पिछले
साल जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में लेखिका अलका पांडे से उनकी किताबों पर बात हो रही थी
। अलका पांडे ने अंग्रेजी में न्यूज एज कामसूत्र फॉर वूमन नाम से एक किताब लिखी थी
। उन्होंने जो अनुभव बताए वो बेहद चौंकाने वाले थे । अलका जी बताया कि उनकी किताब के
बाद उन्हें इरोटिक लेखक मान लिया गया । पार्टियों में उनसे अजीबोगरीब सवाल पूछे जाने
लगे । उनको सेक्स क्वीन तक कहा गया । उसी तरह से मैत्रेयी पुष्पा पर भी अपने उपन्यासों
में सेक्स प्रसंगों को लिखने के लिए लानत मसलामत की गई थी । उसके पहले मृदुला गर्ग
के उपन्यास चितकोबरा को लेकर भी शुद्धतावादियों और नैतिकतावादियों ने कई सवाल खड़े
किए थे । ऐसा नहीं है कि इस तरह के सवाल सिर्फ हिंदी लेखन में ही उठते रहे हैं । कुछ
महीनों पहले बयालिस साल की पूर्व टेलीविजन स्क्रिप्ट राइटर ई एल जेम्स की पहली किताब– फिफ्टी
शेड्स ऑफ ग्रे जब प्रकाशित हुई तो उसको लेकर इंग्लैंड और अमेरिका में भी जमकर बवाल
मचा । कुछ आलोचकों ने तो इसे मम्मी पॉर्न का खिताब दे डाला है तो कुछ इसको वुमन इरोटिका
लेखन के क्षेत्र में क्रांति की तरह देख रहे हैं। अमेरिका में इस बात को
लेकर बहस छिड़ी हुई है कि इस किताब को पुस्तकालयों के लिए खरीदा जाए या नहीं। लंदन
में कई पुरातनपंथी आलोचक इस किताब को पोर्नोग्राफी बताकर इसे खारिज करने पर उतारू हैं
लेकिन जिस तरह से इस किताब की बिक्री हो रही है उसने तमाम आलोचनाओं को ध्वस्त कर दिया
है। अमेरिका की एक टेलीविजन शो में तो एक एंकर ने इसे रैप फैंटेसी करार दे दिया। उधर
कई फेमिनिस्ट लेखक-लेखिका भी इस उपन्यास के पक्ष में उठ खड़े हुए हैं और उन्हें लगता
है कि इस उपन्यास ने महिलाओं के सेक्सुअल डिजायर पर अबतक पड़े पर्द को हटा दिया है,
लिहाजा उस पर्दे के पीछे लेखन करनेवालों को तकलीफ हो रही है। ई एल जेम्स के पक्ष में
खड़ी फेमिनिस्ट लेखिकाओं की दलील है कि इस किताब के बाद से महिलाओं को और खुलकर अपनी
सेक्सुअल डिजायर के बारे में बात करने का साहस मिलेगा। सेक्सुअल डिजायर पर लिखना या
फिर महिलाओं के इनर डिजायर पर लिखना हमेशा से दुधारी तलवार पर चलने जैसा होता है। जेम्स
की इस किताब के साथ भी यही हो रहा है। डिक्शनरी में पोर्नोग्राफी का जो मतलब है वह
यह है कि जिस लेखन को पढ़ने के बाद किसी की सेक्साकांक्षा में बढ़ोतरी ( मैटेरियल प्रोड्यूस्ड
टू स्टीमुलेट सेक्सुअल एक्साइटमेंट) होती है। लेकिन लेखिका इस बात
को लेकर लेखिका को सख्त आपत्ति है। उनका कहना है कि यह उपन्यास एक प्रेम कहानी है।
उनके मुताबिक सेक्स प्रेम का अनिवार्य अंग है और जो भी प्रेम करते हैं वो सेक्स भी
करते हैं। लेकिन यूरोप और अमेरिका में अबतक किताब और ई बुक के रूप में पचास लाख से
ज्यदा प्रतियों के बिक जाने के बाद तमाम आलोचनाएं बेमानी हो गई हैं। यूनिवर्सल एंड
फोकस ने उनसे पचास लाख डॉलर में उपन्यास पर फिल्म बनाने का अधिकार खरीदा है।
यह उपन्यास नायिका अनाशटेशिया और उसके प्रेमी ग्रे के इर्द गिर्द घूमता है। दोनों के बीच जिस तरह से प्यार की पींगे बढ़ रही होती है उससे यह तय हो जाता है कि ग्रे ही अन्ना का कौमार्य भंग करेगा। कौमार्य भंग करने के इस पल को दोनों विशेष बनाना चाहते हैं। वह अना के हाथ कुर्सी से हत्थे से बांधकर उसके साथ सेक्स करना चाहता है। जब अना को उसके BDSM (Bondage-discipline, dominance-submission, sadism-masochism) यानि कष्ट देकर सेक्स का आनंद लेने की प्रवृत्ति का पता चलता है तो पहले तो वो कुछ देर के लिए हिचकती है लेकिन फिर उसकी बात मान लेती है।
अमेरिका और यूरोप में इस बात को लेकर बहस चल रही है कि क्या ये सामान्य है। इस बात को लेकर भी बहस शुरू हो गई है कि क्या फीमेल इरोटिका या महिलाओं के इनर डिजायर पर इतनी खुलकर बात हो सकती है। आलोचक इस किताब को रूपर्ट कैंपबेल के स्नीरिंग लिप एंड हॉर्समैन थाईज, डायरीज ऑफ अनीस नैन, एरिका जांगस के फीयर ऑफ फ्लाइंग और नैंसी फ्राइड के उपन्यासों से आगे की कृति मान रहे हैं।
