करीब ढाई महीने बाद जम्मू और कश्मीर में एक बार फिर से बीजेपी और पीडीपी
गठबंधन की सरकार का बनना लगभग तय हो गया है । दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी और पीडीपी की अध्य़क्ष महबूबा मुफ्ती के बीच हुई मुलाकात के बाद इसके साफ
संकेत मिले हैं । नरेन्द्र मोदी से मिलने के बाद महबूबा ने कहा कि जब आप
प्रधानमंत्री से मिलते हैं तो कई समस्याएं खुद ब खुद हल हो जाती हैं । अब पीडीपी
ने चौबीस मार्च य़ानि होली के दिन पीडीपी ने अपने विधायक दल की बैठक बुलाई है ।
माना जा रहा है कि इस दिन पीडपी अपने विधायक दल के नेता का चुनाव करेगी । उसके बाद
दोनों दल राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने के का दावा पेश करेंगे । दरअसल दोनों दलों
के बीच पिछले कई दिनों से तल्खी बढ़ रही थी । कुछ दिनों पहले पीडीपी अध्यक्ष
महबूबा मुफ्ती और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बीच हुई मुलाकात सरकार गठन का रास्ता
नहीं खोल पाई थी । जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री और पीडीपी के नेता मुफ्ती मुहम्मद
सईद के निधन के बाद वहां पीडीपी और बीजेपी की साझा सरकार भंग कर दी गई थी । बाद
में मुफ्ती सईद की बेटी और पीडीपी की आला नेता महबूबा मुफ्ती ने सरकार बनाने में
रुचि नहीं दिखाई । पहले तो ये कहा गया चालीस दिनों के शोक की वजह से महबूबा सरकार
बनाने के पक्ष में नहीं है । उसके बाद खबर आई कि महबूबा मुफ्ती के परिवार ने
श्रीनगर में सीएम आवास खाली कर दिया । बीजेपी की तरफ से उसके महासचिव राम माधव कई
बार श्रीनगर के दौरे पर गए और मुलाकातों का सिलसिला चला । कई बार पर्द के पीछे से
भी दोनों दलों के बीच समझौते की कोशिशें हुईं लेकिन ये कोशिशें परवान नहीं चढ़
सकीं । इस तरह की खबरें भी सामने आईं कि महबूबा मुफ्ती बीजेपी के साथ शर्तों को
रिव्यू करना चाहती हैं । बीजेपी के स्थानीय नेताओं ने अपने तेवर सख्त रखे और लगातार
ये बयानबाजी चलती रही कि सरकार बनने के समय तय किए गए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में
कोई तब्दीली मंजूर नहीं की जाएगी और बीजेपी को किसी भी तरह की नई शर्त मंजूर नहीं
है । अपनी फिछली श्रीनगर यात्रा के बाद तो राम माधव ने भी कह दिया था कि ऐसे हालात
में सरकार का गठन संभव नहीं है लेकिन कहा जाता है न कि राजनीति में जो दिखता है वो
होता नहीं है । यहां भी वही हुआ ।
इस बीच देश में बीफ खाने को लेकर बवाल मचा, जेएनयू में आतंकीवादी अफजल को लेकर सियासी संग्राम जारी है । भारत माता की जय
के नारे को लेकर भी अच्छा खासा विवाद जारी
है । इस तरह के माहौल के बीच महबूबा बीजेपी के साथ खड़ी नहीं दिखना चाहती थी ।
दरअसल महबूबा मुफ्ती शुरू से ही एक्टिविल्ट किस्म की रही है और कश्मीरी
अलगाववादियों को लेकर हमेशा से उसका रुख नरम रहा है । आतंकवादी अफजल की फांसी के
बाद उसके अवशेषों को उसके परिवारवालों को सौंपने की मांग भी पीडीपी के नेता कई बार
