सिर्फ ढाई फिल्म का निर्देशन और महान निर्देशक के रूप में
पहचान, ढाई इस वजह से कि दो फिल्में उनके जीवनकाल में रिलीज हुई और एक फिल्म उनके
निधन के बाद। नाम करीमुद्दीन आसिफ, जिसे लोग के आसिफ के नाम से जानते हैं और उनकी
अनमोल कृति है ‘मुगल-ए-आजम’। के आसिफ ने दो फिल्में निर्देशित की।
उनकी पहली फिल्म थीं ‘फूल’ जो 1945 में रिलीज
हुईं। दूसरी फिल्म थी ‘मुगल-ए-आजम’ जो 1960 में
रिलीज हुई। एक और फिल्म का निर्देशन वो कर रहे थे ‘लव एंड गॉड’ जो उनके जीवन काल में पूरी नहीं हो सकी। ये फिल्म उनके निधन के
बाद रिलीज हुई। मुगल-ए-आजम को बनाने में के आसिफ साहब को एक दशक से अधिक वक्त लगा
था। पहले वो चंद्रमोहन सप्रू और नर्गिस को लेकर ‘मुगल-ए-आजम’ बनाना चाहते थे जो बन नहीं पाई। लेकिन ये कहानी उनके मन में
कुलबुलाती रही, उसपर फिल्म बनाने को लेकर वो बेचैन रहते थे. ‘मुगल-ए-आजम’ को बेहद भव्य तरीके से बनाना चाहते थे,
उसके सेट से लेकर गीत और संगीत पर भी वो कुछ अनूठा करना चाहते थे, कुछ ऐसा जो
कालजयी हो। इसी सोच के तहत उन्होंने दिलीप कुमार और मधुबाला को लेकर फिल्म बनाने
का फैसला किया। के आसिफ ने जब नए सिरे से फिल्म बनाने का फैसला किया तो अपनी
पुरानी योजना का सबकुछ बदल दिया। एक दिन वो नौशाद साहब के पास पहुंचे और कहा कि
आपको ‘मुगल-ए-आजम’ का संगीत देना है। नौशाद साहब उन दिनों ‘उड़न खटोला’ फिल्म के म्यूजिक पर काम कर रहे थे। उन्होंने
के आसिफ को अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए मना कर दिया। नौशाद साहब के मन में
कहीं ना कहीं ये बात चल रही थी कि के आसिफ ने अनिल बिस्वास को म्यूजिक के लिए साइन
कर रखा है तो उनको उन्हीं से करवाना चाहिए। बातचीत के बीच अचानक के आसिफ ने अपने
पॉकेट से एक लाख रुपए की गड्डी निकाली और नौशाद साहब के होरमोनियम पर रख दिया। फिर
बोले कि फिल्म का म्यूजिक तो आपको ही देना होगा और ये रहा आपका एडवांस। नौशाद साहब
बिगड़ गए और उन्होंने साफ शब्दों में के आसिफ को बोल दिया कि ‘सबकुछ पैसे से नहीं खरीदी जा सकती। अपना पैसा उठाइए मैं इस
फिल्म के लिए काम नहीं कर पाऊंगा। आसिफ साहब डटे थे, बोले करना तो आपको ही है ये
फिल्म, अगर आपको अधिक पैसे चाहिए तो बताइए।‘ नौशाद इसको सुनकर
बिफर गए। नौशाद ने इस वाकए को बयान करते हुए लिखा है कि जब पैसे की बात पर आसिफ
साहब डट गए तो उन्होंने एक लाख की गड्डी उठाई और उसको अपने कमरे से बाहर छत पर
फेंक दिया। ये सब देखकर भी के आसिफ को कोई फर्क नहीं पड़ा और वो मुस्कुराते रहे। इस
बीच नौशाद का नौकर उन दोनों के लिए चाय लेकर छत पर आया। उसने वहां नोटों को उड़ते
देखा। वो फौरन भागकर नीचे गया और नौशाद की पत्नी को बताया कि पूरी छत पर नोट बिखरे
हैं। नौशाद की पत्नी के कहा कि फिल्मों में शूटिंग के लिए नकली नोट मंगवाएं होंगे
वही बिखर गए होंगे। नौकर ने जब जोर देकर अपनी मालकिन को कहा कि असली नोट बिखरे हुए
हैं तो वो नीचे से छत पर देखने आईं। वहां तो असली नोट पूरी छत पर बिखरे हुए थे। नौशाद
साहब गुस्से में लाल पीले हो रहे थे और के आसिफ खड़े खड़े मुस्कुरा रहे थे। नौशाद
साहब की पत्नी ने जब नोट बिखरने के बारे
में
जानना चाहा तो मुस्कुराते हुए आसिफ ने कहा कि अपने पति से
