एक अनुमान के मुताबिक
इस वक्त देश भर में सवा तीन सौ से अधिक लिटरेचर फेस्टिवल हो रहे हैं, जिनको लिट
फेस्ट या साहित्योत्सव भी कहा जाता है ।अमूमन सभी लिटरेटर फेस्टिवल में साहित्य को
केंद्र में रखकर इसकी विभिन्न विधाओं और प्रवृत्तियों पर चर्चा होती है। इस मायने
में दैनिक जागरण का लखनऊ में आयोजित जागरण संवादी इन तमाम साहित्योत्सवों से अलग
है। जागरण संवादी जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि ये संवाद करनेवालों का मंच है।
इसमे साहित्य की विधाओं और प्रवृत्तियों पर भी बात होती है लेकिन ये इससे अलग हटकर
विचार और विमर्श पर केंद्रित आयोजन होता है। साहित्य से जुड़े लोग भी साहित्यिक
विमर्शों पर मंथन करते हैं। इस वर्ष लखनऊ के संगीत नाटक अकादमी परिसर में तीस
नवंबर से 2 दिसबंर तक आयोजित इस उत्सव में भी विचार केंद्रित कई सत्र बेहद दिलचस्प
रहे। कई नए स्थापनाएम और मान्यताएं भी चर्चा के दौरान सामने आई। उत्तर प्रदेश की
रचनात्मकता पर केंद्रित एक सत्र में साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष और हिंदी के
वरिष्ठ लेखक विश्वनाथ तिवारी, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि लीलाधर
जगूड़ी और उपन्यासकार शैलेन्द्र सागर ने अपनी बातें रखीं। इस सत्र का संचालन युवा
कथाकार राहुल नील कर रहे थे। सत्र में अपने आरंभिक वक्तव्य में लीलाधर जगूड़ी ने
संचालक के नाम की बेहद दिलचस्प व्याख्या कर दी। उन्होंने संचालक राहुल से पूछा कि
उनको अपने नाम का अर्थ पता है। राहुल ने जब उनको अपने नाम का अक्थ बताना शुरू ही
किया था कि जगूड़ी ने उनको रोकते हुए कहा कि राहुल का एक और अर्थ होता है और वो है
बाधा। अपनी बात को पुष्ट करने के लिए लीलाधर जगूड़ी ने महात्मा बुद्ध से जुड़ा एक
किस्सा बताया। उन्होंने कहा कि जब जब सिद्धार्थ के पिता को जब इस बात का एहसास हुआ
कि उनके बेटे सिद्धार्थ का सांसारिकता से मोहभंग होने लगा है तो उन्होंने उनका
विवाह यशोधरा से करवा दिया। ज्ञान प्राप्ति के पहले गौतम बुद्ध का नाम सिद्धार्थ था।
विवाह के बाद यय़ोधरा गर्भवती हुईं और तान का जन्म हुआ तो ये खुशखबरी सिद्धार्त को
सुनाई गई कि आपोक बेटा हुआ है। लीलाधर जगूड़ी ने बताया कि जातक में इस बात का
उल्लेख है कि बेटे के जन्म की खबर सुनकर सिद्धार्थ ने कहा राहुलो जात: । इसका अर्थ है कि बाधा हो गई। जगूड़ी के अनुसार उस
वक्त से ही राहुल को एक मुहावरे की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा जिसका अर्थ है कि
सोचे हुए काम में बाधा या जो रास्ता है उसमें बाधा। बात आई गई हो गई लेकिन बाद में
श्रोताओं ने जगूड़ी जी को घेरा। उनमें से ही एक ने जगूड़ी जी की बात को आगे बढ़ाते
हुए इसको ज्योतिष से जोड़ दिया। उनके मुताबिक राहु शब्द से राहुल बना है। ज्योतिष
शास्त्र के मुताबिक जब किसी व्यक्ति पर राहु लग जाता है तो वो बाधाकारक हो जाता
