किसी भी सरकार के तीन साल पूरे होने के बावजूद
अगर उसके शीर्ष नेतृत्व की लोकप्रियता में कोई
कमी नहीं दिखाई देती हो तो यह माना
जा सकता है कि जनता सरकार के कामकाज से संतुष्ट है। किसी भी सरकार के सत्ता में
आने के तीन साल बाद भी अगर उसपर घोटालों का एक भी बड़ा आरोप नहीं लगे तो यह भी माना
जाना चाहिए कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सफलता मिली है। आजाद भारत के इतिहास
में यह पहली बार हो रहा है कि किसी प्रधानमंत्री के कार्यकाल के तीन साल पूरा होने
पर भ्रष्टाचार के छींटे नहीं उड़े। नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक की सरकारों में
साल दो साल के अंदर ही घपले-घोटाले उजागर होने लगते थे। चाहे वो जीप घोटाला हो या
फिर बोफोर्स घोटाला। इस कसौटी पर नरेन्द्र मोदी का अगुवाई वाली एनडीए की मौजूदा
सरकार को पूरे नंबर मिलने चाहिए। दो हजार चौदह में जब नरेन्द्र मोदी देश के
प्रधानमंत्री बने तो उसके बाद मशहूर पत्रकार जॉन इलियट ने अपनी किताब- इंप्लोजन, इंडियाज़
ट्रायस्ट विद रियलिटी में लिखा है –‘नरेन्द्र मोदी आजादी के बाद सबसे
मजबूत प्रधानमंत्री के तौर पर उभरे हैं । आजादी के बाद के किसी भी प्रधानमंत्री
में इतनी मजबूत प्रतिबद्धता और आगे बढ़ने की ललक नहीं दिखाई देती है जो नरेन्द्र
मोदी में दो हजार चौदह के ऐतिहासिक जीत के बाद दिखाई दी ।‘ जॉन इलियट दो हजार
चौदह के चुनाव के पहले हिंदुस्तान की राजनीति पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैं कि – ‘लोग कांग्रेस के दस
साल के शासन से उब चुके थे, उनकी अस्पष्ट नीतियों और सोनिया और राहुल गांधी के
नेतृत्व से देश में हताशा का माहौल बनने लगा था । लोग अब एक ऐसा प्रधानमंत्री
चाहते थे जो फैसले ले भी और उसको लागू भी करवाए । जो देश की व्यवस्था की खामियों
को दूर करे और भ्रष्टाचार पर नकेल कसे । इसके अलावा लोगों की आकांक्षा थी कि वो
भारत के आर्थिक तौर पर सफल बनाते हुए विकास के पथ पर आगे बढ़े ताकि देश में रोजगार
आदि की संभावनाओं के नए द्वार खुल सके ।‘ इन परिस्थितियों में नरेन्द्र मोदी
को देश ने केंद्र की सत्ता सौंपी। उनके सामने चुनौतियों का पहाड़ था।
जैसा कि जॉन इलियट ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने
शुरुआती कदमों से मजबूत इरादों की झलक दे दी थी। जनधन से लेकर अन्य योजनाओं के
बारे में काफी चर्चा हो चुकी है लेकिन अगर हम पिछले सालभर के फैसलों पर नजर डालें
तो देश में निवेश का माहौल बना है। कर सुधार को लेकर सरकार ने जीएसटी बिल को पास
करवा लिया और अब ये बिल लागू होने को है। जीएसटी को कर सुधार के क्षेत्र में मील
का पत्थर माना जा रहा है और इससे ना केवल कर प्रणाली में सुधार होगा बल्कि इससे
सभी क्षेत्रों के निवेशकों का भरोसा भी बढ़ेगा। कर सुधार के अलावा सरकार ने देश
में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने का माहैल भी बनाया। मेक इन इंडिया जैसे
कार्यक्रमों की बदौलत ही आज एप्पल जैसी कंपनियां भारत में ही अपने उत्पादों को
तैयार कर रही हैं। इसका फायदा देश के विकास दर में भी देखने को मिला। रुपया भी
अंतराष्ट्रीय बाजार में स्थिर हो गया है। महंगाई पर लगभग काबू पा लिया गया है और
कालाबाजारियों को भी कानून से डर लगने लगा।
इसके अलावा दो और फैसलों पर भी सरकार की दृढ इच्छाशक्ति का पता
चलता है, पहला है नोटबंदी और दूसरा पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक। जब
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल आठ नवंबर को नोटबंदी का एलान किया था तब
विशेषज्ञों ने इस कदम को आत्मघाती बताया था । संसद में भी इसको लेकर कई दिनों तक
हंगामा होता रहा था। सरकार पर यह आरोप लग रहे थे कि उसने बगैर तैयारी के नोटबंदी
का एलान कर जनता को मुश्किल में डाल दिया है। शुरुआती दिनों में बैंकों के बाहर लग
रही लंबी लंबी कतारें और पैसों की किल्लत को लेकर भी खूब शोरगुल मचा था, लेकिन
अंतत: नोटबंदी का फायदा
सरकार को होता दिखा। लंबी कतारों में खड़े होकर, तकलीफें सहकर भी देश की जनता ने
प्रधानमंत्री के इस कदम को भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग माना। नोटबंदी के बाद हुए
चुनावों में बीजेपी की जीत को प्रधानमंत्री के इस फैसले पर जनता की मुहर मानी गई।
दूसरा बड़ा फैसला था पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकवादियों के
ठिकानों को ध्वस्त करना। पिछले साल सितंबर उरी में आर्मी के कैंप पर आतंकवादी हमले
के बाद सरकार विरोधियों के निशाने पर थी । इस हमले के चंद दिनों के बाद ही भारतीय
सेना ने पाकितान की सीमा में घुसकर आंतकवादियों के ठिकानों को ध्वस्त किया और
पाकिस्तानी सेना को भी भारी नुकसान पहुंचाया। यह भारतीय सेना के मनोबल को ऊंचा
करने के लिए बहुत आवश्यक था और इसका फैसला लेकर एक बार प्रधानमंत्री मोदी ने फिर
से अपने दृढ़ नेता की छवि को मजबूत किया। सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल भी उठे लेकिन
जनता ने सवाल उठानेवालों को चुनाव दर चुनाव नकार दिया। बार बार चुनावों की चर्चा
इस वजह से कि लोकतंत्र में जनता के मूड को भांपने का यही मापदंड है।
मोदी सरकार के तीन साल बीतने के बाद अब जो सबसे बड़ी चुनौती सरकार
के सामने है वो है बेरजगारी के निबटने की। इस दिशा में सरकार को ठोस कदम उठाने की
जरूरत है और निजी क्षेत्र को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। ऐसी
नीतियां बनानी होंगी कि निजी कंपनियां छोटे शहरों में जाएं। इसके लिए छोटे शहरों
में इंफ्रास्ट्रक्टर डेवलप करने होंगे। स्मार्ट सिटी की योजना अकर साकार हो गई तो
संभव है कि छोटे शहरों में भी रोजगार के अवसर पैदा हो सकेंगे। कुल मिलाकर अगर हम
देखें तो तीन साल का मोदी का कार्यकाल संतोषजनक ही माना जाएगा।
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