अभी हाल में ही सत्रह किताबें लिखकर मशहूर हो चुकी लेखिका और भारतीय अंग्रेजी महिला लेखन की स्टार राइटर शोभा डे की नई किताब ‘’सेठजी’’ छपकर आई है। शोभा डे के लेखन में सेक्स एक अनिवार्य तत्व की तरह आता है । तकरीबन तीन सौ पन्नों के इस उपन्यास में भी शोभा डे ने सेक्स के भरपूर प्रसंग डाले हैं। सेठजी – की महिला पात्र अमृता को जब उसका पुराना प्रेमी उत्तेजना के अंतरंग क्षणों में छोड़ता है तब जिस तरह से वो अपने आप को बाथरूम में रिलैक्स करती है, इसका वर्णन बेहद घटिया है । इस तरह के कई प्रसंग और अंतरंग क्षणों के वर्णन इस किताब में है। शोभा डे के इस तरह के लेखन के मद्देनजर ही ब्रिटेन के प्रख्यात साहित्यकार रेजीनॉल्ड मैसी ने अभी हाल ही में अपने भारत दौरे के दौरान कहा था कि- लोगों के भाग्य उदय होने के अलग-अलग कारण होते हैं। मशहूर लेखिका शोभा डे भारत में एक बड़ा नाम है लेकिन उनके मशहूर होने की प्रमुख वजह उनके द्वारा रचा जाने वाला अश्लील साहित्य है। वे एक खूबसूरत महिला हैं, स्टाइलिश हैं, लेकिन मैं उन्हें गंभीर लेखक नहीं मानता।‘’ इस तरह के विवाद और विमर्श अंग्रेजी में खूब होते हैं लेकिन भारत में जहां कालिदास दशकों पहले अभिज्ञान शाकुंतल लिख गए वहां इन मसलों पर खुलकर चर्चा नहीं होती है तो क्या इसे हम हिंदी का पिछड़ापन मानें ?
यह उपन्यास नायिका अनाशटेशिया और उसके प्रेमी ग्रे के इर्द गिर्द घूमता है। दोनों के बीच जिस तरह से प्यार की पींगे बढ़ रही होती है उससे यह तय हो जाता है कि ग्रे ही अन्ना का कौमार्य भंग करेगा। कौमार्य भंग करने के इस पल को दोनों विशेष बनाना चाहते हैं। वह अना के हाथ कुर्सी से हत्थे से बांधकर उसके साथ सेक्स करना चाहता है। जब अना को उसके BDSM (Bondage-discipline, dominance-submission, sadism-masochism) यानि कष्ट देकर सेक्स का आनंद लेने की प्रवृत्ति का पता चलता है तो पहले तो वो कुछ देर के लिए हिचकती है लेकिन फिर उसकी बात मान लेती है।
अमेरिका और यूरोप में इस बात को लेकर बहस चल रही है कि क्या ये सामान्य है। इस बात को लेकर भी बहस शुरू हो गई है कि क्या फीमेल इरोटिका या महिलाओं के इनर डिजायर पर इतनी खुलकर बात हो सकती है। आलोचक इस किताब को रूपर्ट कैंपबेल के स्नीरिंग लिप एंड हॉर्समैन थाईज, डायरीज ऑफ अनीस नैन, एरिका जांगस के फीयर ऑफ फ्लाइंग और नैंसी फ्राइड के उपन्यासों से आगे की कृति मान रहे हैं।
अभी हाल में ही सत्रह किताबें लिखकर मशहूर हो चुकी लेखिका और भारतीय अंग्रेजी महिला लेखन की स्टार राइटर शोभा डे की नई किताब ‘’सेठजी’’ छपकर आई है। शोभा डे के लेखन में सेक्स एक अनिवार्य तत्व की तरह आता है । तकरीबन तीन सौ पन्नों के इस उपन्यास में भी शोभा डे ने सेक्स के भरपूर प्रसंग डाले हैं। सेठजी – की महिला पात्र अमृता को जब उसका पुराना प्रेमी उत्तेजना के अंतरंग क्षणों में छोड़ता है तब जिस तरह से वो अपने आप को बाथरूम में रिलैक्स करती है, इसका वर्णन बेहद घटिया है । इस तरह के कई प्रसंग और अंतरंग क्षणों के वर्णन इस किताब में है। शोभा डे के इस तरह के लेखन के मद्देनजर ही ब्रिटेन के प्रख्यात साहित्यकार रेजीनॉल्ड मैसी ने अभी हाल ही में अपने भारत दौरे के दौरान कहा था कि- लोगों के भाग्य उदय होने के अलग-अलग कारण होते हैं। मशहूर लेखिका शोभा डे भारत में एक बड़ा नाम है लेकिन उनके मशहूर होने की प्रमुख वजह उनके द्वारा रचा जाने वाला अश्लील साहित्य है। वे एक खूबसूरत महिला हैं, स्टाइलिश हैं, लेकिन मैं उन्हें गंभीर लेखक नहीं मानता।‘’ इस तरह के विवाद और विमर्श अंग्रेजी में खूब होते हैं लेकिन भारत में जहां कालिदास दशकों पहले अभिज्ञान शाकुंतल लिख गए वहां इन मसलों पर खुलकर चर्चा नहीं होती है तो क्या इसे हम हिंदी का पिछड़ापन मानें ?
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