की पीढ़ी के जेहन में चुटकुला आता है । इसकी जिम्मेदारी आज के व्यंग्य
लेखकों की भी है । हमें इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि साहित्य से व्यंग्य
गायब क्यों होता चला गया ।
मुंबई में कोई इस तरह का आयोजन हो और सितारों का मेंला ना लग ऐसा संभव ही नहीं
है । शत्रुध्न सिन्हा की नई किताब- एनी थिंग बट खामोश पर चर्चा हुई जहां शॉटगन ने कई
दिलचस्प संस्मरण साझा किए । मनोज वाजपेई और अलीगढ़ फिल्म की पूरी स्टार कास्ट वहां
पहुंची थी लेकिन चर्चा फिल्म के बहाने से समलैंगिक संबंधों और धारा तीन सौ सतहत्तर
पर हुई । एक अलग सत्र में मनोज वाजपेयी ने हिंदी की कई कविताएं पढ़ी । मनोज
वाजपेय़ी ने एक सत्र में कहा कि अब वो उन फिल्मों की स्क्रिप्ट नहीं पढ़ते जो नागरी
में ना लिखी गई हो । मनोज ने कहा कि सत्या फिल्म की सफलता के बाद वो अब इस स्थिति
में हैं कि फिल्म जगत में अपनी शर्तों पर काम कर सकें । लिहाजा अब वो नागरी में टाइप्ड
स्क्रिप्ट मांग सकते हैं । मनोज जब ये कह रहे थे तो वो उस प्रवृत्ति की ओर इशारा
कर रहे थे बॉलीवुड में आम चलन में है । बॉलीवुड में ज्यादातर स्क्रिप्ट और संवाद रोमन
में लिखे जाते हैं और कलाकार भी उसको ही पढ़ते हैं । चेतन भगत जैसे लेखक तो खुलेआम
हिंदी को नागरी लिपि में लिखे जाने का विरोध कर उसके रोमन में लिखे जाने की वकालत
कर चुके हैं । ऐसा लगता है कि चेतन भगत जैसों को हिंदी और नागरी की परंपरा का ना
तो एहसास है और ना ही उसके व्याकरण और उच्चारण का ज्ञान । मनोज वाजपेयी ने चेतन
भगत जैसे रोमन में लिखे जानेवाले पैरोकारों को लिट ओ फेस्ट के मंच से एक संदेश भी
दिया । इसके अलावा साहित्य में मठाधीशी और असहिष्णुता और पुरस्कार वापसी पर भी एक
सत्र था । इसमें हिंदी के वरिष्ठ लेखक नरेन्द्र कोहली, वरिष्ठ संपादक विश्वनामथ
सचदेव, आलोचक विजय कुमार और वरिष्ठ कथाकार सूर्यबाला ने हिस्सा लिया । उनके विचार
बंटे हुए थे । साहित्य में मठाधीशी पर उपन्यासकार प्रभात रंजन और पंकज दूबे ने
जमकर अपनी बात रखी और मुक्तिबोध की पंक्ति- तोड़ने ही होंगे सभी मठ और गढ़ एक बार
फिर से गूंजा । इस लिट फेस्ट में पुस्तक
मेला भी लगा था और मराठी बहुल क्षेत्र में हिंदी की किताबें जमकर बिक रही थीं ।
कवयित्री स्मिता पारिख और नाट्य निर्देशक सलीम आरिफ की किताबें लोकार्पित हुई । इस
तरह से गैर हिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी पर विमर्श सुखद रहा ।
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