दुनिया की बढ़ती आबादी धरती पर एक ऐसा बोझ है जिस पर समय रहते अगर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले कुछेक शतक के भीतर मानव जाति अपना वजूद ही खो देगी. दुनिया के बड़े देश यों तो इस बात से चिंतित हैं, पर यह चिंता आर्थिक संसाधनों की लूट-खसोट के चक्कर में विकासशील और पिछड़े देशों तक अभी उस रूप में नहीं पहुंची है, जैसे पहुंचनी चाहिए.तथ्य यह है कि इस समय धरती पर जितनी आबादी है,अगर उसकी फिर से उपयोग में आ सकने वाली प्राकृतिक जरूरतों, जैसे स्वच्छ हवा और पीने योग्य पानी, की उपलब्धता को देखें, तो हमें आज की धरती से 1.7 गुना बड़ी धरती की जरूरत होगी. धरती से हरियाली खत्म हो रही है, आधुनिक संसाधन के बहुतायत प्रयोग से पर्यावरणीय चक्र पटरी से उतर गया है. तूफान, अकाल,बारिश, बाढ़ और बवंडर... ऐसे में बड़े देश तो जनसंख्या मसले को केवल पर्यावरण संरक्षा से जोड़ कर देख रहे हैं. उन्होंने आपस में कुछ समझौते किए हैं और 'पृथ्वी सम्मेलन' की मार्फत कुछ वैज्ञानिक समूहों, नेताओं और स्वयंसेवी संस्थाओं को अपने से जोड़ा है, जबकि यह समस्या इतनी भयावह गति से आगे बढ़ रही है कि बिना जनभागीदारी और चतुर्दिक समाधान सोचे, इससे पार पाना मुश्किल है.
धरती पर मानवीय जरूरतों के लिए प्राकृतिक संसाधनों और उनके पुनर्प्रयोग के अध्ययन से जुड़ी 'ग्लोबल फूटप्रिंट नेटवर्क' नामक स्वयंसेवी संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में जनसंख्या की मांग और प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता का औसत दोगुने को पार कर चुका है, यानी भारत की तेज बढ़ती आबादी'दो भारत' के संसाधनों को हर साल खा जा रही है. पर कब तक? फिर यह मसला केवल पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के बंटवारे भर से तो जुड़ा नहीं है. समाज और राजनीति की भी अपनी भूमिका है. सबको शिक्षा, रोटी, कपड़ा, मकान, पीने योग्य पानी और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना आधुनिक लोकतंत्र में राज्य की बुनियादी जिम्मेदारी मानी जाती है. फिर सभ्य समाज या राष्ट्रों की अमीरी का पैमाना भी वहां के नागरिकों को मुहैया संसाधनों की उपलब्धता से ही आंका जाता है.ऐसे में बिना जनसंख्या पर काबू पाए हम किसी भी तरह के विकास पैमाने को छू सकेंगे, इसमें शक है. देश की बढ़ती आबादी पर नियंत्रण पाने के लिए जनजागरुकता अभियान में जुटी स्वयंसेवी संस्था 'टैक्सपेयर्स एसोसिएशन ऑफ भारत' इस बाबत राष्ट्रीय कानून बनाने की मांग कर रहा है. इस संस्था का मानना है कि भारत में जिस तेज गति से आबादी बढ़ रही है, वह अब जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने वाले 'राष्ट्रीय कानून' के बिना नहीं थमेगी.
संस्था ने इस विचार का समर्थन करने वालों को एकजुट करने के लिए 'भारत फॉर पॉपुलेशन लॉ' के नाम से एक ऑन लाइन अभियान भी चला रखा है. इस समूह का मानना है कि भारत की आबादी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि यह आर्थिक विकास के लाभों को बेकार कर रही है.यह संस्था आंकड़ों से अपनी बात साबित करती है. संस्था का दावा है कि आजादी के बाद देश की आबादी चार गुना बढ़ गई है. आजादी के समय की 36करोड़ आबादी वाला देश 132 करोड़ का हो गया है: अनुमान है कि भारत की जनसंख्या 1.2% की वार्षिक दर से बढ़ेगी और 2050 में 199 करोड़ पहुंच जाएगी. संस्था की भविष्यवाणी है कि देश की प्रजनन दर - प्रति महिला बच्चों की संख्या - 2050 में 2.45 हो जाएगी. अपनी आबादी में इस तरह की वृद्धि के साथ, दुनिया की आबादी में भारत का हिस्सा वर्तमान में 17% से बढ़कर 2050 में 20% हो जाएगा.
हालांकि कुछ जानकार संस्था के इस दावे से इत्तिफाक नहीं रखते पर भारत की दस साला जनगणना रिपोर्टों को देखने पर इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि कर दाता समूह की भविष्यवाणियां कई मामलों में सटीक साबित हुई हैं. यह सच है कि आजादी के बाद देश की आबादी चौगुनी हो गई है, पर तमाम दावों के बावजूद विकास दर में गिरावट आई है. आजादी के पहले दशक में जनसंख्या लगभग 21% बढ़ी, पर 1961 और 1971के बीच इसमें 24.8% की वृद्धि हुई.
इसकी तुलना में अगर विकास दर को देखें तो वह 1971 और 1981 के बीच भले ही समान रही हो, लेकिन उसके बाद हर दशक में उत्तरोत्तर गिरावट आई. 1981 और 1991 के बीच जहां आबादी में 23.87% की वृद्धि हुई, वहीं 1991-2001 के दौरान विकास दर घटकर 21.54% हो गई. पिछली जनगणना ने अनुमान लगाया कि2001 और 2011 के बीच आबादी 17.7% बढ़ गई. यह क्रम अभी भी जारी है.कहने के लिए आबादी की बढ़ोत्तरी से जुड़े कारकों पर काबू पा लिया गया है? पर क्या वाकई ऐसा है? शिक्षा, शिशु मृत्यु दर, प्रारंभिक विवाह के मोरचे पर भले ही सरकार ने बढ़त पा ली हो, पर आरक्षण और सब्सिडी की बैसाखी से सारे संतुलन गड़बड़ा रहे हैं. फिर हम तो संयुक्त अरब अमीरात की तरह अमीर भी नहीं, जिसने आने वाली ढाई सदी बाद की पानी की समस्या से उबरने के लिए 8,800 किलोमीटर दूर अंटाकर्टिक से आईसबर्ग मंगवाकर अपनी प्यास बुझाने की परियोजना पर अभी से काम शुरू कर दिया है.हम तो इस भी लायक नहीं कि भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग की हालिया डॉक्युमेंटरी में की गई भविष्यवाणी, कि अगर आबादी की बढ़ती रफ्तार को नहीं रोका गया तो आने वाले सौ सालों के भीतर मानव जाति को अपना वजूद बचाने के लिए किसी दूसरे ग्रह की तरफ रुख करना होगा, पर अमल कर सकें. वैसे भी मौजूदा तकनीक में ख्ररबों अरब डॉलर खर्च करने के बावजूद सबसे नजदीकी ग्रह मंगल पर भी बस कर वहां के वायुमंडल में सांस लेने में एक लाख साल लगेंगे. सिलिंडर के साथ वहां निवास का मौका हो सकता है, पर बेहद अमीरों के अलावा इसे कोई दूसरा अफोर्ड करना तो दूर, सोच भी नहीं सकेगा. जाहिर है, जनसंख्या नियंत्रण के कड़े कानून के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है.
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