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Friday, May 5, 2017

खेती पर कर पर भ्रम!

किसानों को आयकर के दायरे में लाने के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार में भ्रम की स्थिति दिखाई देती है। पहले नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय ने आयोग की बैठक में पेश अपने मसौदे में टैक्स दायरे को बढ़ाने के लिए किसानों को खेती से होनेवाली आय पर टैक्स लगाने का सुझाव दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई नीति आयोग की इस बैठक में बिबेक देबरॉय ने तीन साल की कार्ययोजना को पेश करते समय कृषि से होनेवाली आय को आयकर के दायरे में लाने की वकालत की। बिबेक देबरॉय ने कहा था कि आयकर का दायरा बढ़ाने का यह एक तरीका हो सकता है। बिबेक ने तमाम तरह के आयकर कानूनों का हवाला देते हुए अपना पक्ष रखा था। नीति आयोग के विजन डॉक्यूमेंट में एक हेडर है- इनकम टैक्स ऑन एग्रिकल्चर इनकम जो कहता है कि अभी खेती से होनेवाली आय में हर तरह की ठूट मिली है चाहे किसानों को कितनी भी आय हो। जबकि कृषि से होनेवाली आय में छूट देने का उद्देश्य किसानों को संरक्षण देना था। कभी कभार इस छूट का बेजा इस्तेमाल भी होता है और खेती के अलावा अन्य आय को भी कृषि आय के रूप में दिखाकर टैक्स में छूट हासिल किया जाता है। काले धन की समस्या से निबटने के लिए इस तरह के चोर दरवाजों को बंद करना होगा। नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय के इस बयान के बाहर आते ही पूरे देश में हंगामा मच गया। किसानों का मुद्दा हमेशा से हमारे देश में संवेदनशील रहा है । कृषि से होनेवाली आय को आयकर के दायरे में लाने की खबर और उसके होनेवाले असर से केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी दोनों चौकन्नी हो गई।
केंद्र सरकार की तरफ से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्वयं मोर्चा संभाला और साफ कर दिया कि सरकार का कृषि से होनेवाली आय को कर के दायरे में लाने का कोई इरादा नहीं है और बिबेक देबरॉय का प्रस्ताव उनकी निजी राय है। वित्त मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि कृषि पर टैक्स लगाना केंद्र सरकार के कार्यक्षेत्र में आता भी नहीं है । नीति आयोग ने भी बिबेक देबरॉय के मत से अपना पल्ला झाड़ लिया था। लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली के बयान के अड़तालीस घंटे भी नहीं बीते थे कि केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने भी खेती पर टैक्स की बात कहकर सरकार को धर्मसंकट में डाल दिया । एक कार्यक्रम में अरविंद सुब्रह्मण्यम ने साफ किया कि सरकार को अमीर और गरीब किसान में भेद करना होगा । अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए अरविंद ने जोर देकर किसानों पर टैक्स लगाने के प्रस्ताव का समर्थन कर दिया। केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से अलग अपनी राय रखी और कहा कि केंद्र सरकार को इस तरह का टैक्स लगाने के लिए कोई पाबंदी नहीं है। अरविंद के मुताबिक कोई भी कानून राज्य सरकारों को कृषि आय पर कर लगाने से नहीं रोकता है । उन्होंने कहा, राज्यों के पास ऐसा करने के लिए पूरा अधिकार है। इसके बाद से इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है।

