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Sunday, November 8, 2015

बिहार में फिर नीतीशे कुमार

बिहार की राजनीति में महागठबंधन की ऐतिहासिक जीत ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि देश में लोकतंत्र की जड़ें गहरी हो चुकी हैं । बीजेपी की तमाम चुनावी रणनीति को महागठबंधन ने मात दी । एक बार फिर से बिहार की राजनीति में लालू यादव को पुनर्जीवन मिला है और नीतीश कुमार ने अपनी धमक साबित की है । दरअसल अगर हम महागठबंधन की इस जीत के पीछे की वजहों पर गौर करें तो मोटे तौर पर तीन चार वजहें नजर आ रही है । बिहार चुनाव की बिसात अभी बिछी थी और दोनों तरफ से चालें चली जारही थीं । उसी वक्त पहले चरण के पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सुप्रीमो मोहन भागवत का आरक्षण को लेकर एक बयान आया । इस बयान में आरक्षण पर फिर से विचार करने की बात कही गई थी लेकिन मोहन भागवत के बयान को लेकर लालू यादव ने ऐसा माहौल बना दिया कि बीजेपी आरक्षण के खिलाफ है । लालू यादव ने बेहद चतुराई के साथ मोहन भागवत के बयान के एक अंश को लेकर आक्रमक हो गए । पूरे बिहार में घूम घूमकर ये कहने लगे कि बीजेपी आरक्षण के खिलाफ है । मोहन भागवत के बयान के आधार पर लालू यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव को अगड़े और पिछड़े की लड़ाई में तब्दील कर दिया । नतीजा यह हुआ कि बीजेपी बैकफुट पर आ गई । केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सफाई दी और उसके नेता ये कहते हुए घूमने लगे कि बीजेपी आरक्षण के पक्ष में है । बीजेपी के स्टार प्रचारकों ने पीएम नरेन्द्र मोदी की जाति को प्रचारित करना शुरू कर दिया । उनको पिछड़ा और अति पिछड़ा बताया जाने लगा । यहीं से रणनीतिक चूक हुई और बीजेपी के हाथ से विकास के नारे का सिरा छूटा और वो लालू के अखाडे में जाकर उनसे लड़ने लगे । इस हड़बडाहट का नतीजा पूरे चुनाव प्रचार के दौरान दिखा । चुनावी रणनीति में ये बात कही जाती है कि विरोधी को अपने अखाड़े में लाने की रणनीति पर काम होना चाहिए और लालू यादव ने इस रणनीति पर तुलनात्मक रूप से बेहतर काम किया और नतीजा सबके सामने है । इस चुनाव में सजायाफ्ता मुजरिम लालू यादव तो चुनाव नहीं लड़ रह थे लेकिन बिहार की जनता के मानस को पकड़कर उन्होंने एनडीए को पटखनी दी और बार फिर से खुद को भी भारतीय राजनीति में प्रासंगिक बना दिया । लालू यादव बिहार चुनाव के नतीजों में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरे और करीब पचहत्तर सीटों पर जीत हासिल की । जेडीयू दूसरे और बीजेपी तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई ।  बीजेपी का विकास का मुद्दा और सवा लाख का स्पेशल पैकेज नेपथ्य में चला गया उसको भी नीतीश कुमार ने चुनावी हवा बताने में कामयाबी हासिल कर ली ।

