निजी न्यूज चैनल एनडीटीवी पर एक दिन की पाबंदी के दौरान अभियव्क्ति
की आजादी को लेकर खूब हो हल्ला मचा । देशभर में पत्रकारों के कई छोटे-बड़े संगठनों
ने सरकार के इस फैसले को इमरजेंसी की याद दिलानेवाला करार दिया । करीब हफ्ते भर
चले विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार ने पाबंदी को स्थगित कर दी । इस पूरे घटनाक्रम के
दौरान एक बार फिर से अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर देशव्यापी गंभीर बहस की आवश्यकता
महसूस की गई । आज जिस तरह से कई न्यूज चैनलों पर खबरों के नाम पर फिक्शन को बढ़ावा
दिया जा रहा है या फिर कई बार तो अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता की आड़ में
अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जाता है उसपर यह बहस होनी चाहिए कि मीडिया की
अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा कहां तक है या उसकी कोई सीमा नहीं है । अभिव्यक्ति की
आजादी की सीमा तो संविधान के पहले संशोधन के वक्त बहुत साफ कर दी गई थी । आजादी के
बाद जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी अखंड भारत को लेकर आंदोलनरत थे तो उस वक्त उनके भाषणों
को पाकिस्तान युद्धोन्माद बढ़ानेवाला मानते हुए आपत्ति जता रहा था । पाकिस्तान की
शिकायत और नेहरू लियाकत समझौते के बाद तय हुआ कि अभियक्ति की आजादी की सीमा तय की
जाए और फिर संविधान का पहला संशोधन हुआ जिसमें इसकी सीमा तय कर दी गई । तब बहाना
बना था मद्रास से निकलनेवाली पत्रिका क्रासरोड और राष्ट्रीय संघ से जुड़ी पत्रिका
आर्गेनाइजर में छप रहे लेख । अब जमाना बहुत बदल चुका है । संविधान के संशोधन के
वक्त टीवी माध्यम या तो था नहीं या फिर उसका जनमानस पर उतना प्रभाव नहीं था । टेलीविजन
चैनलों के जोर के बाद अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर इस वक्त सचमुच एक देशव्यापी बहस
की जरूरत है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में मीडिया को अराजक होने का
लाइसेंस नहीं मिल जाता है । बहुधा यह देखा गया है कि इसकी आड़ में मशहूर शख्सियतों
पर कीचड़ उछालने का काम भी किया जाता है । हालिया उदाहरण बिग बॉस के शो का है जहां
क्रिकेटर युवराज सिंह के भाई जोरावर सिंह से अलग रह रहा पत्नी को शो में प्रतिभागी
बनाया गया और उसने जोरावर सिंह के खिलाफ बेहद संगीन इल्जाम लगाए, जबकि ये पूरा
मामला अदालत में विचाराधीन है । सवाल यह कि अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में क्या
मीडिया किसी की इज्जत उछालने के लिए मंच दे सकता है या आरोपों में मिर्च मसाला
लगाकर पेश करने की इजाजत दी जा सकती है। लोकप्रिय टीवी शो बिग बॉस में जिस तरह से मशहूर
क्रिकेटर युवराज सिंह के भाई जोरावर सिंह पर इल्जाम लगे और उनकी तरफ से ना तो कोई
पक्ष सामने आया उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं । शो में जब जोरावर सिंह की अलग रह
रही पत्नी आकांक्षा शर्मा का परिचय करवाया जा रहा था तो लग रहा था कि जैसे
उन्होंने कितने जुल्म सहे हैं और जोरावर कितने निर्दयी हैं । दोनों के बीच कई
अदालतों में मामला विचाराधीन है और सवाल यही कि अदालतों में चल रहे मामलों के एक
पक्ष को चैनल आरोप लगाने के लिए मंच मुहैया करवा सकता है । क्या ये अदालत की
कार्रवाई में दखल का मामला नहीं है ।
जोरावर सिंह उसी युवराज सिंह के भाई हैं जिन्होंने कैंसर जैसी
बीमारी को मात देते हुए देश को क्रिकेट का वर्ल्ड कप दिलाने में केंद्रीय भूमिका
निभाई थी । शो के आगाज के वक्त आकांक्षा ने सलमान खान के सामने मंच पर खड़े होकर जोरावर
की प्रतिष्ठा को तार तार कर दिया । जोरावर को इस तरह से पेश किया गया जैसे उसने एक
लड़की की जिंदगी बरबाद कर दी ।आकांक्षा के परिवारवाले भी नाटकीय ढंग से सामने लाए
गए और आकांक्षा को उसके कथित संघर्ष में साथ देने का वादा किया गया । इस पूरे मामले में अदालतों में चल रहे केस से
कुछ अलहदा तस्वीर सामने आती हैं । जब आकांक्षा शर्मा ने जोरावर सिंह पर आरोप लगाए
थे और काफी हो हल्ला मचाया था तब भी जोरावर ने आकांक्षा पर किसी तरह का इल्जाम
नहीं लगाया और एक मर्यादा में रहे थे । अगर सोशल मीडिया पर इस पूरे विवाद की
तफ्तीश करेंगे तो कई तरह के किस्से वहां मौजूद हैं जिसमें आकांक्षा के उपर भी
ड्रग्स आदि के संगीन इल्जाम हैं । लेकिन सोशल मीडिया पर जो अराजकता है वो
