ललित कला अकादमी एक बार फिर से गलत वजहों से सुर्खियों में है । संस्कृति
मंत्रालय ने ललित कला अकादमी के रिकॉर्ड रूम को सील कर दिया है । खबरों के मुताबिक
जिस कमरे में फाइलें रखी जाती हैं उसमें सचिव सुधाकर शर्मा के सहयोगी को देखे जाने
की शिकायत के बाद मंत्रालय ने ये कदम उठाया है ।अकादमी से मंत्रालय को शिकायत मिली
थी कि सुधाकर शर्मा के सहयोगी रिकॉर्ड रूम में जाकर दस्तावेजों में छेड़छाड़ कर
रहे हैं । दरअसल ललित कला अकादमी के
विवादित सचिव सुधाकर शर्मा पर कई संगीन इल्जाम है और इनमें से कुछ मामले अदालत में
चल रहे हैं । आरोप है कि इन्हीं केसों से जुड़े दस्तावेजों से छेड़छाड़ की जा रही
थी । सुधाकर शर्मा को ललित कला अकादमी के दो पूर्व चैयरमैन ने अलग-अलग समय पर बर्खास्त
कर दिया था, बावजूद इसके वो बार बार फिर से किसी ना किसी तरह अकादमी के सचिव पद पर
आसीन हो जाते हैं । पहले अशोक वाजपेयी ने उनके खिलाफ फैसला लिया था और उनके बाद चेयरमैन
बने के के चक्रवर्ती ने भी सचिव सुधाकर शर्मा को गड़बड़ियों के आरोप में बर्खास्त
कर दिया था । चक्रवर्ती के फैसले के खिलाफ सुधाकर केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट में
अपील में गए जिसने केंद्र सरकार को इस मामले पर विचार करने की सलाह दी ।जब ये
मामला चल रहा था और कैट का फैसला आया तबतक केंद्र में सरकार बदल चुकी थी । नए बने
संस्कृति मंत्री महेश शर्मा के कार्यकाल में ललित कला अकादमी के सचिव सुधाकर शर्मा
को दोबार बहाल कर दिया था । बेहद दिलचस्प घटनाक्रम में केंद्र सरकार ने के के चक्रवर्ती
को चेयरमैन के पद से हटाते हुए ललित कला अकादमी का कंट्रोल अपने पास ले लिया था और
संस्कृति मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव को उसका प्रभार सौंप दिया गया था । इस बीच खबर
आई कि सीएजी ने भी सुधाकर शर्मा को दिए गए वेतनमान पर आपत्ति उठाई है और अपनी
सिफारिश में कहा है कि सुधाकर शर्मा को दिए गए अतिरिक्त भुगतान को उनसे वसूला जाए ।
इन सब प्रसंगों और घटनाक्रमों के बीच ललित कला अकादमी से बेहद मंहगी पेंटिग्स गायब
होने की जांच भी जारी थी ।
दरअसल ललित कला अकादमी को लेकर काफी समय से विवाद चल रहा है । इस वजह
से आप अगर देखें तो जब केंद्र सरकार ने अकादमी की स्वायत्ता को खत्म कर उसका
नियंत्रण अपने हाथ में लिया तो उसपर ज्यादा विवाद नहीं हुआ । बात-बात पर अभिव्यक्ति
की आजादी के खतरे में होने और सांस्कृतिक संगठनों पर भगवा झंडा फहराने का आरोप
लगानेवाले वीर भी लगभग खामोश ही रहे । उन्हें मालूम था कि ललित कला अकादमी में किस
तरह के खेल खेले जा रहे हैं । दरअसल इन
अकादमियों की स्वायत्ता की आड़ में अराजकता के खेल पर लगाम लगाने की जरूरत है । साहित्य
और कला को लेकर जिस स्वायत्ता की कल्पना की गई थी उसको मूल रूप में स्थापित करने
के प्रयास किए जाने चाहिए । अपने इस स्तंभ में मैंने अकादमियों के काम-काज पर कई
बार टिप्पणी की है । इनके पुरस्कारों से लेकर विदेश यात्राओं तक में जिस तरह से
बंदरबांट की जाती है उसपर अंकुश लगाए जाने की आवश्यकता है । अकादमियों के कामकाज
का मूल्यांकन करने के लिए सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी की अध्यक्षता में वाली
संसद की स्टैंडिंग समिति ने 17 अक्तूबर 2013 को राज्यसभा के सभापति और लोकसभा के
अध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट पेश की थी । इस रिपोर्ट को दोनों सदनों के पटल पर दो
महीने बाद यानि 17 दिसबंर 2013 को पेश किया गया था । इस रिपोर्ट में अकादमियों के
काम-काज को लेकर बेहद कठोर टिप्पणियां की गई थी । राष्ट्रीय अकादमियों और अन्य
सांस्कृतिक संस्थाओं का कार्यकरण- मुद्दे और चुनौतियों के नाम से तैयार की गई इस
रिपोर्ट में साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी और संगीत नाटक अकादमी के अलावा
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के
काम-काज का लेखा-जोखा तो प्रस्तुत किया ही था, साथ ही इन संस्थानों में सुधारों के
बारे में सिफारिश भी की थी । दिसंबर 2013 के बाद तो पूरा देश चुनाव के मोड में चला
गया था और चुनावी कोलाहल के बीच किसी को कला और संस्कृति की सुध लेने की फुरसत
नहीं थी । संसद की इस रिपोर्ट के बाद एक हाईलेवल कमेटी भी बनी थी जिसने भी कुछ सुझाव
आदि दिए थे लेकिन लगता है कि उनपर अमल नहीं हो पाया है । हाईलेवल कमेटी के सुझावों
