अभी हाल ही में अंग्रेजी के लेखक देवदत्त पटनायक की बच्चों को ध्यान
में रखकर लिखी दो किताबें प्रकाशित होकर बाजार में आई हैं । दोनों ही किताबें
भारतीय विरासत और मिथकीय चरित्रों को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं । इनको बच्चों के
लिए रुचिकर बनाने के लिए देवदत्त पटनायक ने स्केच के माध्यम से कहानी कही है और
बच्चों को उन रेखाचित्रों में रंग भरने का विकल्प दिया गया है । मजे के साथ कहानी
या खेल खेल के साथ पढाई । अब इन दोनों किताबों को देखकर मेरे मन में हिंदी प्रकाशन
और लेखक जगत को लेकर कई प्रश्न अंकुरित होने लगे । किस तरह से अंग्रेजी के प्रकाशक
योजनाबद्ध तरीके से पाठकों को और उनकी सहूलियतों को ध्यान में रखकर प्रकाशन करते
हैं । स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां हो गईं तो बच्चों को वक्त बिताने के लिए कुछ
चाहिए । इसी चाहत की पूर्ति के लिए देवदत्त पटनायक की दो किताबें बाजार में पेश कर
दी गई । यहीं आकर हमारा हिंदी प्रकाशन जगत पिछड़ जाता है । वहां योजनाबद्ध तरीके
से ज्यादातर प्रकाशक काम नहीं करते हैं । काल और परिस्थिति के मद्देनजर पुस्तकों
के प्रकाशन की योजना नहीं बनती बल्कि लेखक और किताब के आधार पर प्रकाशन को
प्राथमिकता दी जाती है । इसी तरह से दो हजार सात में जब देश के पहले स्वतंत्रता
संग्राम की डेढ सौवीं सालगिरह आई थी तो अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति पर अंग्रेजी
में कई किताबें आई थीं । ऐसा कई मौकों पर देखने को मिलता है कि अंग्रेजी के प्रकाशन
अग्रिम योजना बनाकर उसपर अमल करने में हिंदी के प्रकाशकों से आगे निकल जाते हैं । इस
पर हिंदी के प्रकाशकों को ध्यान देना चाहिए । अब एक दो प्रकाशकों ने योजनाबद्ध
तरीके से किताबें लिखवाने का काम शुरू किया है जिसे हम हिंदी प्रकाशन जहत के लिए
सुखद संकेत मान सकते हैं ।
दूसरी बात यह है कि हिंदी में बाल साहित्य पर बहुत काम ध्यान दिया
जाता है । बाल साहित्य लिखने वाले चुनिंदा लेखक हैं । एक बार गुलजार ने कहा था कि
बाल साहित्य लिखना बेहद चुनौतीपूर्ण काम है और लेखकों को इस चुनौती को स्वीकार
करना चाहिए । हिंदी में बाल साहित्य की बेहद कमी है । घूम फिरकर पंचतंत्र आदि की
कहानियां ही छपती रहती हैं । टी एस इलियट ने कहा था कि केवल अतीत ही वर्तमान को
प्रभावित नहीं करता है बल्कि वर्तमान भी अतीत को प्रभावित करता है । इलियट के इस
तर्क के आधार पर अबतक हर युग में साहित्य का मूल्यांकन हुआ है लेकिन मुझे लगता है कि हिंदी में बाल साहित्य की
उपलब्धता के आलोक में भी इस कथन को देखा जाना चाहिए । हिंदी में हम पाठकों की कमी
का रोना रोते हैं लेकिन उसके मूल कारण में जाने की जरूरत महसूस नहीं करते हैं । हिंदी
में रुचिकर बाल साहित्य के कम सृजन की वजह से बच्चे अंग्रेजी में लिखे जा रहे बाल
साहित्य की ओर चले जाते हैं । इसकी और भी वजहें संभव है लेकिन यह भी एक वजह है । हम
यह कह सकते हैं कि बाल साहित्य बच्चों को साहित्य की ओर ले जाने की नर्सरी है । हिंदी
के ज्यादातर लेखक बाल साहित्य को कम अहमियत देते हैं उनको लगता है कि उनके नाम के
साथ अगर बाल साहित्यकार लग गया तो उन्हें मुख्यधारा के साहित्यकारों के बीच अहमियत
नहीं मिलेगी । इस मानसिकता और मनोविज्ञान ने हिंदी के लेखकों को बाल साहित्य से
दूर किया । अंग्रेजी में ऐसा नहीं है । देवदत्त पटनायक जैसा मशहूर लेखक बाल
साहित्य सृजन कर रहा है । इस बात को मजबूती के साथ रेखांकित किया जा सकता है कि
अगर हिंदी में बाल साहित्य प्रचुरता में उपलब्ध होता तो हिंदी के पाठकों की कमी का
रोना ना तो प्रकाशक रोते और ना ही लेखक ।
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