दरअसल कृषि से होनेवाली आय को कर के दायरे में लाने की वकालत समय समय पर अर्थशास्त्री करते रहे हैं। कानूनी पेचीदगियों से लेकर आंकड़ों की बाजीगरी करके इस तरह के प्रस्तावों के समर्थन करनेवाले लोग भी सामने आकर खड़े हो जाते हैं । बिबेक देबरॉय और अरविंद के सुझावों को उसी आईने में देखा जाना चाहिए। प्रतीत होता है कि राजनीति की तरह ही इस मुद्दे को भी उछालकर या उछलवाकर देश का मूड टेस्ट किया जाता रहा है। इस देश में जहां अब भी किसान इंद्र देवता की कृपा पर हों, वहां उनपर इंकम टैक्स लगाने की सोचने से पहले देश के रहनुमाओं को उनकी बेहतरी के बारे में कोई ठोस कार्ययोजना का प्रस्ताव करना चाहिए। नीति आयोग टैक्स के दायरे को बढ़ाने और कालेधन को रोकने के लिए चोर दरवाजे को बंद करने की कवायद कर रहा है, यह अच्छी बात है लेकिन बजाए इसमें ठोस सुझाव आने के किसानों को टैक्स के दायरे में लपेटने का आसान रास्ता चुना गया। अगर सचमुच मंशा कालेधन के जेनरेशन पर रोक लगाने की है तो उसके लिए फॉर्मूला सोचना होगा। या फिर जो किसानों के नाम पर अपना काला धन सफेद कर रहे हैं उनपर शिकंजा कसने के लिए प्रस्ताव लाना चाहिए।
इस देश में जहां किसानों की आत्महत्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही हो वहां इस तरह के टैक्स का बोझ डालना उनकी मुसीबतों को बढ़ानेवाला ही होगा । राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के पिछले साल दिसंबर में जारी आंकड़ों के मुताबिक किसानों की आत्महत्या की दर तेजी से बढ़ी है और दो हजार पंद्रह में बारह हजार छह सौ से ज्यादा किसानों ने खुदकुशी की। सबसे ज्यादा खुदकुशी के केस महाराष्ट्र से आए। इस रिपोर्ट के मुताबिक किसानों और खेतिहर मजदूरों की आत्महत्या की वजह कर्ज, कंगाली और खेती से जुड़ी दिक्कतें हैं। ऐसे माहौल में नीति आयोग को किसानों को राहत देने के प्रस्ताव पर विचार करना चाहिए। किसानों को छेड़ना केंद्र सरकार को महंगा पड़ सकता है।
रही बात काले धन को बढ़ावा देने की तो क्या नीति आयोग ने उद्योगपतियों की कारगुजारियों से होनेवाले कालेधन के जेनरेशन पर विचार किया ? अगर किया तो उसको इतनी ही प्रमुखता से प्रचारित क्यों नहीं किया? आयकर बढ़ाने के लिए खेती पर टैक्स की वकालत करनेवाले अर्थशास्त्रियों को उन उद्योगपतियों के बारे में विचार करना चाहिए जो बैंकों का करोड़ो रुपए दबाकर बैठे हैं ।विजय माल्या जैसे लोग करोड़ो का चूना लगाकर चंपत हो जाते हैं लेकिन एजेंसियां कुछ कर नहीं पातीं। एक अनुमान के मुताबिक भारत के बैकों का सवा लाख करोड़ रुपए का एनपीए है। बैंक के बड़े डिफॉल्टरों को तो सरकार से लेकर इंकम टैक्स विभाग और बैंक हर जगह से राहत मिलती है और करोडों की राशि को एनपीए यानि नॉन परफॉर्मिंग असेट में दिखाने का खेल खेला जाता है। क्या नीति आयोग को सरकार को यह हीं सुझाना चाहिए कि वो बैंकों के इन डिफाल्टरों से पैसे वसूली के लिए उनके अन्य कारोबार को भी जब्त कर ले या फिर किसी और तरीके से इसकी वसूली की जा सके।
भारत को इन मामलों में चीन से सीखना होगा। चीन ने अभी अपने यहां बैंकों की राशि समय पर नहीं चुकानेवालों पर डंडा चलाया है। चीन ने करीब साठ लाख लोगों को चिन्हित किया है जिन्होंने बैंकों का धन वक्त पर नहीं चुकाया है । ऐसे लोगों को विमान से यात्रा करने पर रोक लगा दी गई है । इसी तरह के करीब तेइस लाख लोगों को हाई स्पीड ट्रेन से चलने पर रोक लगा दी गई है। हमारे यहां तो बैकों का लाखों करोड़ रुपए डूबा हुआ है और जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं वो अलग अलग कंपनियों के खाते पर तमाम तरह की लक्जरी का उपभोग करते हैं । इसके अलावा रिजर्व बैंक विलफुल डिफाल्टर्स के नाम भी उजागर करने की इजाजत बैंकों को नहीं देता है। बैंक कर्मचारियों के एसोसिएशन इसकी मांग कर रहे हैं लेकिन रिजर्व बैंक इसके लिए तैयार नहीं दिख रहा है। ऐसी हालत में कृषि पर आय का प्रस्ताव किसानों के लिए मुसीबत बढ़ानेवाला तो होगा ही राजनीतिक तौर पर सत्ताधारी दल के लिए भी मुश्किलें लेकर आ सकता है। राजनीतिक बुद्धिमत्ता तो यही कहती है कि किसानों को ना छेडा जाए।       


2 comments:

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

मेरे हिसाब से किसानों पर अगर टैक्स लगाया भी जा रहा है तो उसमे भी स्लैब का निर्धारण होगा। जैसे अभी ढाई लाख से नीचे कमाई वालों पर टैक्स लगता है वैसा ही स्लैब किसानों के लिए भी निर्धारित किया जाए तो उन्हें इनकम टैक्स के दायरे में लाने में कोई दिककत नहीं होनी चाहिए।

हाँ, उद्द्योगपति जो पैसा दबाये बैठे हैं उन्हें निकलवाना सरकार की प्राथमिकता होती है।

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

हाँ उद्योगपतियों द्वारा दबाया गये धन को निकलवाना भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।