है। किसी काम को बनने में वो स्पीड ब्रेकर की तरह आ जाता है काम की गति को धीमा कर
देता है या सोचे गए काम को पूरा नहीं होने देता है। दक्षिण में भी राहु कालम का
अर्थ यही होता है। जागरण संवादी के मंच पर लीलाधर जगूड़ी ने राहुल शब्द की
व्याख्या संचालक से संदर्भ में की लेकिन वहां इसके राजनीतिक अर्थ निकाले जाने लगे।
सोशल मीडिया पर भी इस व्याख्या को लेकर बहस शुरू हो गई। ट्वीटर पर हर कोई इसको
राहुल गांधी से जोड़कर देखने लगा। पक्ष और विपक्ष में टिप्णियां आने लगीं। किसी
पूछा कि राहुल किसी बाधा कांग्रेस की या भारतीय जनता पार्टी की। किसी ने लिखा कि
भारत की राजनीति में ‘राहु’ल काल कभी ना आए। तो कोई जगूड़ी को नसीहत देने लगे। इस
बीच जगूड़ी का फोन भी घनघनाने लगा और उनके कुछ मित्रों ने उनको राहुल गांधी पर इस
तरह की टिप्पणी करने के लिए निशाने पर ले लिया। जगूड़ी सफाई देने लगे कि उन्होंने
तो संचालक राहुल नील को उसके नाम का अर्थ समझाया था उनका आशय राहुल गांधी से कतई
नहीं था। यह महज संयोग है कि जागरण संवादी के मंच पर इस सत्र के संचालक का नाम और
भारतीय राजनीति में प्रमुख विपक्षी दल के अध्यक्ष का नाम राहुल है। लेकिन जिस तरह
से इसको लेकर राजनीति शुरू हो गई है उसने बेहद दिलचस्प मोड़ ले लिया है। दरअसल देश
में जब राजनीति अपने चरम पर हो और राज्यों के चुनाव चल रहे हों और चंद महीनों के
बाद लोकसभा के चुनाव आनेवाले हों तो इस तरह की टिप्पणियों को राजनीति से जोड़कर
देखा ही जाएगा।
संस्कार और संस्कृति
वाले सत्र में भी मशहूर नृत्यांगना, राज्य सभा की सांसद पद्म विभूषण सोलन मानसिंह
ने लखनऊ की धरती पर बेहद बेबाकी से अपनी बातें रखीं। उन्होंने शुभारंभ के समय दीपक
जलाने को लेकर भी एक दिलचस्प बात कही। उनका कहना था कि शुभ अवसर पर दीपक को जलाया नहीं
जा बल्कि वो प्रकट होती है। लेकिन जब वो अपनी रौ में आईं तो उन्होंने अपने तमाम
कड़वे अनुभवों को साझा किया। उन्होंने पूरा किस्सा बयान किया कि किस तरह से उनको अमेरिका
में आयोजित विश्व हिंदू सम्मेलन में जाने के पहले रोकने की कोशिश की गई। किस तरह
से उस वक्त की कांग्रेस की सरकार ने उनको वीजा मिलने में बाधाएं खड़ी कीं। किन
परिस्थितियों में उनको संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद से हरकिशन सिंह सुरजीत के
इशारे पर हटाया गया। कैसे संगीत नटक अकादमी के दफ्तर में जांच एजेंसियों को इस
आदेश के साथ भेजा गया कि सोलम मानसिंह के खिलाफ सबूत जमा करें। चार दिनो तक एजेंसी
के अधिकी संगीत नाटक अकादमी की फाइलों को छानते रहे लेकिन उनको कुछ मिला नहीं। ये
सब बातें बहुत ही बेबाकी से संवादी के मंच पर कही गईं। इसी तरह से शोभा डे ने अपने
सत्र में भी अपने विचारों को उन्मुक्त होकर सामने रखा। सत्तर साल की शोभा डे से जब
संजोय रॉय ने मी टू के बारे में सवा पूछा तो उन्होंने साफ तौर पर ये कहा कि उनको
