सुप्रीम कोर्ट की मशहूर वकील, नई दिल्ली से दो बार निर्वाचित सांसद
और एक क्राइम थ्रिलर, जिसमें प्रधानमंत्री की हत्या की बात हो। पाठकों के बीच
उत्सुकता का वातावरण बनाने के लिए काफी है। किरदारों, परिस्थितियों और प्लॉट को
लेकर जितनी उत्सकुता किसी क्राइम थ्रिलर में होती है, उतनी ही उत्सकुता नई दिल्ली
से भारतीय जनता पार्टी की सांसद और सुप्रीम कोर्ट की वकील मीनाक्षी लेखी के पहले
उपन्यास ‘न्यू देल्ही कांसिपिरेसी’ को लेकर है। उत्सुकता
इस बात को लेकर भी ज्यादा है कि ये क्राइम थ्रिलर एक पॉलिटिकल क्राइम थ्रिलर है
जिसके केंद्र में प्रधानमंत्री की हत्या है। पुस्तक के बारे में प्रकाशक से जितनी
जानकारी उपलब्ध हो पाई है उसके मुताबिक दिल्ली की सांसद वेदिका खन्ना के इर्द
गिर्द पूरी कहानी चलती है। दिल्ली में एक दिन एक बड़े वैज्ञानिक को गोली मार दी
जाती है और वो वैज्ञानिक मौत के पहले सांसद वेदिका को प्रधानमंत्री राघव मोहन की
हत्या की योजना के बारे में बता देता है। प्रधानमंत्री की हत्या की योजना को सुनकर
वेदिका के होश उड़ जाते हैं क्योंकि जो योजना बेहद संजीदगी से बनाई गई थी। अब उसके
दिमाग में इस योजना को नाकाम करने का कीड़ा कुलबुलाने लगा था। उसने प्रधानमंत्री
की हत्या की योजना के बारे में दिल्ली की रसूखदार पत्रकार रेया और साइबर विशेषज्ञ कार्तिक
से इस बारे में बात की। कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ती है तो हत्या की योजना के सूत्र
हांगकांग तक पहुंच जाते हैं। उसके बाद कहानी एक तिब्बती मॉनेस्ट्री तक पहुंचती है।
प्रधान मंत्री की हत्या की योजना का केंद्रबिंदु यही तिब्बती मॉनेस्ट्री है।
प्रधानमंत्री राघव मोहन की हत्या की योजना को बेनकाब करने के लिए वेदिका हर संभव
कोशिश करती है लेकिन ना तो लेखिका ने और ना ही प्रकाशक की तरफ से इस बात की
जानकारी दी गई है कि प्रधानमंत्री की हत्या की योजना नाकाम होती है या फिर उनकी
हत्या कर दी जाती है। लेखिका ने कहा कि ये जानने के लिए पाठकों को इंतजार करना
होगा कि सांसद वेदिका अपने दोस्तों के साथ मिलकर प्रधानमंत्री की हत्या की योजना
को नाकाम कर पाती है या नहीं। इस किताब के सह लेखक कृष्ण कुमार हैं।
भारत में क्राइम फिक्शन कम ही लिखे जाते हैं। हिंदी में वेद
प्रकाश शर्मा ने ‘वर्दी वाला गुंडा’ लिखा था जो राजीव गांधी की हत्या की साजिश पर केंद्रित था। वेदप्रकाश
शर्मा का वो उपन्यास जबरदस्त हिट रहा था। भारतीय प्रकाशन जगत में वेदप्रकाश शर्मा
का ये उपन्यास एक घटना की तरह था। एक अनुमान के मुताबिक इसकी लाखों प्रतियां बिकी
थीं। हिंदी के लेखक प्रभात रंजन का दावा है कि वेदप्रकाश शर्मा ने उनको एक
साक्षात्कार में कहा था वर्दी वाला गुंडा की आठ करोड़ प्रतिया बिकी थीं। हो सकता
है कि ये आंकड़ा अतिरंजित हो लेकिन उसकी लोकप्रियता में कोई संदह नहीं है। पिछले
साल सीमा गोस्वामी का उपन्यास रेस कोर्स रोड छपकर आया था। पर ये राजनीतिक साजिशों
पर था। प्रधानमंत्री की हत्या के बाद की घटनाओं पर केंद्रित था लेकिन इसमें भी ये
सवाल बार बार उठता है कि प्रधानमंत्री की हत्या किसने की थी। नई दिल्ली की सांसद
मीनाक्षी लेखी के उपन्यास में भी प्रधानमंत्री की हत्या की बात आती है। उत्सकुकता
के इस माहौल में ये देखना दिलचस्प होगा कि पाठकों को मीनाक्षी का पहला प्रयास
कितना भाता है।
अपने क्राइम थ्रिलर न्यू देल्ही कांसिपिरेसी को लेकर नई दिल्ली की
सांसद मीनक्षी लेखी इन दिनों काफी चर्चा में हैं। अपने इस क्राइम थ्रिलर के प्लॉट,
उसको लिखने की योजना आदि को लेकर उन्होंने मुझसे बात की ।
प्रश्न- आपको क्राइम थ्रिलर लिखने की बात दिमाग में कैसे आई?