बीजेपी से बिहार में दूसरी रणनीतिक चूक हुई पीएम मोदी और अमित शाह के चेहरे को लेकर । बीजेपी ने अपने तमाम पोस्टरों और प्रचार सामग्री पर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की तस्वीरें छापी । इसका नतीजा यह हुआ कि नीतीश कुमार को एक और मौका मिला और उन्होंने बिहारी और बाहरी का मुद्दा उछाल दिया । बिहार की जनता को वो ये समझाने में कामयाब हो गए कि सूबे में बीजेपी के पास कोई नेता नहीं है और बाहरी यानि दोनों गुजराती नेता ही बिहार की किस्मत तय करेंगे । बिहार के लोग राजनीतिक तौर पर बेहद जागरूक होते हैं और उनके मन में ये बात बैठने लगी । जब यह बात बहुत बढ़ गई तबतक बिहार में दो फेज के चुनाव हो गए थे । फिर ये बात जोर शोर से प्रचारित की जाने लगी कि बीजेपी चुनाव हार रही है और पहले दो चरणों में बिहारी और बाहरी का मुद्दा हावी हो गया । फिर ये खबर आई कि मोदी ने अपनी कुछ रैलियां रद्द की हैं । प्रचार सामग्री में बिहार के स्थानीय नेताओं को जगह मिलनी शुरू गई और रातों रात मोदी और अमित शाह के साथ बिहार बीजेपी के नेताओं की तस्वीर नजर आने लगी । इसके साथ ही बीजेपी ने दूसरे राज्यों के कार्यकर्ताओं को बूथ मैनेजमेंट मे लगाया । इसका असर भी स्थानीय कार्यकर्ताओं पर उल्टा पड़ा । मोनवैज्ञानिक रूप से बेहद संवेदनशील बिहारियों को लगा कि इतने सालों से उन्होंने मेहनत की और जब वक्त आया तो बाहर क लोगों को उनके ऊपर बिठा दिया गया । बीजेपी अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझ नहीं पाई । इस बात को इससे भी समझा जा सकता है कि बिहार से बीजेपी के आधे से अधिक सांसद चुनाव प्रचार से दूर रह । बीजेपी ने टिकट बंटवारे में भी कई गलतियां की और सुखदा पांडे जैसी नेताओं का टिकट काटकर नाराजगी मोल ले ली । जिस तरह से दिल्ली में बीजेपी ने किरण बेदी पर दांव लगाकर स्थानीय नेताओं के खफा कर दिया था कुछ उसी तरह की गलती बिहार में मांझी को ज्यादा भाव देकर हुई । जीतन राम मांझी की बिहार की राजनीति में ना तो साख थी और ना ही वोटबैंक । इससे इतर जिस तरह से गौमांस और बीफ पर पोलराइज करने की कोशिश की गई उसका भी अपेक्षित असर नहीं हुआ । सीमांचल इलाके में असदुद्दीन ओवैसी भी खुच नहीं कर पाए । विपक्ष ओवैशी और बीजेपी के मिले होने को प्रचारित करने में कामयाब रहा । इसके अलावा नीतीश कुमार की बेहतर छवि का भी महागठबंधन की जीत में अहम रोल रहा । मोदी के आक्रामक भाषणों में जहां नीतीश कुमार पर विश्वासघात से लेकर खाने की थाली छीनने से लेकर डीएनए की बातें की गई उसका भी असर उल्टा हुआ । नीतीश कुमार लालू यादव  नरेन्द्र मोदी ने बिहार में तीस बड़ी रैलियां की उसके जवाब में नीतीश ने छोटी रैलियों का फॉर्मूला अपनाते हुए सवा दो सौ से ज्यादा रैलियां की और जनता तक पहुंचे । नीतीश कुमार का हर घर दस्तक का नारा भी जनता को अपने पाले में लाने में कामयाब हुआ । बिहार के नतीजे का भारतीय राजनीति पर दूरगामी असर होगा और 2019 के लोकसभा चुनाव तक होनेवाले विधानसभा चुनावों को यह प्रभावित करेगा ।



1 comment:

Unknown said...

Bharstachar case me sajayfta Lalu apne gathbandhan ko jita lete hai lagta hai is desh me bhrstachar koi mudda nahi hai, isme loktantra ki kaun si gahrai dikh rahi hai. votebank politics se is desh ke voter jab tak bahar nahi niklete yah kahna muskil hai ki loktantra ki jare gahri hai.