मुख्यधारा की मीडिया को नहीं दी सकती है और उनसे एक खास तरह की जिम्मेदारी की
अपेक्षा की जाती है । टेलीविजन के
कार्यक्रमों को बनाने वालों को या फिर उनके कर्ताधर्ताओं को ये लगता है कि दर्शक
संख्या बढ़ाने के लिए सेलिब्रिटी से जुड़े विवादों को हवा दी जा सकती है ।
दरअसल अगर भारतीय समाज के मानस का विश्लेषण करें तो लोगों को दूसरे
के परिवारों में क्या चल रहा है ये जानने की आकांक्षा होती है । इसी चाहत को
भुनाने में टीवी चैनल बहुधा लक्ष्मण रेखा पार कर जाते हैं । हलांकि शोज के दौरान
होनेवालों सर्वेक्षणों या वोटिंग से ये अवधारणा निगेट ही होती है । अगर इस तरह का
आंकलन सही होता तो बिग बॉस के दर्शक आकांक्षा शर्मा को बनाए रखते और जोरावर के
कथित जुल्म के किस्सों में उनकी रुचि होती तो दर्शक आकांक्षै को शो में बनाए रखते
ना कि दूसरे ही सप्ताह में चलता कर देते । सवाल फिर वही कि संविधान की कौन सी धारा
या केबल या टेलीविजन रेगुलेशन एक्ट का कौन सा सेक्शन इस तरह के कारनामों की इजातत
देता है । कोई महिला किसी पर भी उलजलूल आरोप लगाएगी और एक प्रतिष्ठित चैनल बगैर
दूसरे पक्ष को जाने उसका टेलीकास्ट कर देगी तो ये अव्यक्ति की कौन सी आजादी है ।
और अगर सरकार इसको आधार बनाकर किसी तरह का कोई नोटिस जारी कर देती है तो फिर देश
में इमरजेंसी जैसे हालात का रोना शुरू हो जाएगा । इसी शो में जिस तरह से एक कथित
बाबा और कई केस में नामजद ओम जी का मजाक बनाया जा रहा है उसपर भी आपत्ति होनी
चाहिए । एक विशेष धर्म के चोगे में मौजूद .ह शख्स जिस तरह की हरकतें कर रहा है
उससे धर्मगुरुओं के बारे में गलत संदेश जा रहा है । क्या दर्शकों की संख्या बढ़ाने
के लिए क्या किसी की छवि धूमिल की जा सकती है । क्या टी आर पी हासिल करने के लिए
किसी की इज्जत उछालने की इजाजत दी जा सकती है ।
अगर आपको याद हो तो अभिषेक बच्चन की शादी के वक्त भी एक महिला
सामने आ गई थी और उसने अभिषेक की पत्नी होने का दावा किया था । उसको टी वी चैनलों
पर घंटों तक दिखाया गया था । एक तरफ अभिषेक बच्चन के घर में शादी की शहनाई बज रही
थी, ऐश्वर्या के हाथों में मेंहदी रचाई जा रही थी तो दूसरी तरफ वो महिला न्यूज
चैनलों में लाइव होकर ये बता रही थी कि उसने कहां और कब अभिषेक बच्चन से कथित तौर
पर शादी की थी । उसके जो मन में आ रहा था वो आरोप अभिषेक बच्चन पर लगा रही थी और
बगैर किसी फिल्टर के वो एयर पर जा रहा था । इसी तरह का केस युवराज के भाई जोरावर
के मामले में भी दिखाई दिया कि जो भी आकांक्षा इल्जाम लगा रही थी वो एयर पर जा रहा
था, संभव है कि चैनल ने कुछ संपादन किया हो लेकिन दर्शकों को ऐसा प्रतीत नहीं हुआ
था । इस तरह के सैकड़ों उदाहरण हैं । टेनिस स्टार सानिया मिर्जा की शादी के वक्त
भी जमकर तमाशा हुआ था और न्यूज चैनलों ने इस तमाशे को जमकर भुनाया था । सानिया के
पति शोएब के निकाहनामे तक दिखाए गए थे, पता नहीं ये किस तरह की अभिव्यक्ति की
आजादी है । सानिया की शादी के वक्त तो उसके घऱ वाले काफी परेशान भी हुए थे लेकिन
अभिव्यक्ति की आजादी जैसे बड़े मुद्दे के सामने एक परिवार की परेशानी की क्या
बिसात ।
दरअसल न्यूज चैनलों और अन्य टीवी चैनलों के स्वनियमन का जो मैकेनिज्म
है वो बहुत कारगर नहीं है । उसको और मजबूत किए जाने की जरूरत है । मुंबई पर हुए आतंकी
हमले के वक्त न्यूज चैनलों के कवरजे को लेकर सवाल उठे थे जिसके बाद सरकार ने
आतंकवादी हमले के दौरान कवरेज को लेकर एक गाइडलाइन को बना दी थी लेकिन बहुधा
उत्साह और न्यूज चैनलों के सबसे पहले की आपाधापी में गड़बड़ी हो जाती है । इसी तरह
से अगर देखें तो हमारे चैनलों ने इस्लामिक स्टेट के बगदादी को कई बार मारा और फिर
कई बार जिंदा कर दिया । उससे जुड़ी वारदातों को इस तरह से मिर्च मसाला लगाकर पेश
किया जाता है जैसे लगता है कि कोई क्राइम थ्रिलर चल रहा हो । वीभत्स वीडियो को बार
बार दिखाया जाता है और कई बार तो उसके कारनामे उसको समर्थकों के बीच हीरो भी बना
देते हैं । अभिव्यक्ति की आजादी संविधान हमें देता है लेकिन वही संविधान कुछ
जिम्मेदारियां भी तय करता है । हम सबको उसका गंभीरता से पालन करना चाहिए वर्ना
सरकार को मौके मिलते रहेंगे ।
1 comment:
अभिव्यक्ति की आजादी का मीडिया घराने धड़ल्ले से दुरूपयोग करते हैं। एक सर्जिकल स्ट्राइक इनपर भी होना चाहिए।
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