मीनाक्षी- जब आप इस कृति को पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि इसमें
सिर्फ क्राइम ही नहीं है, उससे आगे जाकर भी कई सारी बातें हैं। आपको मालूम है कि
मैं वकील भी हूं और कई सारे क्रमिनिल केस किए हैं। वकालत में कई तरह के क्लू
ढूंढने पड़ते हैं, इंवेस्टिगेशन देखने पड़ते हैं। कई व्हाइट कॉलर क्राइम भी होते
हैं, उसको भी हमें देखना होता है। ये सब अवचेनन मन में चल ही रहा था। आप जब इस
किताब को पढ़ेंगे तो इसमें आपको क्राइम के अलावा इंवेस्टीगेशन और धर्म का एंगल भी
मिलेगा।
प्रश्न- आप कब से इसको लिख रही हैं।
मीनाक्षी- देखिए, इसको लिखने की बात तो दिमाग में तीन चार साल
पहले आ गई थी। पहले सोचा था कि नॉन फिक्शन लिखूंगी। इस पर काफी दिनों तक मंथन चलता
रहा। मित्रों से बातें भी हुई। फिर लगा कि अगर इसको नॉन फिक्शन की तरह लिखा जाएगा
तो वो बोरिंग हो जाएगा। ये ऐसा प्लॉट है जिसको मसालेदार बनाने के लिए फिक्शनलाइज
करना जरूरी लगा। फिर फिक्शन की तरह लिखा। इसको तो तीन चार महीने पहले ही प्रकाशित
हो जाना था लेकिन चुनाव और अन्य व्यस्तताओं की वजह से टल गया था।
प्रश्न- आपकी इस किताब की जो नायिका है वेदिका वो भी दिल्ली से
सांसद है, आप भी नई दिल्ली से सांसद हैं। क्या इस किताब में आपके कुछ व्यक्तिगत
अऩुभव भी हैं।
मीनाक्षी- बिल्कुल भी नहीं। मुझे तो एक काल्पनिक चरित्र गढ़ना
था, वो मैंने गढ़ा। मेरी इस किताब की जो नायिका है उसमें और मेरे व्यक्तिगत जीवन
में किसी तरह की कोई समानता नहीं है। वो एकदम ही कालपनिक है।
प्रश्न- क्या आप पहले से क्राइम फिक्शन पढ़ती रही हैं।
मीनाक्षी- एक उम्र में तो सब लोग क्राइम फिक्शन से लेकर हर तरह
की किताबें पढ़ते हैं। पर जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैंने वकालत के पेशे में भी
इतने तरह के क्राइम केस देखे, उसके विविध पहलुओं पर काम किया, अध्ययन किया उसने भी
मुझे इस पुस्तक को लिखने में मदद की।
1 comment:
उपन्यास तो रोचक लग रहा है लेकिन सवाल ये उठता है कि सह लेखक ने क्या किया है?? मुझे आजतक समझ नहीं आया कि जब सहलेखक होते हैं तो वो लेखक के साथ मिलकर क्या करते हैं?
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