उत्तर
प्रदेश विधानसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला तो एक सुर से
राजनीतिक विश्लेषक और विपक्षी दलों के कुछ नेताओं ने दो हजार चौबीस के लोकसभा चुनाव
के बारे में विचार करने की बात शुरू कर दी। कहने का मतलब ये कि अमूमन सबने यह मान लिया
था कि दो हजार उन्नीस का लोकसभा के चुनाव में बीजेपी को नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में
जीत तय है। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अबदुल्ला
ने तो उत्तर प्रदेश चुनाव के रुझानों को देखते ही दो हजार चौबीस के चुनावों की बात
शुरू कर दी थी। हाल ही दिल्ली नगर निगम के चुनावों में जिस तरह से बीजेपी को अपार जनसमर्थन
मिला उससे भी राजनीति के विश्लेषक ये आंकलन करने लगे हैं कि दो साल बाद होनेवाले आम
चुनाव में बीजेपी को केंद्र में सरकार बनाने से कोई रोक नहीं सकता है। नरेन्द्र मोदी
का नेतृत्व दिन पर दिन मजबूत होता जा रहा है । अगर हम देखें तो मोदी के नेतृत्व पर
देश की जनता का भरोसा पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से एकदम बढ़ गया है। लोगों
को लगने लगा है कि एक दमदार नेतृत्व के हाथों में देश की बागडोर है और जनता उस हाथ
को और मजबूत करती जा रही है। नरेन्द्र मोदी को अमित शाह के रूप में एक ऐसा पार्टी अध्यक्ष
मिला है जो छोटे से लेकर बड़े चुनाव तक को गंभीरता से लड़ते हैं । दिल्ली में एमसीडी
के चुनाव की भी हर बारीकी पर उनकी नजर थी। जब दिल्ली में स्थानीय निकाय के चुनावों
के नतीजे आ रहे थे उस वक्त अमित शाह नक्सलबाड़ी में बीजेपी को मजबूत करने में लगे थे।
भले
ही राजनीतिक विश्लेषक दो हजार उन्नीस के लोकसभा चुनाव को बीजेपी के लिए आसान मानते
हों लेकिन अमित शाह उसकी तैयारी में गंभीरता से जुटे हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि
उनका लक्ष्य दो हजार चौदह से बड़ी जीत का है। कुछ लोगों का मानना है कि अमित शाह तो
लगता है कि उत्तर भारत में उनको उतनी सीटें नहीं मिलेंगी लिहाजा वो उन इलाकों में पार्टी
का जनाधार बढ़ाने में लगे हैं जहां दो हजार चौदह में बीजेपी को कम सीटें मिली थीं।
अमित शाह ने उन एक सौ बीस लोकसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य बनाया है जहां बीजेपी को दो
हजार चौदह के लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। इन सीटों को जीतने की रणनीति
के तहत अमित शाह ने सितंबर तक पचानवे दिन के दौरा की कार्ययोजना बनाई है। इन पचानवे
दिनों में अमित शाह सभी छत्तीस राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का दौरा करेंगे। अमित
शाह ने राज्यों को श्रेणीबद्ध करके अपनी प्राथमिकताएं तय की हैं। किस राज्य में कितने
दिन बिताने हैं यह वहां की लोकसभा सीटों के लक्ष्य पर निर्भर करेगा। राज्यों को तीन
श्रेणी में बांटकर रणनीति तैयार की गई है । इसी रणनीति के तहत अमित शाह पश्चिम बंगाल,
ओडिशा, तेलांगाना, गुजरात, केरल आदि राज्यों का खुद दौरा कर जमीनी हकीकत को आंकने के
काम में जुट गए हैं। प्राथमिकता वाले राज्यों में अमित शाह तीन दिन का प्रवास करेंगे
जबकि उसके बाद वाले राज्यों में दिन और छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में
एक दिन का प्रवास करते हुए वहां कार्यकर्ताओं और लोगों से मिलकर पार्टी के जनाधार को
बढ़ाने की रणनीति को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है ।
एक तरफ
जहां बिखरा हुआ विपक्ष अभी मंथन आदि के दौर से गुजर रहा है, अलग अलग पार्टी के नेता
सोनिया गांधी से मिलकर महागठबंधन की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं वहीं बीजेपी का
नेतृत्व दो हजार उन्नीस के चुनाव की रणनीति बनाकर जमीन पर उतर चुका है। अमित शाह जिस
रणनीति पर काम कर रहे हैं उसके मुताबिक योजना यह है कि दो हजार उन्नीस के पहले देशभर
के हर बूथ पर पार्टी का एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता की तैनाती हो सके। बताया जा रहा है
कि छह सौ ऐसे कार्यकर्ताओं को तैयार किया जा चुका है जो दो हजार उन्नीस के लोकसभा चुनाव
में वोटिंग वाले दिन तक अपने अपने चिन्हित लोकसभा क्षेत्र में डटे रहेंगे। इसके अलावा
पांच लोकसभा सीटों पर एक शख्स को तैनात किया जा रहा है जो वोटिंग वाले दिन तक अपनी
पांचों लोकसभा सीटों पर नजर ही नहीं रखेगा बल्कि वहां पार्टी की रणनीति को सफलता दिलाने
की कोशिश करेगा। बीजेपी के आला नेतृत्व ने नरेन्द्र मोदी के मजबूत नेतृत्व को और प्रचारित
करने और जनता तक पहुंचाने की योजना बनाई है । इलसके तहत देशभर में वैसे युवाओं की तलाश
शुरू की जा चुकी है जो पार्टी का पक्ष मजबूती से जनता के बीच रख सकें। ऐसे प्रवक्ताओं
की तलाश की जा रही है जो राजनीतिक लफ्फाजी की बजाए तथ्यों, तर्कों और आंकड़ों के आधार
पर सरकार की उपलब्धियों को जनता के बीच पहुंचा सकें। पार्टी अध्यक्ष ने संगठन की चूलें
कसने भी शुरू कर दी हैं । अमित शाह ने अपने भरोसेमंद पार्टी महासचिव भूपेन्द्र यादव
को गुजरात चुनाव का प्रभारी बनाया है । राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है
कि संगठन और केंद्रीय मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल होनेवाला है । जिन राज्यों में विधानसभा
चुनाव होनेवाले हैं और जिन राज्यों पर दो हजार उन्नीस का फोकस है वहां से नए चेहरों
को मंत्रिमंडल और संगठन में जगह मिल सकती है । कुछ मंत्रियों को संगठन के काम में भी
लगाया जा सकता है। इस बीच एक और योजना पर काम चल रहा है वह है राज्यों के स्थानीय नायकों
की स्मृति में कार्यक्रमों का आयोजन ताकि जनता को भावनात्मक स्तर पर पार्टी से जोड़ा
जा सके। कहते भी हैं कि राजनीति ट्वेंटी फोर सेवन जॉब है और अमित शाह और नरेन्द्र मोदी
इसी तरह से राजनीति कर भी रहे हैं ।
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