पूछिए। खफा नौशाद बोले कि ‘ये पैसे आसिफ मुगल-ए-आजम में काम करने के
लिए एडवांस के तौर पर देने आए थे। मेरे मना
करने पर भी जब नहीं माने तो मैंने फेंक दिए।‘ इस बीच नौशाद साहब
की पत्नी छत पर बिखरे नोटों को समेटने लगी थीं। तब के आसिफ ने मनुहार करते हुए कहा
कि ‘जिद छोड़िए, आपको ही ये फिल्म करनी है। मुगल-ए-आजम में संगीत आप
ही देंगे।‘ नौशाद को तबतक बात समझ में आ गई थी कि आसिफ मानेगा नहीं।
उन्होंने हंसते हुए कहा कि ‘अपने पैसे ले जाइए, मैं आपकी फिल्म करूंगा।‘ फिल्म पूरी होने तक यानि दस सालों तक कभी नौशाद साहब ने पैसे
नहीं मांगे। फिल्म खत्म होने के बाद के आसिफ ने नौशाद को पैसे दिए।
ऐसा ही एक और वाकया हुआ। एक दिन के आसिफ ने नौशाद से कहा कि वो
फिल्म में एक सीन डालना चाहते हैं जिसमें तानसेन मंडप में बैठकर गा रहे हों। नौशाद
ने कहा कि वो धुन तो बना देंगे लेकिन गाएगा कौन। आसिफ ने उनसे पूछा तो नौशाद ने
बड़े गुलाम अली खान का नाम लिया। तय किया और दोनों जा पहुंचे बड़े गुलाम अली खान
के पास। के आसिफ ने उनसे ‘मुगल-ए-आजम’ के बारे में
बताया और कहा कि वो उनसे इस फिल्म में गवाना चाहते हैं। बड़े गुलाम अली खान साहब ने
अपने अंदाज में कहा कि ‘नौशाद मियां, मैं फिल्मों में नहीं गाता।
कोई संगीत सम्मेलन हो तो मुझे आमंत्रित करिएगा मैं अवश्य आऊंगा। फिल्म वाले बहुत
तरीके की पाबंदियां लगाते हैं जो मुझे मंजूर महीं।‘ नौशाद कुछ
बोल पाते इसके पहले ही के आसिफ बोल पड़े, ‘खान साहब ये गाना तो
आप ही गाएंगे।‘ अब चौंकने की बारी खान साहब की थी। उन्होंन नौशाद से पूछा कि
ये साहब कौन हैं। नौशाद ने बताया कि ये के आसिफ हैं जो मुगल-ए-आजम बना रहे हैं। खान
साहब ने कहा कि ‘मियां, ये तो बड़े अजीब आदमी हैं, मैं मना
कर रहा हूं और ये जनाब हैं कि कह रहे हैं कि गाएंगे तो आप ही।‘ ये सुनकर आसिफ ने फिर कहा कि ‘जी, खान साहब,
ये गाएंगे तो आप ही, चाहे आप जितना पैसा लें, हम देने को तैयार हैं।‘ खान साहब ने फिर कहा कि वो नहीं गा सकते। के आसिफ डटे रहे और
फिर बोले कि गाना तो आपको पड़ेगा। नौशाद बीच में फंसे थे। खान साहब नौशाद को लेकर
बाहर निकले और बोले कि ये पैसे की बात कर रहा है, मैं इसको इतना पैसा बताता हूं कि
ये अभी भाग जाएगा। इस बीच नौशाद ने भी खान साहब को मनाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं
माने। खैर दोनों वापस कमरे में लौटे जहां के आसिफ बैठे-बैठे मुस्कुरा रहे थे। खान
साहब ने उनसे पूछा कि अच्छा तो जनाब आप मुझे मुंहमांगी रकम देने को तैयार हैं । के
आसिफ ने कहा जी बिल्कुल। खान साहब बोले कि वो एक गाने के लिए पच्चीस हजार रुपए
लेंगे। के आसिफ ने कहा कि ‘बस! पच्चीस हजार और बहात मान ली। अब खान साहब के सामने और कोई विकल्प था नहीं। बाद
की बातें इतिहास है। इस तरह ‘प्रेम जोगन बन के’ में बड़े गुलाम खान साहब की आवाज का जादू पिरोया गया। ये वो
जमाना था जब बेहतरीन गायकों को भी फिल्मों में एक गाने के लिए तीन सौ से हजार रुपए
तक फीस मिला करती थी। आज ही के दिन के आसिफ जैसा फिल्म निर्देशक इस धरती पर आया
था। उनकी स्मृति को नमन।
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