किताबों की साज-सज्जा को लेकर भारतीय प्रकाशन जगत
में कम ही काम होता है। अंग्रेजी में थोड़ा अधिक और हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं
में अपेक्षाकृत कम। हिंदी में तो बहुधा ऐसा होत है कि लेखक किताबों की साज सज्जा
का काम प्रकाशकों पर छोड़ देते हैं । प्रकाशक अपने काम के बोझ तले इतना दबे होते
हैं कि वो हर पुस्तक की प्रोडक्शन क्वालिटी पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। कई बार
जिल्द खराब होती है तो कई बार आवरण तो कई बार बाइंडिंग इतनी लचर होती है कि पुस्तक
हाथ में लेते ही पन्ने अलग होने लगते हैं। कुछ महीनों पहले हिंदी में आई यतीन्द्र
मिश्र की किताब लता सुर-गाथा अपने प्रोडक्शन की वजह से भी चर्चा में रही थी। अभी
हाल ही में आशा पारिख की आत्मकथा ‘द हिट गर्ल’
को देखकर संतोष हुआ। इस किताब की साज-सज्जा बेहतरीन है और इसकी प्रोडक्शन क्वालिटी
को देखकर ही पाठक पहली नजर में इसकी ओर आकर्षित हो सकता है।
करीब ढाई सौ पन्नों की इस किताब को बेहतरीन तरीके
से प्रस्तुत किया गया है। आशा पारिख की इस आत्मकथा के सहलेखक हैं मशहूर फिल्म
समीक्षक खालिद मोहम्मद। खालिद ने इस किताब के लिखने की बेहद दिलचस्प वजह बताई थी।
उन्होंने एक दिन आशा पारिख से पूछा कि आपके ऊपर कोई किताब क्यों नहीं आई तो आशा
पारिख ने जवाब दिया कि किसी ने आजतक पूछा ही नहीं। आशा पारिख के इस जवाब ने खालिद
साहब को किताब लिखने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर दिया और वहीं से बनी इस किताब
की योजना। जब किताब प्रकाशित हुई तो इसके कवर पर इस बात को प्रमुखता से प्रचारित
किया गया है कि भूमिका सुपरस्टार सलमान खान की है । लेकिन अगर पाठकों को सलमान खान
की भूमिका से कोई अपेक्षा है तो वो निराश होगें। सलमान खान ने आशा पारिख की फिल्म
यात्रा पर किसी दृष्टि के तहत नहीं लिखा है। बस सलमान खान हैं, उनकी स्टार वैल्यू
है, तो लिखवा लिया गया। इस भूमिका से किताब की कोई तस्वीर नहीं उभरती है, ना ही
आशा पारिख के संघर्षों के संकेत मिलते हैं। इस किताब की शुरुआत में बड़े नामों ने
निराश किया है लेकिन जैसे जैसे पाठक आगे बढ़ता है उसके लिए एक नई दुनिया खुलती ही
नहीं बल्कि खिलती भी है।
आशा पारिख पहले नृत्यांगना थी, फिर वो सह
अभिनेत्री की भूमिका में आई, फिर उन्होंने बॉलीवुड में अपनी सफलता का परचम लहराया
और फिर उन्हें बॉलीवुड की उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। इस दौर में वो फिल्म सेंसर
बोर्ड की अध्यक्ष बनीं। ये सब कुछ तब खुलने लगता है जब स्वयं आशा पारिख इस किताब
में प्रकट होती हैं।
किसी भी बॉलीवुड
शख्सियत की जब जीवनी या आत्मकथा आती है तो पाठकों को यह उम्मीद रहती है कि उसमें
जीवन और संघर्ष के अलावा उस दौर का ‘मसाला’ भी
होगा। आशा पारिख की इस किताब हिट गर्ल में ‘मसाला’ की चाह रखनेवाले पाठकों को निराशा होगी क्योंकि आशा पारिख ने अपनी
समकालीन नायिकाओं, नंदा और साधना आदि से अपनी प्रतिस्पर्धा के बारे में तो लिखा है
लेकिन उस लेखन ये यह साबित होता है कि उस दौर में अभिनेत्रियों को बीच अपने काम को
लेकर चाहे लाख मनमुटाव हो जाए लेकिन उनके बीच किसी तरह का मनभेद नहीं होता था। यह
किताब पूरी तरह से आशा पारिख के इर्द गिर्द घूमती है। आशा पारिख ने अपनी इस किताब
में माना है कि वो फिल्मकार नासिर हुसैन के प्रेम में थीं और इस बात को भी साफ किया है कि उनका प्रेम
परवान क्यों नहीं चढ़ सका। आशा पारिख ने जोर देकर कहा कि उन्होंने जीवन में सिर्फ
एक शख्स से प्रेम किया और वो थे नासिर हुसैन। नासिर हुसैन और आशा पारिख का साथ
बहुत लंबा चला था। नासिर साहब ने ही आशा पारिख को उन्नीस सौ उनसठ में अपनी फिल्म ‘दिल दे के देखो’ में
ब्रेक दिया था। ‘दिल दे के देखो’ से
शुरू हुआ सफर एक के बाद एक सात फीचर फिल्मों तक चला । ये सातों फिल्म सुपर हिट रही
थीं । ‘तीसरी मंजिल’ और ‘कारवां’ की सफलता ने तो आशा पारिख को सुपर
हिट अभिनेत्री की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया था। आशा पारिख ने अपनी किताब में
इस बात पर भी प्रकाश डालने की कोशिश की है कि उन्होंने शादी क्यों नहीं की ।
उन्होंने साफगोई से माना है कि वो नहीं चाहती थी कि उनकी वजह से नासिर साहब अपने
परिवार से दूर हो जाएं या उनपर एक परिवार को तोड़ने का ठप्पा लगे। आशा पारिख और
नासिर साहब की नजदीकियो के बारे में कभी बॉलीवुड में इस तरह से चर्चा नहीं हुई कि
दोनों प्रेम में थे। ना ही उस रिलेशनशिप को लेकर नासिर साहब के परिवार के लोगों ने
कभी सार्वजनिक रूप से आपत्ति की। दो हजार दो में नासिर साहब का निधन हो गया और
उनके निधन के करीब बारह साल बाद आशा पारिख ने अपनी आत्मकथा में इस राज को खोला।
आशा पारिख ने माना है कि बगैर नासिर साहब के चर्चा की उनकी आत्मकथा का कोई अर्थ
नहीं था।
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