कर चुके हैं । पीडीपी के कई नेताओं का मानना है कि आतंकवादी अफजल के ट्रायल के
वक्त सही से न्याय नहीं हो पाया । उनकी पार्टी के कई विधायक तो अफजल की फांसी को
न्यायिक व्यवस्था का माखौल मानते हैं । जब जेएनयू में अफजल की बरसी पर बीजेपी ने
कांग्रेस और वामपंथियों को घेरा तो उसके विरोधियों ने पीडीपी के स्टैंड को लेकर
बीजेपी पर वार किया । विपक्षी दलों ने कहा था कि अफजल के समर्थकों के साथ सरकार
बनाने वाले अपने स्टैंड को साफ करें । आरोप प्रत्यारोप के इस दौर में बीजेपी पर्दे
के पीछे से सरकार गठन की कवायद में लगी रही । पार्टी का मानना था कि कश्मीर के
हालात के मद्देनजर वहां चुनी हुई सरकार का होना जरूरी है । वक्त बढ़ता जा रहा था
और समस्या का कोई समाधान नहीं निकल रहा था । दोनों दल अपने अपन-अपने स्टैंड पर
कायम थे । बीजेपी महासचिव राम माधव और अमित शाह के बयानों से लग रहा था कि दोनों
दलों के बीच सरकार गठन की संभावना लगभग खत्म हो गई है ।
हाल में जम्मू कश्मीर में कई सियासी गतिविधियों ने महबूबा पर दबाव बना दिया ।
इस सप्ताह ही नेशनल कांफ्रेंस के नेता और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला
ने राज्यपाल एन एन वोरा से मुलाकात की थी ।
राज्यपाल वोरा से मुलाकात के बाद उमर अबद्ल्ला ने कहा था कि गवर्नर को
विधानसभा भंग कर देनी चाहिए और फिर से विधानसभा चुनाव कराए जाने चाहिए । उमर ने
कहा था कि उनकी पार्टी सूबे में वैकल्पिक सरकार देने की स्थिति में नहीं है और वो
हॉर्स ट्रेडिंग के पक्ष में भी नहीं हैं । इस बीच पीडीपी के विधायक भी सरकार के
गठन को लेकर अपने नेतृत्व पर दबाव बनाने लगे थे । पीडीपी के विधायक फिर से चुनाव
में जाने के पक्ष में नहीं थे । पार्टी के ज्यादातर विधायकों सरकार बनाने के पक्ष
में एकजुट होने लगे थे । इसका भी असर हुआ और पिछले एक सप्ताह में महबूबा मुफ्ती का
दिल्ली दौरा बढ़ गया । पांच दिन में वो दो बार दिल्ली आईं । इन दौरो से बीजेपी और
पीडीपी के बीच जमी बर्फ पिघलने लगी थी । सियासी हलकों में जारी चर्चा के मुताबिक
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दखल दिया और पहले उन्होंने बयान दिया कि जहां तक सरकार
के एजेंडे की बात है तो हम उसके साथ पूरी प्रतिबद्धता के साथ खड़े हैं । अरुण
जेटली के इस बयान के बाद एक बार फिर से मुलाकातों का माहौल बना । उधर मुफ्ती
मोहम्मद सईद की अगुवाई वाली साझा सरकार में वित्त मंत्री रहे हसीब द्राबू ने भी
पहल शुरू की । हसीब द्राबू ने राम माधव के साथ मिलकर अजेंडा ऑफ अलांयस बनाया था ।
वो राम माधव के करीबी भी बताए जाते हैं । हसीब द्राबू जम्मू कश्मीर बैंक के पूर्व
चेयरमैन रहे हैं और मुफ्ती मुहम्मद परिवार के करीबी हैं । अंत मे तय किया गया कि
महबूबा मुफ्ती और प्रधानमंत्री की मुलाकात होगी । ये मुलाकात हुई और बात लगभग बन
गई । आश्चर्य नहीं कि होली के दिन बीजेपी और पीडीपी के नेता एक दूसरे को गुलाल और
अबीर लगाते नजर आएं ।
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