हिंदी में लंबे
समय से पाठकों की कमी का रोना रोया जा रहा है । खुद को महान मान कर किताबें लिखनेवाले
कई साहित्यकारों की किताबें जब कम बिकती हैं तो वो ये प्रचारित करने में जुट जाते हैं
कि हिंदी में साहित्य के पाठक कम हो रहे हैं । इस बात को भी फैलाया जाता है कि हिंदी
साहित्य सरकारी थोक खरीद की वजह से जिंदा है । कुछ प्रकाशकों ने भी इस तरह की बातों
को हवा दी और ये बात फैलाई कि साहित्यक किताबें नहीं बिकती हैं । प्रकरांतर से यह निकल
कर आता है कि साहित्य के पाठक कम हो रहे हैं । इसके अलावा ई बुक्स की उपलब्धता और उसकी
कम कीमत की वजह से भी किताबों के बाजार के सिकुड़ने की बात बहुधा सामने आती रहती है
। हाल ही में दिल्ली में खत्म हुए विश्व पुस्तक मेला से पाठकों की कमी की बात गलत साबित
होती है । एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में नौ दिनों तक चले इस विश्व पुस्तक मेले में
करीब बारह लाख पुस्तक प्रेमी पहुंचे थे । नौ दिन में बारह लाख यानि तकरीबन करीब एक
लाख से ज्यादा पुस्तक प्रेमी हर दिन । काफी दिनों के बाद पुस्तक मेले में ये भी देखने
को मिला कि लोग कतार में खड़े होकर हॉल में प्रवेश कर रहे थे । शनिवार और रविवार को
तो कतार काफी लंबी थी लेकिन सप्ताह के अन्य दिनों में भी लोग पंक्तिबद्ध होकर मेले
में पहुंच रहे थे । हिंदी के हॉल में ये स्थिति देखकर लगा कि साहित्य में पाठकों की
वापसी हो गई है । इस बार के विश्व पुस्तक मेले में किताबों की जमकर बिक्री भी हुई ।
हिंदी के लगभग सारे प्रकाशक बेहद खुश नजर आए । पाठकों की वापसी ने उनके चेहरे पर मुस्कान
खिला दी । वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी ने बेहद दिलचस्प वजह बताई । उनका मानना है
कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के फैलाव ने किताबों के लिए एक सकारात्मक वातावरण बनाया
। उनके मुताबिक अब पाठक सोशल मीडिया पर किताबों से अवगत हो जाते हैं और उनेक मन में
पुस्तक को लेकर उत्सकुता जगती है । उसी उत्सकुकता के आकर्षण में पाठक पुस्तक तक पहुंचना
चाहते हैं ।
इसके अलावा पुस्तकों
से पाठक भावनात्मक रूप से भी जुड़ते हैं । कई लोगों का कहना है कि वर्चुअल स्पेस पर
किताबें पढ़ने से वो आनंद नहीं मिलता है जो कि हाथ में किताब लेकर पढ़ने से प्राप्त
होता है । ई बुक्स को आप लगातार लंबे वक्त तक नहीं पढ़ सकते हैं । किंडल या अन्य डिवाइस
पर लंबे वक्त तक पढने से आंखों पर जोर पड़ता है और कुछ समय के लिए पढ़ना रोकना पड़ता
है , बहुधा यह कहानी या उपन्यास के आनंद को बाधित करता है । इस तरह से हम देखें तो
कई वजहों से पाठकों का रुझान एक बार फिर से किताबों की ओर हुआ है । इनमें से एक और
वजह है कि अब पाठकों का सामने विषयों की विविधता भी है । दो तीन दशकों तक पाठकों के
सामने इतने विकल्प नहीं थे । उन्हें एक खास तरह का फॉर्मूलाबद्ध लेखन से रूबरू होना
पड़ता था जिसकी वजह से साहित्य में एकरसता आ गई थी । अब हिंदी के लेखकों ने उन विषयों
पर भी लिखना शुरू कर दिया है जिसको पिछले कई सालों से अस्पृश्य माना जाता था । अब फिल्मों
से लेकर खेल आदि पर भी किताबें लिखी जाने लगी हैं लेकिन अगर हम गंभीरता से विचार करें
तो हिंदी में अब भी कई विषयों पर काम नहीं हो रहा है । मसलन साइंस फिक्शन और पॉलिटिकल
थ्रिलर आदि ना के ही बराबर लिखे जा रहे हैं । पाठकों को साहित्य की ओर वापस लाने और
उनको अपने साथ बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि लेखक विविध विषयों पर लिखने का प्रयोग
करते हैं ।
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