भरत-पाकिस्तान के बीच भले ही युद्ध विराम की सहमति बन गई हो लेकिन एक युद्ध इंटरनेट मीडिया पर भी लड़ा गया और ऐसा लगता है कि आगे भी लड़ा जाएगा। एक्स, फेसबुक और अन्य इंटरनेट प्लेटफार्म पर तरह तरह के वीडियो की बाढ आई है। पुराने वीडियो भी नए बताकर चलाए जा रहे हैं। कई पाकिस्तानी हैंडल से फेक सूचनाओं को प्रसारित किया जा रहा है। एआई का उपयोग करके फेक वीडियो इंटरनेट मीडिया पर प्रचलित हो रहे हैं। आपरेशन सिंदूर के चौथे दिन एआई से बना एक वीडियो इंटनेट मीडिया पर खूब प्रचलित हो रहा है। इस फेक वीडियो में विदेश मंत्री डा एस जयशंकर युद्ध के लिए क्षमा मांगते दिख रहे हैं। एआई की मदद से बने इस फेक वीडियो को इंटरनेट मीडिया पर पाकिस्तानी साइबर आतंकवादी प्रचलित कर रहे हैं। इस कारण सूचनाओं के लिए इन प्लेटफार्म्स पर आ रहे वीडियो को सही मानना जोखिम भरा है। दो देशों के बीच गोला बारूद से लड़े गए युद्ध में एक युद्ध साइबर स्पेस में भी लड़ा गया और आगे भी ये जारी रह सकता है। दिन रात कई साइबर लड़ाके इस काम में लगे हुए हैं। उनका काम ही मिसइनफार्मेशन फैलाना है। ये एक ऐसा स्पेस है जहां मनोबल बढ़ाने या तोड़ने का काम होता है। पाकिस्तान से सक्रिय कई एक्स हैंडल हिंदू नाम से बनाए गए। वो प्रामाणिक तरीके से पोस्ट करते हैं जिससे ये प्रतीत हो कि वो भारत से पोस्ट हो रहे हैं। इन फेक पोस्ट को लेकर पाकिस्तान मीडिया अपने चैनलों पर चलाने लगते हैं। शनिवार को पाकिस्तान के साइबर फिदायीनों ने इसी तरह का समाचार चलाया। इसे पहले तो राष्ट्रभक्त नाम के एक हैंडल से प्रसारित किया गया। लेकिन अब इन मूर्खों को कौन समझाए कि युद्ध के समय थोड़ी सी चूक भी किसी भी पक्ष के लिए भारी पड़ सकती है। इस हैंडल ने लिख दिया कि पाकिस्तानी नेवी के हमले में बेंगलुरू और पटना के पोर्ट तबाह हो गए। इसको लेकर पाकिस्तान के एक न्यूज चैनल ने खबर चला दी। कहने लगे कि भारतीय खुद मान रहे हैं कि पाकिस्तानी नेवी के हमले में उनके दो बंदरगाह तबाह हो गए। अब इन अक्ल के कच्चों को कौन बताए कि ना तो पटना में बंदरगाह है और ना ही बेंगलुरू में। थोड़ी बाद ये खबर पाकिस्तानी न्यूज चैनल से हटा।
दरअसल एआई के आने और उसके टूल्स के निरंतर विकसित होने से से ये सब काम आसान हो गया है। अब किसी भी व्यक्ति की आवाज में वक्तव्य दिलवाया जा सकता है। अगर जनता शिक्षित नहीं है और उसको एआई और उसके कारनामों का ज्ञान नहीं है तो वो इनको सच मान लेती है। वक्तव्यों के अलावा भी एआई से कई ऐसे वीडियो बनाए जा रहे हैं जिसमें विमानों को नष्ट करते हुए दिखाया जा सकता है।किसी भी पुराने वीडियो को नए स्वरूप में ढालकर पेश किया जा सकता है। जब तक फैक्ट चेक होगा तब तक उसका असर हो चुका होता है। जैसे भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तानी हैंडल से साइबर आतंकवादियों ने एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें वो ये दिखा रहे हैं कि एक पायलट पैराशूट से किसी खेत में उतर रही है और उसके सामने पाकिस्तानी सैनिक खड़ा है। फिर महिला पायलट की एक जमीन पर लेटी फोटो आती है जिसमें वो मुंह ढ़के है। उसके हाथ में फोन है। इसमें टिप्पणी लिखी है कि इंडियन फीमेल