हाल ही में केंद्र
सरकार में वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी के एक बयान ने पद्म पुरस्कारों को एक बार फिर
से विवादों के कठघरे में खड़ा कर दिया है । नितिन गडकरी ने कहा था कि पद्मभूषण अवॉर्ड
की चाहत में अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख उनके पास आई थी । गडकरी ने अपने
खास अंदाज में यहां तक कह डाला कि घर की लिफ्ट खराब थी, बावजूद इसके आशा पारेख बारहवीं
मंजिल तक सीढियों से चलकर पहुंची और उन्होंने खुद को पद्मभूषण दिलवाने का अनुरोध किया।
गडकरी ने कहा कि इतनी सम्मानित अभिनेत्री का इस तरह से उनके घर आना उनको खल गया । उनके
मुताबिक जब उन्होंने आशा पारेख को समझाने की कोशिश की कि उन्हें पद्मश्री मिल चुका
है तो मशहूर अभिनेत्री ने ने उनको अपनी फिल्मों का हवाला दिया । नितिन गडकरी ने नाम
सिर्फ आशा पारेख का लिया लेकिन इशारों में उन्होंने यहां तक कह डाला कि कई लोग उनके
पद्म सम्मान दिलवाने के लिए उनके पीछे पड़े रहते हैं । गडकरी ने बेहद साफगोई से स्वीकार
किया कि अब तक वो हजारों लोगों के नाम की सिफारिश गृह मंत्रालय को कर चुके हैं । इस
पूरे प्रकरण के बात इस बात को लेकर बहस तेज हो गई है कि पद्म सम्मान में लॉबिंग की
जाती है । पहले भी कई विवादित लोगों को पुरस्कार मिल चुके हैं । अमेरिका में रहने वाले
एनआरआई संत चटवाल को भी पद्मभूषण दिया गया जबकि उनके खिलाफ कई तरह की जांच पेंडिंग
थी । अमेरिका में उनके खिलाफ कई मामले चल रहे थे । अभी हाल ही में ये बात भी सामने
आई कि गायक रेमो फर्नांडिस को पद्म सम्मान दिया गया है जबकि उन्होंने भारत की नागरिकता
छोड़कर पुर्तगाल की नागरिकता हासिल कर रखी है । इसकी जांच की भी मांग की जा रही है
। इसके पहले भी सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोगों ने अपने पसंद के लोगों को पद्म सम्मान
से सम्मानित किया । इस बात के भी प्रमाण है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों ने अपनी
नर्स से लेकर डॉक्टर तक को, स्कूल के साथी से लेकर स्कूल के प्रिंसिपल तक को पद्म सम्मान
से सम्मानित किया । जिसने भी हमारे प्रधानमंत्री का ऑपरेशन किया लगभग सभी पद्म पुरस्कार
पा चुके हैं । हमारे देश में सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न को भी हमारे नेताओं
ने नहीं बख्शा और वोट बैंक की राजनीति के लिए जब चाहा तब दिया । बाबा साहेब अंबेडकर
को वी पी सिंह ने भारत रत्न देकर अपने को दलितों का मसीहा साबित करने की कोशिश की थी।
क्या ये सिर्फ राजनीति नहीं थी कि बाबा साहेब को इतने सालों तक भारत रत्न नहीं दिया
गया था। इसी तरह से एम जी रामचंद्रन को जब राजीव गांधी ने भारत रत्न दिया तो उनकी नजर
तमिल वोटबैंक पर थी । पिछले साल योगगुरू बाबा रामदेव ने भी पद्म पुरस्कार लेने से ये
कहकर मना कर दिया था कि इस अवॉर्ड के लिए बहुत ज्यादा लॉबिंग होती है । पद्म सम्मान
पर नियमित अंतराल पर उठनेवाले विवादों के बाद अब यह सोचने का वक्त आ गया है कि क्या
इस पुरस्कार को खत्म कर दिया जाए ।
पद्म पुरस्कार हर
साल गणतंत्र दिवस के पहले अपने अपने क्षेत्र में शानदार काम करने के लिए भारत सरकार
देती है । इसमें डॉक्टर, कलाकार, पत्रकार, सरकारी अफसर, समाजसेवी आदि कई कैटेगरी होते
हैं जिनमें थोक के भाव से पुरस्कार दिए जाते हैं । इस पुरस्कार का उद्देश्य देश की
उन प्रतिभाओं के काम को रेखांकित करना था जिन्होंने अपने अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय
योगदान किया हो । आजादी के बाद इस जब ब्रिटिश सरकार की पदवी खत्म की गई तो संविधान
सभा में भी इसके बारे में विचार किया गया था । तब संविधान सभा में इस बात को लेकर लंबी
बहस हुई थि कि कोई पदवी रखी जाए या नहीं । आचार्य कृपलानी की अगुवाई में राय बहादुर
और खान बहादुर जैसी पदवियों को खत्म करने की मुहिम अंजाम तक पहुंची थी । उस वक्त इन
लोगों ने ये तर्क दिया था कि ये पदवियां औपनिवेशक चिन्ह हैं जिन्हें आजाद भारत में
रखने का कोई औचित्य नहीं है । संविधानसभा में
चली उस बहस की परिणति संविधान के अनुच्छेद
अठारह (एक) के रूप में सामने आया था जिसके तहत हर तरह की पदवी को खत्म कर दिया गया
था । बाद में भी आचार्य कृपलानी ने इस तरह के राष्ट्रीय पुरस्कारो को खत्म करने की
मुहिम भी चलाई थी लेकिन वो परवान नहीं चढ़ सकी थी । संसद में रखा उनका प्रस्ताव गिर
गया था । पद्म पुरस्कार का मामला उन्नीस सौ पचानवे में देश की सर्वोच्च अदालत में भी
गया था । तब सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि ये पदवी नहीं बल्कि पुरस्कार है और सरकारों
को किसी भी शख्स को उसके काम के आधार पर पुरस्कृत करने का हक है । सुप्रीम कोर्ट ने
तब साफ तौर पर यह आदेश दिया था कि चूंकि यह पदवी नहीं है लिहाजा कोई भी पुरस्कृत शख्स
इसको अपने नाम के आगे उपयोग नहीं कर सकता है । सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में सरकार
को पद्म सम्मान की संख्या को पचास तक सीमित रखने की सलाह भी दी थी लेकिन सरकारें अदालती
आदेश के अलावा सलाह कहां मानती हैं । पद्म पुरस्कारों की संख्या लगातार बढ़ती रही और
पिछले सालों में तो ये सवा सौ तक जा पहुंची है । पद्म पुरस्कारों की इस पूरी पृष्ठभूमि
और उसके विवादित होते रहने को देखते हुए यह आवश्यक है कि सरकार इसको खत्म करे या फिर
या कम से कम इसको दिए जाने में पारदर्शिता बरती जाए । किसको, कब, कैसे, क्यों और किसकी
सिफारिश पर पद्म पुरस्कार दिया जाता है और उनका उस क्षेत्र में क्या उल्लेखनीय योदगान
है इसको गृह मंत्रालय की बेवसाइट पर प्रकाशित किया जाना चाहिए अन्यथा विवादों में घिरे
इन पुरस्कारों की साख छीजती चली जाएगी ।
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