पूरी जिंदगी के दौरान इस तरह की कोई बात झेलनी नहीं पड़ी लेकिन इसका ये मतलब नहीं
है कि कि ऐसा नहीं होता होगा। उन्होंने खुलकर कहा कि अगर किसी भी महिला के साथ
किसी भी तरह की ज्यादती होती है तो वो उनके साथ हैं। सबसे दिलचस्प यह रहा कि लखनऊ
के श्रोताओं ने शोभा डे को पहली बार हिंदी में बात करते हुए सुना। संचालक लगातार
अंग्रेजी में उनसे सवाल पूछ रहे थे और वो सभी प्रश्नों के उत्तर हिंदी में दे रही
थीं। संगीत नाटक अकादमी के लॉन में शाम की हल्की ठंड के बीच शोभा डे को हिंदी में
सुनना में बेहद आनंद से भरा था। लखनऊ के श्रोताओं ने उनको हिंदी में बोलने के लिए
ध्नयवाद भी दिया। यही तो संवादी का उद्देश्य भी है कि सभी भाषाओं के लोग एक मंच पर
इकट्ठे होकर हिंदी में संवाद करें। जागरण संवादी का आयोजन दैनिक जागरण की मुहिम
हिंदी हैं हम के तहत होता है।
इसी तरह से एक और
विचारोत्तेजक सत्र रहा जब संगीत के अध्येता यतीन्द्र मिश्र ने लोकगायिका मालिनी
अवस्थी से संगीत के अच्छे दिनों के बारे में सवाल पूछा। मालिनी अवस्थी ने संगीत मे
जारी वर्ण व्यवस्था को रेखांकित किया और कहा कि शास्त्रीय संगीत की परंपरा में
लोकगीत को वर्णव्यवस्था में निचले पायदान पर रखा जाता था लेकिन अब ये वर्जनाएं
टूटी हैं और लोकगीत को भी पर्याप्त महत्व मिलने लगा है। इस संदर्भ में उन्होंने
मध्यप्रदेश में आयोजित होनेवाले तानसेन संगीत समारोह का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा
दो साल पहले तानसेन संगीत समारोह के कर्टन रेजर में उनको लोकगीत गाने के लिए आमंत्रित
किया गया था। उनके ऐसा कहने का मतलब था कि तानसेन संगीत समारोह में पहले सिर्फ
शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को ही आमंत्रित किया जाता था । उन्होंने जोर देकर कहा
कि ये दौर संगीत के लिए अच्छे दिन लेकर आया है क्योंकि संगीत मे सदियों से चली आ
रही वर्ण व्यवस्था टूटने लगी है। विचार के इस महामंच पर इस तरह से खुलकर बेबाकी से
एक कलाकार अपनी ही बिरादरी के बारे में बात कर रही थी और वहां की विसंगतियों को
देश के सामने रख रही थीं। साहित्योत्सवों की भीड़ के बीच संवादी इन वजहों से ही
अलग दिखाई देता है और पांच साल के छोटे से अंतराल के बीच हिंदी समाज में अपने लिए
एक मजबूत स्थान बना पाने में कामयाब रहा है। यह इस वजह से भी संभव हो पाया है कि
संवादी में विचारधारा और विचारों की अस्पृश्यता बिल्कुल नहीं होती है, हर
विचारधारा और मत को मानने वाले लोग खुलकर इस मंच पर अपनी बात कहते हैं, बिना किसी
रोक टोक के ।
1 comment:
हमने यह व्याख्या कहीं पढ़ी लेकिन इसका संदर्भ नहीं समझ पाया था। अब समझा। जगूड़ी जी ने ठीक ही व्याख्या की है। संयोग से यह देश की वर्तमान परिस्थिति में सटीक उतरती है।
जागरण संवादी से परिचय होता रहे।
आपका धन्यवाद।
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