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Thursday, March 17, 2016

स्टिंग के चक्रव्यूह में ममता बनर्जी

कहते हैं ना कि मोहब्बत और जंग में सब जायज है लेकिन लोकतंत्र में चुनाव के वक्त ये बात अपने अंदाज को बदलकर सामने आती है । लोग कहना शुरू हो जाते हैं कि भारत में चुनाव में सबकुछ जायज है । धनबल, बाहुबल से लेकर जाति और समुदाय को धड़ल्ले से उपयोग में लाया जाता है । अब जब पश्चिम बंगाल चुनाव होनेवाला है तो तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं और अफसरों का एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आया है । इस स्टिंग ऑपरेशन में कई सांसद, मंत्री और मेयर समेत तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेताओं को काम के बदले पैसे लेते हुए दिखाया गया है । इस स्टिंग ऑपरेशन के सामने आते ही देश की राजनीति में भूचाल आ गया है । तृणमूल के खिलाफ एकजुट वामपंथी और कांग्रेस ने इस बहाने से ममता बनर्जी पर सीधा हमला बोला तो बीजेपी ने तो इसकी सीबीआई से जांच की मांग की है । टीएमसी इसको सियासी साजिश करार दे रही है और दावा कर रही है कि विपक्ष के पास चुनावी मैदान में जाने के लिए कोई सियासी मुद्दा नहीं है लिहाजा वो स्टिंग ऑपरेशन का सहारा ले रहे है । टीएमसी ने तो अपने सभी नेताओं को क्लीन चिट देते हुए पूरे मसले पर उनसे शो कॉज भी नहीं करने का फैसला लिया है । ये तो हुई बयानों की जुबानी जंग लेकिन इस स्टिंग ऑपरेशन ने लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा और विधानसभा में बैठनावालों की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं । जिस तरह से इस स्टिंग ऑपरेशन में नेताओं को घूस लेते हुए दिखाया गया है वो ममता बनर्जी की साख पर भी बट्टा लगाने के लिए काफी है । हमारे देश की सियासत के मौजूदा दौर में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ईमानदारी की थाती के साथ ही सियासत में अपनी धमक पैदा कर सत्ता में आए थे । पहले शारदा स्कैम में तृणमूल के नेताओं पर लगे आरोप और अब इस स्टिंग ऑपरेशन की ममता बनर्जी की इस ईमानदार छवि को नुकसान पहुंचाया है । हलांकि ना तो ममता बनर्जी का सीधा इंवॉल्वमेंट इसमें है और ना ही उनके भतीजे अभिषेक ने पैसा लिया है, बल्कि अभिषेक तो इस स्टिंग में मना करते हुए दिख रहे हैं । अंग्रेजी में एक कहावत है कि अ मैन ऑर अ वूमन इज नोन बाय द कंपनी ही ऑर शी कीप्स । लिहाजा ममता बनर्जी को आरोपों का सामना तो करना ही होगा । ममता बनर्जी की हालत मनमोहन सिंह जैसी दिखाई दे रही है । हर कोई उनकी ईमानदारी की दुहाई देता नजर आ रहा है लेकिन वो अपने सिपहसालारों को रोक पाने में नाकाम रही हैं । मनमोहन सिंह भी बेहद ईमानदार थे लेकिन आजाद भारत के इतिहास में उनके कार्यकाल में बड़े-बड़े घोटाले हुए । ममता बनर्जी भी पर कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगा लेकिन उऩके सिपहसालार तो इस स्टिंग में साफ तौर पर पैसे लेते नजर आ रहे हैं । ममता की पार्टी के इन बड़े नेताओं पर लगे इस आरोप की गूंज पश्चिम बंगाल विधानसभा में अवश्य सुनाई देगी । इस बार कांग्रेस-वामपंथ गठजोड़ के अलावा बीजेपी भी अपनी पूरी ताकत से सूबे के इस चुनाव को अपनी उपस्थिति से त्रिकोणीय संघर्ष बनाने में जुटी है । ऐसे में इस तरह के स्टिंग ऑपरेशन उसको ममता को घेरने का हथियार प्रदान करती है । चुनाव में इसका कितना असर होगा तो ये छह चरणों  के चुनाव के नतीजों के बाद ही सामने आएगा ।
