बिहार का शहर मुंगेर सिर्फ कर्णचौड़ा और मीर कासिम के किले के लिए ही मशहूर नहीं
है । यह शहर सिर्फ शक्ति पीठ चंडीस्थान के लिए भी मशहूर नहीं है । ऐतिहासिक और पौराणिक
महत्व होने के साथ साथ इस शहर का साहित्यक महत्व भी है । इस शहर ने भारतीय साहित्य
को कई मशहूर लेखक और साहित्य प्रेमी भी दिए हैं । इन साहित्यकारों में हिंदी के मशहूर
कवि आलोक धन्वा, जाबिर हुसैन से लेकर इस वक्त के मशहूर गजलकार अनिरुद्ध सिन्हा तक यहीं
के हैं । मुंगेर और इससे सटे शहर जमालपुर में साहित्य और साहित्कारों की एक लंबी परंपरा
रही है । हिंदी में फिल्म समीक्षा के लिए अब तक सिर्फ दो समीक्षकों को राष्ट्रीय फिल्म
पुरस्कार मिला है । एक ब्रजेश्वर मदान को और दूसरा जमालपुर के विनोद अनुपम को । इन
दोनों जुड़वां शहरों की फिजां में साहित्य है । अभी हाल ही में मुंगेर से ताल्लुक रखनेवाले
हिंदी के वरिष्ठ लेखक रॉबिन शॉ पुष्प का निधन हो गया । मेरे जानते रॉबिन शॉ पुष्प फादर
कामिल बुल्के के बाद बिहार में सक्रिय दूसरे ऐसे हिंदी साहित्यकार थे जो क्रिश्चियन
थे । बाबवजूद इसके इन दोनों ने हिंदी में विपुल लेखन किया और अपने योगदान से हिंदी
को समृद्ध भी किया। मेरा षहर जमालपुर है और मेरे पड़ोस के शहर के रहनेवाले रॉबिन शॉ
पुष्प से मैं एक या दो बार ही मिल पाया क्योंकि जब मैं अस्सी के दशक के आखिरी वर्षों
में अपनी पढ़ाईे के लिए मुंगेर आना जाना शुरू किया तबतक संभवत पुष्प जी पटना शिफ्ट
हो चुके थे । पुष्प जी से मेरी मुलाकात पटना में हुई । ठीक से याद नहीं है कि यह मुलाकात
कहां हुई थी लेकिन उनकी आत्मीयता की स्मृति मेरे मानस पटल पर अब भी अंकित है । उनके
कंधे तक बढ़े हुए धवल केश उनके व्यक्तित्व को सुदर्शन बनाते थे । तकरीबन बीस साल पहले
हुई इस मुलाकात की एक और अहम बात याद है कि पुष्प जी ने मुझसे मेरे लेखन के बारे में
पूछके बाद कहा था कि लेखन ऐसा होना चाहिए जिसे पाठकों का प्यार और विश्वास हासिल हो
सके । मुझे यह लगा था कि वो इस बात को लेकर थोड़े चिंतित ते कि हिंदी का लेखक पाठक
को अपेक्षित तवज्जो नहीं दे रहा है । उनकी चिंता जायज भी थी । कालांतर में हिंदी के
लेखकों से पाठकों का भरोसा कम हुआ । मुझे लगता है कि हिंदी के अभी के लेखकों के लिए
पुष्प जी की ये बात काफी है और उनको इसपर ध्यान देना चाहिए ।
रॉबिन शॉ पुष्प मूलत कथाकार थे और उन्होंने आधा दर्जन से ज्यादा उपन्यास लिखे और
तकरीबन उनके इतने ही कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । उन्होंने कुछ लघु फिल्मों
का निर्माण और लेखन भी किया । अभी हाल ही में उनके लेखन का समग्र भी प्रकाशित हुआ था
। पचास के दशक से रॉबिन शॉ पुष्प कथा लेखन में सक्रिय रहे और हिंदी के तमाम पत्र पत्रिकाओं
में छपते रहे । उनकी कई कहानियों में भारतीय ईसाई समाज की समस्याओं और उनके जीवन को
उभारती थी । फणीश्वर नाथ रेणु पर लिखा उनका संस्मरण रेणु-सोने की कलम वाला हिरामन बेहद
चर्चित रहा था और पाठकों ने उसे खूब सराहा था । बीस दिसंबर
उन्नीस सौ चैंतीस को बिहार के मुंगेर में जन्मे रॉबिन शॉ पुष्प ने पटना में 30 अक्तूबर
को अंतिम सांस ली । पुष्प जी अपने जीवन के अंतिम दिनों तक सक्रिय रहे । हिंदी के इस
वरिष्ठतम लेखक को सच्ची श्रद्धांजलि ये होगी जब लेखक लिखते वक्त पाठकों का भरोसा हासिल
करने की बात अपने जेहन में रखेंगे ।
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