अंग्रेजी के मशहूर लेखक जैफ्री ऑर्चर ने भारत के युवा लेखकों को
सलाह दी है कि वो सेक्स, हिंसा और भूत प्रेत के बारे में नहीं लिखें । उनकी सलाह
है कि खराब भाषा से भी भारत के युवा लेखकों को बचना चाहिए । उन्होंने साफ कहा है
कि भारतीय युवा लेखकों को उन्हीं विषयों पर लिखना चाहिए जिसको लेकर लेखक को खुद पर
पूरा यकीन हो यानि वो विषय को लेकर कन्विंस हों। जैफ्री ऑर्चर ने कहा कि लेखक को
अपना काम करना चाहिए और फिर उसको जनता पर छोड़ देना चाहिए कि वो उसको पसंद करती हैं
या नहीं । उन्होंने साफ तौर पर जोर देकर ये भी कहा कि जो जनता चाहती है उस हिसाब
से नहीं लिखना चाहिए बल्कि लेखक को अपने हिसाब से साहित्य सृजन करना चाहिए । जैफ्री
आर्चर कोई मामूली लेखक नहीं हैं बल्कि पूरी दुनिया में उनकी लेखन का डंका बजता है
। सत्तर साल की उम्र में भी वो खुद के लेखन को चुनौती देते रहे हैं और लगातार नए
नए विषयों पर लिखते रहे हैं। जब उपन्यास से मन भरने लगा तो नाटक लिखना शुरू कर
दिया फिर कहानी की ओर मुड़ गए। एक अनुमान के मुताबिक उनकी किताब केन एंड एबेल की
करीब साढे तीन करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं । यह साहित्य में एक घटना की तरह है । इस
किताब से पहले प्रकाशित जैफ्री ऑर्चर की दो किताबें भी बेस्ट सेलर रही हैं । दरअसल
अगर हम देखें तो जैफ्री ऑर्चर ने अपना करियर लेखक के तौर पर तब शुरू किया जब वो
लगभग दीवालिया हो गए थे और उनपर कर्ज का भारी बोझ आ गया था । जैफ्री ऑर्चर सौ मीटर
रेस के धावक रह चुके हैं, ब्रिटेन में सांसद रह चुके हैं लेकिन कारोबार में ठोकर
खाने के बाद लेखक बने । कर्ज उतारा फिर राजनीति में गए ।
आर्थिक रूप से घिरे जैफ्री ऑर्चर ने सबसे पहले नॉट अ पेनी मोर, नॉट
अ पेनी लेस लिखा जिसकी सोलह देशों में जमकर बिक्री हुई । उसके बाद तो उन्होंने
लेखन को ही अपना लिया और अपने बैलेंस शीट को लेखन की कमाई से ठीक किया। गूगल के
मुताबिक उनका तीसरा उपन्यास केन एंड एबेल विश्व साहित्य के इतिहास में ग्यारहवां
सबसे सफलतम उपन्यास है । लियो टॉलस्टॉय के वॉर एंड पीस से सिर्फ एक पायदान नीचे । जैफ्री
ऑर्चर का जीवन विवादों से भी भरा रहा है और जेल भी काट चुके हैं । लिहाजा उनका
अनभव संसार वैविध्यपूर्ण है । जैफ्री ऑर्चर के बारे में ये बताने का मकसद सिर्फ
इतना था कि उनकी सलाह को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए । उसको माना जाए या नहीं
इस बात पर कम से कम विमर्श तो होना ही चाहिए । इस लेख का मकसद भी यही है ।
जैफ्री ऑर्चर की भारत के युवा लेखकों की इस सलाह पर कई लोगों ने ये
सवाल उठाए कि उनको भारत के पाठकों की रुचि का और भारतीय लेखन का उनको क्या पता ।
अब ऐसे लोगों की अज्ञानता पर क्या कहा जाए । जैफ्री ऑर्चर का भारत से बहुत पुराना
