सुब्रह्मण्य स्वामी भारतीय राजनीति का वो खिलाड़ी है जो अपने
बयानों और सियासी कदमों से देशभर को चौंकाते रहता है । अर्थशास्त्र का ये प्रोफेसर
सियासी दांव पेंच में भी फॉर्मूले फिट करता रहा है । कई सियासी दलों की यात्रा
करने के बाद स्वामी की घर वापसी हुई है । कभी राजीव गांधी के बेहद करीबी रहे
स्वामी अब सोनिया और राहुल गांधी के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं । कभी अटल बिहारी
वाजपेयी के धुर विरोधी रहे स्वामी इन दिनों बीजेपी के आंखों के तारे हैं । पाठकों
को याद होगा कि स्वामी जब राज्यसभा के लिए मनोनीत किए गए तो अगस्ता वेस्टलैंड
हेलीकॉप्टर पर बहस के दौरान पार्टी ने उनको अपने सभी सांसदों का वक्त मिलाकर दे
दिया ताकि स्वामी कांग्रेस पर लंबे वक्त तक तीखे वार कर सके । बीजेपी के इस कदम ने
स्वामी के हौसले बुलंद कर दिए । स्वामी अपने स्तरहीन बयानों के लिए भी जाने जाते
हैं जैसे ट्विटर पर वो सोनिया गांधी को जिस नाम से संबोधित करते हैं वो सियासत की
मर्यादा के बिल्कुल खिलाफ है । संसद में पार्टी के उस समर्थन के बाद स्वामी उस राह
पर चल पड़े जहां सिर्फ टकराव की गुंजाइश बनती है । वो सरेआम ये कहने लगे कि वो
सीधे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से निर्देश लेते हैं
और आगे भी ऐसा करेंगे । ऐसा करके वो राज्यसभा में नेता सदन अरुण जेटली को संदेश दे
रहे थे कि सदन में भी वो उनकी बात नहीं मानेंगे । अरुण जेटली पार्टी का सौम्य,
पढ़ा लिखा और नो नॉनसेंस चेहरा है । स्वामी दूर की कौड़ी लाने में भी माहिर हैं,
कई बार वो कौड़ी सही भी होती है लेकिन बहुधा वो बस कौड़ी ही रह जाती है । रिजर्व
बैंक के काबिल गवर्नर रघुराम राजन का कार्यकाल सितंबर में खत्म होनेवाला था पर
स्वामी ने अरुण जेटली पर परोक्ष रूप से हमला करने के लिए राजन को चुना और एक के
बाद एक हमले किए । सौम्य राजन ने स्वामी के आरोपों पर कुछ नहीं कहा लेकिन
गरिमापूर्ण तरीके से अपने पद छोड़ने का एलान कर दिया । रघुराम राजन के इस कदम ने स्वामी
को अगले कदम के लिए उकसाया और उन्होंने वित्त मंत्रालय के सलाहकार अरविंद
सुब्रह्मण्यम और एक अन्य अधिकारी पर हमला बोला । वित्त मंत्री होने के नाते अरुण
जेटली ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए दोनों का बचाव किया लेकिन स्वामी ने फिर
जेटली से क्या लेना देना वो तो पीएम और अमित शाह को जानते हैं जैसा बयान दे डाला ।
और तो और उन्होंने इशारों इशारों में अरुण जेटली पर बिलो द बेल्ट हमला बोला और कहा
कि विदेश जानेवाले नेताओं को सूट टाई नहीं पहननी चाहिए क्योंकि उसमें वो वेटर जैसे
दिखते हैं । कुछ ही वक्त पहले टीवी चैनलों पर अरुण जेटली की चीन से सूट टाई में
भाषण देती तस्वीरें आई थी । जब पानी सर से उपर जाने लगा तो खबरों के मुताबिक अरुण
जेटली ने चीन का दौरा एक दिन पहले खत्म किया और प्रधानमंत्री से मिलने का वक्त
मांग लिया ।
इन सारे सियासी घटनाक्रम के बीच प्रधानमंत्री ने अपने एक इंटरव्यू
में स्वामी को सार्वजनिक रूप से नसीहत ही नहीं दी बल्कि कड़ा संदेश दे दिया कि वो
अपनी सीमाओं में रहें और संगठन और व्यवस्था से बड़ा कोई नहीं होता है । लेख लिखे
जाने तक स्वामी खामोश हैं । सवाल खामोशी या उनकी प्रतिक्रिया का नहीं है सवाल यह
है कि स्वामी का स्वामी आखिर कौन है । किसके इशारे पर स्वामी वित्त मंत्री अरुण
जेटली को निशाना बना रहे हैं । कहीं से तो स्वामी को ताकत मिल रही है । सियासी
हलकों में इस बात की चर्चा होती है कि स्वामी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का
आशीर्वाद प्राप्त है । जब स्वामी को राज्यसभा में मनोनीत किया गया था तब भी ये बात
आई थी या फैलाई गई थी कि स्वामी संघ की पसंद हैं । लेकिन इस तरह की बातें करनेवाले
संघ के क्रियाकलापों को बेहतर तरीके से जानते नहीं हैं । संघ को अगर अरुण जेटली से
कोई शिकायत होगी तो वो कम से कम उसको दूर करने के लिए स्वामी को तो नहीं लगाएंगें
। जब स्वामी ने एक किताब में अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में बेहद आपत्तिजनक बातें
कही थी तब भी इसी तरह के कयास लगाए जा रहे थे । अटल जी जबतक सक्रिय रहे उन्होंने
स्वामी को हाशिए पर रखा । दऱअसल अगर स्वामी के करियर को विश्लेषित किया जाए तो ये
नतीजा निकलता है कि जबतक उनको पद नहीं मिलता है वो बेचैन रहते हैं राजीव गांधी से
लेकर जयललिता से लेकर हर सरकार से उनकी अदावत की लगभग यही वजह रही है । और बेचैनी
किसी भी मनुष्य को कुछ भी करने को बाध्य करती है । बेचैनी के आलम में अगर उसको कोई
भी बाधा नजर आती है तो वो हमलावर हो जाता है । स्वामी इसी बेचैन सिंड्रोम के शिकार
नजर आते हैं । राज्यसभा के सदस्य बनने के लिए उन्होंने तमाम जतन किए, इसमें कोई
बुराई भी नहीं है । रायसीना हिल्स में ये चर्चा है कि स्वामी वित्त मंत्री बनना
चाहते हैं इसलिए वो अरुण जेटली की ओर बयानों के तीर चला रहे हैं । लेकिन पद की
लालसा में अगर कोई मर्यादा भूल जाता है तो उसको उसकी सही जगह दिखाने का दायित्व
प्रधानमंत्री का होता है और उन्होंने इसका निर्वाह किया ।