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Friday, May 19, 2017

राष्ट्रपति चुनाव बहाना, 2019 निशाना

करीब दो महीने बाद होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछने लगी है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों में से चार में जीत हासिल करने और दिल्ली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में हैट्रिक लगाने के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद हैं। वहीं चुनाव दर चुनाव हार के बाद से विपक्ष दलों के हौसले पस्त हैं। इन पस्त हौसलों की वजह से ही अलग अलग सियासी जमीन पर राजनीति करनेवाले दल एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं। आंकड़े बता रहे हैं कि एनडीए को अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार को जिताने में कोई दिक्कत नहीं होगी। विपक्ष के उम्मीदावर की हार भी लगभग तय है । बावजूद इसके बीजेपी के विरोधी दल राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी एकता के लिए एड़ी चोटी का जोड़ लगाए हुए हैं । कहा तो यहां तक जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए कम्युनिस्टों को बंगाल में अपने चिर प्रतिद्वंदी तृणमूल कांग्रेस के साथ आने में भी अब कोई परहेज नहीं रहा । सोनिया गांधी बीमार होने के बावजूद दिल्ली में विपक्षी दलों के नेताओं के साथ लगातार बैठकें कर रही हैं । ममता बनर्जी ने की लंबी मुलाकात सोनिया गांधी से हुई लेरिन राष्ट्रपतु चुनाव के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार को लेकर सहमति नहीं बनी है। उधर सीताराम येचुरी ने भी नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूख अब्दुल्ला और बीजेडी के नेता और ओडिशा के मुख्मंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात कर राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी के खिलाफ लामबंदी को गति दी है। अबतक नवीन पटनायक कांग्रेस और बीजेपी से समान दूरी बनाए हुए थे लेकिन जब से ओडिशा के स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी को जबरदस्त सफलता मिली है तो नवीन पटनायक बीजेपी के विरोधवाले पाले में जाते दिखाई दे रहे हैं। अब  भानुमति का कुनबा कैसा बनता है और राष्ट्रपति चुनाव तक क्या शक्ल अख्तियार करता है यह तो वक्त ही बताएगा। प्रणब मुखर्जी के चुनाव के वक्त भी कांग्रेस के विरोध का स्वर उठानेवाले ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव ने आखिर तक राजनीतिक उहापोह बरकरार रखा था वो अभी भी देश की जनता की स्मृति में ताजा है। विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश करना वैसा ही है जैसे अलग अलग दिशाओं में जाने वाले घोड़ेवाले रथ की सवारी करना।
इसके अलावा जो एक बड़ी चुनौती विपक्षी दलों के सामने है वो अपने साझा उम्मीदवार के चयन को लेकर है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे गोपालकृष्ण गांधी,पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के अलावा शरद पवार और शरद यादव के नाम भी फिजां में, विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर, तैर रहे हैं। गोपालकृष्ण गांधी ने तो माना भी है कि उनसे संपर्क भी किया गया है। गोपालकृष्ण गांधी महात्मा गांधी के पौत्र हैं और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के तौर पर उनका ममता बनर्जी से भी संपर्क बेहतर रहा है। इसके अलावा शरद पवार को लेकर विपक्षी दल इसलिए उत्साहित हैं कि वो मानकर बैठे हैं कि मराठा प्राइड के नाम पर शिवसेना उनका समर्थन कर सकती है। दो हजार सात के राष्ट्रपति के चुनाव में शिवसेना ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया था क्योंकि वो महाराष्ट्र से थीं। उस वक्त शिवसेना ने एनडीए के उम्मीदवार को वोट नहीं दिया था। जेडीयू के नेता शरद यादव का नाम आगे बढ़ा रहे हैं । उनके तर्क का आधार शरद यादव की वरिष्ठता है। राष्ट्रपति चुनाव के नोटिफिकेशन होने के पहले ही विपक्षी दलों के बीच किसी साझे उम्मीदवार के नाम पर सहमति को लेकर जिस तरह की राजनीति चल रही है उससे आनेवाले दिनों के संकेत मिल रहे हैं। संभव है कि चुनाव तक मतभेद खुलकर सामने आ जाएं।

रायसीना हिल्स की इस लड़ाई में बीजेपी का अपर हैंड है क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव की जो प्रक्रिया है,उसमें वोटरों की संख्या के लिहाज से एनडीए को बढ़त हासिल है। राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के चुने हुए सांसद और विधायक वोट डालते हैं। राज्यसभा और लोकसभा के चुने हुए सांसदों की संख्या सात सौ छिहत्तर है और विधायकों की चार हजार एक सौ चौदह। एक सांसद का वोट सात सौ छिहत्तर के बराबर होता है और राज्यों के विधायकों के वोट की गणना जनसंख्या और विधानसभा सदस्यों के अनुपात के हिसाब से तय की जाती है । इस वक्त विधायकों के वोटों की आनुपातिक संख्या पांच लाख उनचास चार सौ आठ है, जबकि सांसदों के वोटों की आनुपातिक संख्या पांच लाख उनचास हजार चार सौ आठ है। इस आधार पर गणना करने से एनडीए के पास कुल वोट पांच लाख बत्तीस हजार सैंतीस हैं और उसको अपने कैंडिडेट को जिताने के सत्रह हजार चार सौ चार वोटों की जरूरत है। राष्ट्रपति चुनाव के नियमों के मुताबिक इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों का पचास फीसदी यानि पांच लाख उनचास हजार चार सौ इकतालीस वोट मिलना जीत के लिए आवश्यक है। इसी तरह से अगर आंकड़ों को देखें तो विपक्षी खेमे के पास इलेक्टोरल कॉलेज के तीन लाख इक्यानवे हजार सात सौ उनतालीस वोट हैं। अब तक जिन पार्टियों का रुख साफ नहीं हुआ है उनके वोटों की संख्या एक लाख चौवालीस हजार तीन सौ दो है। दोनों को जोड़ देने के बाद भी यह कुल मत के पचास फीसदी वोट तक नहीं पहुंचता है। अभी कुछ दिन पहले आंध्र प्रदेश की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगन रेड्डी ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के बाद एनडीए के उम्मीदवार को समर्थन देने का एलान कर दिया है । इस एलान के बाद एनडीए उम्मीदवार की जीत का रास्ता लगभग साफ हो जाएगा। इन आंकड़ों के बावजूद अगर विपक्षी दल राष्ट्रपति चुनाव के नाम पर एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल वो दो हजार उन्नीस के महागठबंधन की संभावनाओं को तलाश रहे हैं, और इस बहाने से गठबंधन की जमीन तैयार कर रहे हैं। 

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