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Saturday, June 4, 2016

संस्कृति के नाम पर फिजूलखर्ची ?

दिल्ली में एक अकादमी है, नाम है हिंदी अकादमी । दिल्ली के मुख्यमंत्री इसके अध्यक्ष हैं और हिंदी की मशहूर और वरिष्ठ कथाकार मैत्रेयी पुष्पा इसकी उपाध्यक्ष हैं । दिल्ली में हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति के संवर्धन, प्रचार प्रसार और विकास के उद्देश्य से उन्नीस सौ इक्यासी में एक स्वायत्तशासी संस्था के तौर पर इसका गठन किया गया था । हिंदी अकादमी का दावा है कि ये अपने गठन के समय से ही भाषाई, सांस्कृति और साहित्यक गतिविधियों के प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभाती रही है । हिंदी अकादमी की बेवसाइट पर मौजूद उसके लक्ष्यों और उद्देश्यों के मुताबिक इसको भाषा साहित्य और संस्कृति के कार्यक्रमों को कार्यरूप में लाना है । इसके अंतर्गत दिल्ली के प्राचीन तथा समकालीन साहित्य का संकलन, परिरक्षण और उसके सृजन के लिए प्रोत्साहन का कार्य सम्मिलित है । इसके अलावा भी इसकी बेवसाइट कई तरह के कार्यों को करने का दावा करती है जिसमें वयोवृद्ध उच्च कोटि के साहित्यकारों को पुरस्कृत करने से लेकर, साहित्यक कार्यक्रमों और गोष्ठियों का आयोजन, साहित्यक पत्रिका का प्रकाशन और युवा लेखकों को प्रकाशन योजना के अंतर्गत सहायता देना शामिल है । हिंदी अकादमी ने पूर्व में क्या काम किया इसपर जाने का ना तो वक्त है और ना ही अवसर लेकिन इस मौके पर टी एस इलियट की एक उक्ति अवश्य याद आ रही है – केवल अतीत ही वर्तमान को प्रभावित नहीं करता है, वर्तमान भी अतीत को प्रभावित करता है । हिंदी अकादमी के संदर्भ में ये दोनों बातें सही हैं । अतीत की आड़ में हिंदी अकादमी में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो कि अपेक्षित नहीं है और जो वर्तमान है वो अतीत के क्रियाकलापों पर फिर से कसौटी पर कसने की चुनौती दे रहा है । जब से मैत्रेयी पुष्पा ने हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष का पदभार संभाला है तब से कार्यक्रमों के आयोजन से उसकी सक्रियता नजर आ रही है । बाताया जा रहा है कि हिंदी के विकास के लिए स्कूलों कॉलेजों में भी कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं । अच्छी बात है । लेकिन अभी एक ऐसा मामला सामने आया है जो हिंदी अकादमी के कार्यक्रमों, उसके घोषिथ उद्देश्यों और लक्ष्य से अलग हट कर है । होली के मौके पर हिंदी अकादमी ने कई विधायकों और मंत्रियों के क्षेत्रों में होली मिलन कार्यक्रम आयोजित किया था जिसको सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत शामिल कर खर्चे दिखाए गए थे । इलियट की उक्ति के आलोक में देखें तो हिंदी अकादमी सालों से इस तरह के कार्यक्रमों का खर्चा उठाती रही है । सालों से किसी ने इसपर सवाल नहीं उठाया कि होली मिलन से कैसे संस्कृति का संवर्धन और विकास होता है । ये सब अब भी चल रहा था लेकिन होली मिलन के नाम पर बीजेपी के सांसद और कलाकार मनोज तिवारी को आठ लाख रुपए के भुगतान के बाद इस तरह के कार्यक्रमों पर सवाल उठने लगे हैं । खबरों के मुताबिक मनोज तिवारी के लोकसभा क्षेत्र में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था और संभवत यह दिल्ली के भाषा और संस्कृति मंत्री कपिल मिश्रा का विधानसभा क्षेत्र भी है । इस कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र के मुताबिक मुख्य अतिथि मशहूर कवि और आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास थे और मुख्य प्रस्तुति मनोज तिवारी की थी । निमंत्रण पत्र के मुताबिक निवेदक कपिल मिश्रा थे जो कि दिल्ली के भाषा और संस्कृति मंत्री हैं और हिंदी अकादमी उनके मंत्रालय के अधीन है । अब सवाल यही से खड़े होते हैं कि हिंदी अकादमी के कार्यक्रमों के निमंत्रण पत्र में , परंपरा के मुताबिक, निवेदक के तौर पर उसके सचिव का नाम छपता रहा है । इस बार खुद मंत्री का नाम कैसे छप गया । खैर ये बात छोटी लग सकती है लेकिन यहां से परंपरा टूटने और कुछ अलग हटके होने का संकेत मिलता है । इस कार्यक्रम के कार्ड पर उपाध्यक्ष का नाम भी नहीं छपा है जो कि हिंदी अकादमी के निमंत्रण पत्रों पर शोभा की तरह होता ही है । सानिध्य के तौर पर ।