और गहरा नाता रहा है और वो नियमित तौर पर भारत आते जाते रहे हैं और भारत के बारे
में उनकी एक राय भी है । भारतीय महिलाओं के बारे में जैफ्री ऑर्चर ने हाल ही में
अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि जब भी वो भारत आते हैं तो यहां की महिलाओं को
मजबूत होते देखकर खुश होते हैं । वो भारतीय महिलाओं के सशक्तीकरण की भावना का
सम्मान करते हुए कहते हैं कि नई पीढ़ी को रोकने की ताकत अब किसी में नहीं है । जैफ्री
ऑर्चर भारत के प्रकाशन जगत की सचाईयों से भी वाकिफ हैं और अपनी कई किताबों को सबसे
पहले भारत में ही लॉंच करते रहे हैं । उनका मानना है कि भारत में पाइरेसी एक बड़ी
समस्या है और अगर भारत में किताब बाद में लॉंच की जाती है तो लेखक और प्रकाशक
दोनों का नुकसान हो जाता है । लिहाजा वो इसकी काट के लिए सबसे पहले अपनी किताब
भारतीय बाजार में ही लॉंच करते हैं ।
अब हम आते हैं जैफ्री ऑर्चर की युवा लेखकों को दी जानेवाली सलाह पर
। उन्होंने सेक्स संबंध से लेकर भूत-प्रेत की कहानियां नहीं लिखने की सलाह दी है
लेकिन इन दिनों सेक्स संबंध युवा लेखकों के लेखन में लगभग अनिवार्य उपस्थिति की
तरह है । कई युवा लेखकों को लगता है कि उपन्यासों में बगैर यौन संबंधों के छौंक के
उसको सफल नहीं बनाया जा सकता है जबकि उनके सामने ही अमिष त्रिपाठी का उदाहरण है । जो
बगैर इस तरह के विषयों को छुए दुनिया के बड़े लेखकों की लीग में शामिल हो गए हैं ।
दरअसल कुछ युवा, कुछ युवापन की दहलीज पार कर चुके लेखक अपनी कहानियों में यौन
संबंधों का इस्तेमाल उसी तरह करते हैं जैसे कुछ फिल्मकार अपनी फिल्मों की सफलता के
लिए नायिकाओं से अंग प्रदर्शन करवाते हैं । उन्हें ये सफलता का शॉर्टकट फॉर्मूला
लगता है । फिल्मों में भी जहां कहानी की मांग हो वहां अंगप्रदर्शन से परहेज नहीं
करना चाहिए और साहित्य में भी जहां सिचुएशन की मांग हो वहां यौन संबंधों का वर्णन
होना चाहिए । साहित्य में यौन संबंधों के वर्णन को लेकर बहस पुरानी है लेकिन जिस
तरह से चेतन भगत जैसे लेखकों ने जुगुप्साजनक तरीके से चटखारे लेने के अंदाज में इस
तरह से प्रसंगों पर विस्तार से लिखा है उसको जैफ्री ऑर्चर की टिप्पणी के आइने में
देखे जाने की जरूरत है । चेतन के नए उपन्यास वन इंडियन गर्ल के कई पन्ने तो पोर्नोग्राफी
को मात देते हैं । हिंदी में जब मैत्रेयी पुष्पा का उपन्यास चाक या फिर अल्मा
कबूतरी प्रकाशित हुआ था तब भी उसमें वर्णित यौन संबंधों को लेकर साहित्य जगत में
अच्छा खासा विवाद हुआ था । साहित्य के शुद्धतावादियों ने तब मैत्रेयी पुष्पा के
लेखन को कटघरे में खड़ा किया था । बाद में भी इस तरह के प्रसंगों को लेकर कई
कृतियां आईं । कृष्णा अगिनहोत्री की आत्मकथा के दो खंड- लगता नहीं है दिल मेरा तथा