पर देशभर में गंभीर बहस की जरूरत है ।
संसदीय समिति ने अपने प्रतिवेदन में माना था कि- ये अकादमियां हमेशा से विवादग्रस्त रही हैं ।
हमारे संस्थापकों ने संस्कृति को राजनीति से दूर रखने के लिए इन्हें स्वायत्ता दी
परंतु आज ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीति इनमें पिछले दरवाजे से गुपचुप तरीके से
प्रवेश कर गई है । इन संस्थाओं के संस्थापकों को लेखकों और कलाकारों के समुदाय की
एकता पर दृढ विश्वास था और वे आज इन संस्थाओं को बाधित करनेवाली समस्याओं का
पूर्वानुमान नहीं लगा पाए । इसके परिणामस्वरूप प्रक्रिया में पारदर्शिता और परिणाम
के संबंध में जवाबदेही का आभाव है । वस्तुत पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना उसकी
स्वायत्ता एक दुधारी तलवार बन गई है जिसको कोई भी अपनी सुविधानुसार प्रयोग कर सकता
है ।‘ अब अगर हम इस टिप्पणी के आलोक में ललित कला
अकादमी और उसके सचिव का मामला देखें तो साफ हो जाता है कि इस पूरे मामले में ना
केवल जमकर राजनीति बुई बल्कि स्वायत्ता के नाम पर भी तमाम तरह की गड़बड़ियों को
अंजाम दिया गया । स्वायत्ता के नाम पर हर नियम का सुविधानुसार उपयोग किया गया । यूपीए
सरकार के दौरान बनाए गए ललित कला अकादमी अध्यक्ष के उस फैसले को बदल दिया गया
जिसमें उन्होंने सचिव सुधाकर शर्मा को बर्खास्त करने का आदेश दिया था । तब
मंत्रालय ने तर्क दिया था कि इस मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन
नहीं हुआ । अब उसी सरकार ने फिर से ललिता कला अकादमी के सचिव सुधाकर शर्मा के
कामकाज की जांच का एलान किया है । अकादमी के कमरे को सील कर दिया है ।
संसदीय समिति ने अपनी सिफारिश में कहा था कि अकादमियों और तमाम
सांस्कृतिक संस्थानों के काम-काज पर नजर रखने के लिए एक नियंत्रक निकाय होना चाहिए
। इस निकाय को यह सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा जाना चाहिए कि सभी अकादमियों और
संगठनों के प्रशासन उनके लिए निर्धारित नियमों तथा संविधानों के अनुसार कार्य
संचालित कर रहे या नहीं । इस कमेटी ने कला के क्षेत्र में प्रेस परिषद की तरह की
संस्था बनाने का सुझाव भी दिया था और उसके सदस्यों का चुनाव भी उसी की तर्ज पर
करने की सिफारिश की थी । दरअसल कमेटी की इस सिफारिश के पीछे ये मंशा थी कि लेखक या
कलाकार अगर अकादमियों में हो रही गड़बड़ियों की शिकायत करना चाहे तो उसके पास एक
प्लेटफ़ॉर्म हो । लेकिन इस दिशा में कोई ठोस काम नहीं हो पाया और ये अकादमियां गड़बड़ियों
का जीता जागता उदाहरण बनकर शान से काम कर रही हैं । ललित कला अकादमी के सचिव पर
तमाम तरह की गड़बड़ियों के आरोप लगे, कई बार सस्पेंडसे लेकर बर्खास्त तक कर दिए गए
लेकिन फिर से वो बहाल होते रहे । इस पूरे प्रकरण से यह साफ है कि सिस्टम में कहीं
ना कहीं कोई ना कोई गड़बड़ी है । इस गड़बड़ी को दूर किए बिना इन अकादमियों को
दुरुस्त नहीं किया जा सकता है । ललित कला अकादमी देश में कला के उत्थान और उन्नयन
के लिए काम करती है लेकिन उसके कामकाज का नियमित ऑडिट होना जरूरी है । इस बात का
लेखा-जोखा लिया जाना चाहिए की जिस मूल उद्देश्य के लिए उसकी स्थापना कि गई थी उस
दिशा में वो आगे बढ़ पा रही है या नहीं । ललित कला अकादमी में अध्यक्ष और सचिव के
बीच बहुधा ठनी रहती है जिसका नुकसान कलाकारों से लेकर कला तक को हो रहा है ।
ललित कला अकादमी के अलावा साहित्य अकादमी की सालों से चली आ रही नियमों
को अपडेट करने की जरूरत है । जैसे साहित्य अकादमी के अध्यक्ष और साधारण सभा के
सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया बेहद दोषपूर्ण है । वहां हाथ उठाकर प्रत्याशियों का
चयन कर लिया जाता है और बहुधा हर भाषा के लोग एक अलिखित समझौते के तहत अपनी भाषा
के प्रतिनिधि का चुनाव कर देते हैं । इसमें पारदर्शिता बिल्कुल नहीं होती है और एक
खास गुट के लोगों का कब्जा बरकरार रहता है । गड़बड़ी यहीं से शुरू होती है । सरकार
को इस दिशा में काम करने की जरूरत है । साहित्य अकादमी के अध्यक्ष और उसकी साधारण
सभा के सदस्यों का चुनाव या तो बैलेट से हो या फिर उसके लिए कोई ऐसी प्रक्रिया
बनाई जाए जो पारदर्शी हो और उसमें मनमानी की गुंजाइश नहीं रहे । सवाल वही है कि
क्या सरकार में इन संस्थाओं की स्वायत्ता को बरकार रखते हुए गड़बड़ियों को दूर
करने की इच्छाशक्ति है ।
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