चुनावी राजनीति से इतर भी इस स्टिंग ऑपरेशन को देखा जाना चाहिए । इस स्टिंग ऑपरेशन के सामने आने के बाद संसद में भी जमकर हंगामा हुआ और वामपंथी और कांग्रेस सदस्यों ने इसकी जांच की मांग की ।यह बात भी लोकसभा नें उठी कि कैमरे पर पैसे लेने की तस्वीर सामने आने के बाद इन सदस्यों पर कार्रवाई होनी चाहिए । पाठकों को याद होगा कि दो हजार पांच में भी संसद के कई सदस्य एक स्टिंग ऑपरेशन में धरे गए थे जहां वो संसद में सवाल उठाने क लिए पैसे लेते हुए दिखाए गए थे । ऑपरेशन दुर्योधन के नाम से किए गए उस स्टिंग ऑपरेशन में बीजेपी, बीएसपी,कांग्रेस और आरजेडी के सदस्य दोषी पाए गए थे और जांच आदि के बाद उनकी सदस्यता खत्म कर दी गई थी । उस वक्त के लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने इसको संसद की गरिमा के साथ खिलवाड़ माना था और कहा था कि संसदों का यह व्यवहार बिल्कुल उचित नहीं है । उन्होंने जांच होने तक सभी आरोपी सांसदों को लोकसभा की कार्रवाई में बाग नहीं लेने को कहा था ।  इसी तरह से उस वक्त के राज्यसभा के सभापति भैरोसिंह शेखावत ने भी अड़तासील घंटे में राज्यसभा की कमेटी से रिपोर्ट मांगकर कार्रवाई की थी । दरअसल इस तरह की स्थिति की कल्पना हमारे संविधान निर्माताओं ने नहीं की थी लिहाजा संविधान में इसका उल्लेख नहीं है । इस तरह का एक वाकया उन्नीस सौ इक्यावन में भी सामने आया था । कांग्रेस के सदस्य एच जी मुदगल पर बांबे बुलियन एसोसिएशन से संसद में सवाल पूछने के एवज में दो हजार रुपए लेने के आरोप लगे थे । तब उन्होंने खुद ही इस्तीफा दे दिया था । प्रथम दृष्टया ये संविधान के अनुच्छेद निन्यानवे का उल्लंघन माना जा सकता है । इस स्टिंग के सामने आने के बाद अब लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के पूरे मामले को एथिक्स कमेटी को भेज दिया है ।

सवाल तो स्टिंग ऑपरेशन में खर्च की गई राशि पर भी उठ रहे हैं कि जिस बेवसाइट ने ये स्टिंग ऑपरेशन किया उसके पास करीब एक करोड़ की राशि कहां से आई । ये बात भी सामने आ रही है कि स्टिंग के लिए ये पैसा एनएरआई के एक समूह ने दिया । तृणमूल कांग्रेस इसको इस वजह से भी साजिश करार दे रही है कि विदेशों से हमारी चुनावी प्रक्रिया को बाधित करने के लिए फंडिंग की जा रही है । यह सब जांच का विषय है और इसकी पूरी तहकीकात होनी भी चाहिए कि चुनाव के वक्त अचानक से ये स्टिंग क्यों और कैसे सामने आया । यह सब ठीक है लेकिन बड़ा सवाल यही कि स्टिंग में फंसे सांसदों पर कब तक और क्या कार्रवाई होती है । अगर इस बार इन सांसदों पर कार्रवाई नहीं हुई तो जनता का लोकतंत्र के इस सबसे बड़े मंदिर से भरोसा छीज जाएगा जो देश के लिए अच्छी स्थिति नहीं होगी ।       

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