...और और औरत में इस तरह के प्रसंगों की भरमार है । हद तो बुजुर्ग लेखिका रमणिका
गुप्ता ने अपनी आत्मकथा में कर दी। उनकी आत्मकथा आपहुदरी में जिस तरह क
जुगुप्साजनक प्रसंगों की भरमार है वो उस किताब को साहित्य के अलग ही कोष्टक में रख
देता है। जैफ्री ऑर्चर की सलाह युवा लेखकों को लेकर है । इन वरिष्ठ लेखकों की
रचनाओं का उल्लेख इस वजह से किया गया ताकि लेखन की इस परंपरा को समझने में मदद
मिले । यौन संबंध मानव जीवन की अनिवार्यता है लेकिन उसको कितना और कैसे उभारा जाए
ये लेखक पर निर्भर करता है । अभी पिछले दिनों युवा लेखिका सोनी सिंह का संग्रह
क्लियोपेट्रा प्रकाशित हुआ था । उनकी कहानियों में इस तरह के कई प्रसंग बेवजह आते
हैं और जिस तरह के बिंबो का वो इस्तेमाल करती हैं वो हिंदी कहानी में कुछ जोड़ता
हो इसमे संदेह है । हलांकि राजेन्द्र यादव को सोनी सिंह की कहानियां अपने बेबाक
बयानी के बावजूद बौद्धिक खुराक मुहैया करवाने वाली लगती हैं । संभव है कि यादव जी
की तरह के कुछ पाठक साहित्य में हों । सोनी सिंह के अलावा भी कई लेखक लेखिका इस
तरह की कहानियां लिख रहे हैं । पर उनमें से ज्यादातर अपनी इस तरह की कहानियों से
पाठकों को झकझोरने के बाद अलग भावभूमि पर विचरण करने लगी हैं । जिसको उनके कोर्स करेक्शन की तरह देखा जा रहा है
।
जैफ्री ऑर्चर की इस सलाह के बाद एक बार फिर से साहित्य में इस बात
पर बहस होनी चाहिए कि साहित्यक शुचिता की सीमा कितनी हो । लेखक सिचुएशन की मांग पर
कहां तक जा सकता है या जा सकती है । यौन संबंधों पर लिखने के लिए दरअसल बहुत सधे
हुए दिमाग और लेखनी की जरूरत होती है । ये प्रसंग ऐसे होते हैं कि अगर लिखते वक्त
लेखक का संतुलन खो गया तो वो उसके लेखन को हल्का भी कर दे सकता है या पाठक उसको
रिजेक्ट भी कर सकते हैं । खुद लेखक को भी इस तरह के लेखन के पहले कन्विंस होना
चाहिए । पाठकों को कहानियों की ओर आकर्षित करने के लिए इस तरह के प्रसंग जबरदस्ती
नहीं ढूंसने चाहिए । जैफ्री ऑर्चर ने एक और बात कही कि बाजर की मांग के हिसाब से
लेखकों को नहीं लिखना चाहिए तो वो इस ओर इशारा करते है कि लेखक तो पाठकों की रुचि
का निर्माण करते हैं, रुचियों आधार पर साहित्य सृजन करनेवाले लेखक नहीं बल्कि
कारोबारी होते हैं । अब हिंदी के युवा लेखकों को तय करना है कि वो वैश्विक लेखक की
सलाह मानते हैं या फिर शॉर्टकट सफलता के लिए पुराने फॉर्मूले को अपनाते हैं ।
1 comment:
अपनी पहली पुस्तक ' हंस अकेला रोया ' के बाद मैं जेफ्री आर्चर की बातों से पूर्णतः सहमत हूँ। जबरदस्ती के प्रसंगों के कारण कई बार तो कई किताबों को बीच में ही छोड़ना पड़ता है। किताबें ऐसी हों जिसे आप अपने पूरे परिवार के साथ मिलकर भी पढ़ सकें।
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