दूसरी बात यह कि मनोज तिवारी को हिंदी अकादमी आठ लाख रुपए का भुगतान करती है तो क्या इतनी बड़ी रकम के भुगतान के लिए कार्यकारिणी की मंजूरी ली गई थी । अगर मंजूरी लगी गई थी तो क्या ये माना जाए कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भी इसमें सहमति थी क्योंकि वो ही अकादमी के अध्यक्ष हैं । सरकार को इन बातों को साफ करना चाहिए कि किसकी अध्यक्षता में उस कार्यकारिणी की बैठक हुई जिसने इतनी बड़ी रकम खर्च करने की मंजूरी दी गई । सवाल तो यह भी उठता है कि क्या कार्यकरिणी की बैठक में मनोज तिवारी के नाम पर इतने बड़े भगुतान की मंजूरी ली गई थी । क्या कार्यकारिणी के सदस्यों को इस बात की जानकारी दी गई थी कि करावल नगर में आयोजित होनेवाले कार्यक्रम में मनोज तिवारी को बुलाया जा रहा है और अमुक भुगतान पर।  क्या हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा की इसमें कोई भूमिका थी या वो सिर्फ मूकदर्शक बनी रहीं थी । जौसा कि उपर बताया गया है कि दिल्ली की हिंदी अकादमी पूर्व में होली मिलन जैसे कार्यक्रम करती रही है लेकिन बिदेसिया नाटक आयोजित करने में भी दो लाख खर्च किया गया था और उस नाटक के मंचन को देखने के लिए उस वक्त बीस हजार की भीड़ जुटी थी । एक सांस्कृतिक विरासत से लोगों का परिचय भी हुआ था ।
दरअसल अगर हम आम आदमी पार्टी की सरकार के बाद दिल्ली की हिंदी अकादमी के क्रियाकलापों पर नजर डालें तो उसके संचालन समिति के गठन से देखना होगा । इसी स्तंभ में पहले भी इस बात की चर्चा की जा चुकी है कि हिंदी अकादमी के संचालन समिति के गठन में पार्टी से गहरे जुड़े एक कवि की चली थी । मैत्रेयी पुष्पा को जब उपाध्यक्ष बनाया गया था तब सदस्यों की एक सूचूी उनको थमाई गई कि इनके साथ ही आपको काम करना है ।  अरविंद केजरीवाल के साथ हुई सदस्यों की पहली बैठक में उस कवि की मौजूदगी पर उस वक्त भी सवाल खड़े हुए थे लेकिन तब किसी ने उसपर ध्यान नहीं दिया था । बाद में वो बात आगे बढ़ती रही जिसकी परिणिति होली मिलन समारोह के आयोजन आदि में आकर दिखी । इसके पहले  हिंदी अकादमी के सदस्यों का कार्यकाल एक साल का होता है और पहले साल में ऐसे लोगों की नियुक्तियां हुई थी जो वृहत्तर एनसीआर के रहनेवाले थे । स्पष्ट था किसकी रुचि का ध्यान रखा गया था । इस साल वृहत्तर एनसीआर से आनेवाले सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और नए सदस्यों को शामिल किया गया । हिंदी अकादमी के सदस्यों का कार्यकाल भी एक साल से बढ़ाकर दो साल कर दिया गया । इस बार के चयन में उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा की चली है, ऐसा प्रतीत होता है । लेकिन दो ऐसे चयन है जो सवालों के घेरे में हैं । अकादमी में दो ऐसे सदस्य मनोनीत किए गए हैं जिनके मनोनयन के कुछ ही दिन पहले हिंदी अकादमी ने लखटकिया पुरस्कार से पुरस्कृत किया था । खैर इन सवालों का थोड़ी देर के लिए दरकिनार किया भी जा सकता है क्योंकि हमारा मानना है कि टीम लीडर को उसकी टीम में कौन हो इसका अधिकार मिलना चाहिए । अगर मैत्रेयी पुष्पा ने उनका चयन किया है तो यह देखना होगा कि आगे आनेवाले दिनों में उनका क्या उपयोग करती हैं । संचालन समिति से ज्यादा अहम भूमिका कार्यकारिणी की होती है और इस बार की सूची में ये माना जा रहा है कि उपाध्यक्ष के समर्थकों का दबदबा है ।
रही बात मनोज तिवारी को आठ लाख रुपए के भुगतान की तो हिंदी अकादमी को यह साफ करना होगा कि किस प्रक्रिया के तहत मनोज को भुगतान किया गया । मनोज तिवारी एक बेहतरीन कलाकार हैं और वो इस बात को स्वीकार भी करते हैं कि वो अपने हुनर के प्रदर्शन के लिए पैसे लेते हैं । इस पूरे प्रकरण में मनोज पर सवाल खड़ा उचित नहीं होगा । सवालों के घेरे में हिंदी अकादमी और उसकी प्रक्रिया है । क्या हिंदी अकादमी की स्वायत्ता में भाषा और संस्कृति मंत्रालय का दखल होता है । क्या मंत्री के कहने पर इस तरह के आयोजनों में कलाकारों को भारी भरकम भुगतान किया जाता है या फिर एक निश्चित प्रक्रिया के तहत भुगतान हुआ है । अगर भुगतान में प्रक्रिया का पालन किया गया है तो अकादमी के उस वक्त के सदस्यों के विवेक पर सवाल खड़े होते हैं कि मनोज के कार्यक्रम से कैसे भाषा, साहित्य और संस्कृति का विकास होता है क्यों अकादमी का पैसा आम आदमी की गाढ़ी कमाई का पैसा है ।     

        

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