पायलट अरेस्टेड। माशाअल्लाह फोन नहीं छूटा लेकिन जहाज नष्ट हो गया। इस फेक वीडियो और फोटो को इस तरह से चलाया गया कि भारतीय पायलट शिवांगी सिंह के विमान को पाकिस्तानी फाइटर प्लेन ने गिरा दिया। शिवांगी सिंह बच गई और पाकिस्तानी सेना के कब्जे में है। सचाई ये है कि ये पुरानी इमेज है। जून 2023 में कर्नाटक में एक ट्रेनर विमान गिरा था उसकी महिला पायलट की फोटो है। भारत के प्रेस इंफैर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने फैक्ट चेक करके बता दिया। इस युद्ध के दौरान प्रोपगैंडा को थामने में पीआईबी की फैक्ट चेकिंग यूनिट ने शानदार काम किया है।
दूसरी समस्या भारत के कथित बुद्धिजीवियों की है। जो पता नहीं किस दबाव में या किन परिस्थितियों के चलते युद्ध के विरोध में लिखने लगते हैं। कुछ कथित नारीवादियों ने आपरेशन सिंदूर को लेकर प्रश्न उठाए। उनको इस नाम में पितृसत्तात्मकता की बू आ रही थी। ऐसे लोगों की मानसिक स्थिति का सहसा अनुमान लगाना कठिन है। इनके लिखे का नोटिस लेकर अकारण इनको चर्चित करने से भी बचा जाना चाहिए। सिंदूर की भारतीय समाज में क्या महत्ता है इसको ये नारीवादी शायद समझती नहीं हैं। भारतीय समाज, यहां की परंपरा, यहां के रीति रिवाजों को मूर्खतापूर्ण विदेशी वाक्यांशों और अधकचरे ज्ञान से समझना मुश्किल है। हां इतना अवश्य है कि उनको फेसबुक आदि पर थोड़ी चर्चा मिल जाती है। इंगेजमेंट से रीच बढ़ाने में मदद मिलती है। इस तरह की ऊलजलूल टिप्पणी भी तकनीक और उससे होनेवाले लाभ को ध्यान में रखकर की जाती है। फेसबुक के प्रोफेशनल डैशबोर्ड पर जाकर इंगेजमेंट से होनेवाले लाभ को देखा जा सकता है। जिस तरह से कुछ यूट्यूबर्स हर दिन मोदी की सरकार गिरा देते हैं, मोदी और अमित शाह के बीच झगड़ा करवा देते हैं जैसे मूर्खतापूर्ण और मनोरंजक थंबनेल लगाकर दर्शकों को खींचने का प्रयास करते हैं उसी तरह से फेसबुकिया फेमीनाजी भी इस तरह का उपक्रम करती हैं।
भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत सरकार ने कुछ यूट्यूब चैनल्स को उनकी कंटेंट के आधार पर प्रतिबंधित किया। इसके अलावा कुछेक वेबसाइट्स को भी प्रतिबंधित किया गया। ऐसे ही एक बेवसाइट को प्रतिबंधित करने की खबर पर हिंदी की बुजुर्ग साहित्यकार मृदुला गर्ग ने लिखा, लास्ट नेल इन द काफीन आफ डेमोक्रेसी। मृदुला जी की प्रतिष्ठा एक पढ़ी लिखी समझदार लेखिका के तौर पर हिंदी समाज में थी। पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद से उन्होंने जिस तरह की टिप्पणियां करनी आरंभ की जिससे लगा कि उनकी समझ पर उनकी उम्र हावी हो गई है। उपरोक्त टिपप्णी से तो ऐसा प्रतीत होता है कि मृदुला जी को ना तो लोकतंत्र की समझ है और ना ही युद्ध के समय सरकार के निर्णयों को लेकर उनकी समझ परिपक्व हुई है। कहीं से कुछ सुन लिया किसी ने कुछ समझा दिया और फेसबुक पर आकर टिप्पणी कर क्रांति करने लगीं। मृदुला जी जैसी कई अन्य लेखिकाएं हिंदी में हैं जो इस कारण से हर विषय में कूदती हैं ताकि उनको भी वैचारिक रूप से समृद्ध माना जाए। ऐसा करने के क्रम में वो खुद को उपहास का पात्र बना डालती हैं।
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