कालेधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उठाए कदम के बाद पक्ष और
विपक्ष की तकरार के बीच उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की चर्चा भी हो रही थी । पहले
दबी जुबान से फिर खुलकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पर ये आरोप लगाए गए
कि नोट बंद करने के फैसले से उनका कालाधन बेकार हो गया और सूबे के चुनाव में इसका
जबरदस्त असर पड़ेगा । केंद्र सरकार के खिलाफ खुद मोर्चा संभाला नेताजी यानि मुलायम
सिंह यादव ने और मोदी पर जमकर हमला बोला । इस कोलाहल के बीच मुलायम सिंह यादव ने
ये ऐलान भी कर दिया कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी किसी भी दल से
गठबंधन नहीं करेगी । उन्होंने जोर देकर कहा कि समाजवादी पार्टी चुनाव से पहले किसी
पार्टी से हाथ नहीं मिलाएगी जिस भी दल को समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ना है
उसको अपनी पार्टी का विलय करना होगा । मुलायम सिंह यादव के इस बयान के बाद कई दलों
के नेता हतप्रभ हैं । समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की कोशिशों में लगे कांग्रेस
के रणनीतिकार प्रशांत किशोर को भी झटका लगा है । प्रशांत किशोर की शिवपाल यादव से
लेकर मुलायम सिंह यादव तक के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी थी । लालू यादव के दखल
के बाद यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी प्रशांत से लंबी मुलाकात की थी । इसके
पहले जेडीयू के नेता शरद यादव और राष्ट्रीय लोकदल के अजित सिंह की भी मुलायम सिंह
यादव से लंबी बात हुई थी । जेडीयू के केसी त्यागी भी इस मुहिम में लगे थे । माना
जा रहा था कि प्रशांत किशोर ने यूपी विधानसभा चुनाव के पहले बिहार की तरह
महागठबंधन का दांव फिर चला था लेकिन मुलायम सिंह यादव के बयान ने उसमें पलीता लगा
दिया है ।
अब मुलायम सिंह यादव के गठबंधन नहीं करने के बयान के कई राजनीतिक
निहितार्थ हैं । इस तरह का संदेश दिया जा रहा था कि शिवपाल यादव विधानसभा चुनाव के
पहले कई दलों के साथ गठबंधन के पक्ष में थे और उनकी इस चाहत को अमर सिंह दिल्ली
में बैठकर अंजाम तक पहुंचाने की रणनीति बना रहे थे । ये बात भी सामने आ रही थी कि अखिलेश
यादव किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन के खिलाफ हैं । चंद दिनों पहले उन्होंने
प्रशांत किशोर से मिलने से इंकार कर दिया था और काफी मान मनौव्वल के बाद और लालू
यादव की बात रखते हुए पीके से मुलाकात की थी । लखनऊ की सियासी गलियारे में जब ये
बात फैली की पीके-अखिलेश की मुलाकात में गठबंधन पर चर्चा हुई तो अखिलेश की
त्योरियां एक बार फिर चढ़ गईं । क्या मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव के दबाव में
गठबंधन नहीं करने का एलान कर शिवपाल यादव को कोई संदेश दिया है । यहां यह बताना
जरूरी है कि जब समाजवादी पार्टी का झगड़ा चरम पर था तब प्रोफेसर रामगोपाल यादव पर
यह आरोप लगा था कि उन्होंने बीजेपी के इशारे पर नेताजी को बिहार विधानसभा चुनाव के
पहले महागठबंधन में शामिल होने से मना करा दिया था । अब तो रामगोपाल पार्टी में
नहीं हैं तो सवाल यही कि नेताजी ने किस राजनीति के तहत शिवपाल को ये झटका दिया है
।
दरअसल यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर जेडीयू के
नेता ज्यादा उत्साहित नहीं थे । जेडीयू के नेताओं को लग रहा था कि मुलायम सिंह
यादव इस मसले पर गंभीर नहीं हैं । जानकारों का कहना है कि इस वजह से ही पांच नवंबर
को समाजवादी पार्टी की सिल्वर जुबली जलसे में नीतीश कुमार शामिल नहीं हुए थे ।
लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस मुहिम को हवा दे रहे थे और उनके
दबाव की वजह से जेडीयू बातचीत में शामिल हो रही थी लेकिन यहां भी इस मसले पर नीतीश
कुमार ने कभी भी मुलायम सिंह यादव से बातचीत नहीं की थी । लालू यादव भले ही इस
गठबंधन के लिए उत्साहित थे हलांकि ना तो लालू यादव का और ना ही नीतीश कुमार का कोई
ज्यादा असर उत्तर प्रदेश में है । अजित सिंह भले ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ
सीटों पर असर रखते हों । मुलायम सिंह यादव के बयान के बाद सबसे बुरी स्थिति में
कांग्रेस पहुंच गई है । उसके रणनीतिकार इस मसले पर लीड लेते हुए दिख रहे थे लिहाजा
सबसे ज्यादा किरकिरी उनकी ही हुई है । कांग्रेस के नेताओं को अब समझ नहीं आ रहा है
कि मुलायम सिंह यादव के गठबंधन नहीं करने के बयान पर किस तरह की प्रतिक्रिया दी
जाए । लिहाजा उनके नेता कन्नी काटते नजर आ रहे हैं ।
मुलायम सिंह यादव को नजदीक से जाननेवालों का दावा है कि नेताजी कभी
भी किसी भी मसले पर यू टर्न ले सकते हैं । पाठकों को याद होगा कि राष्ट्रपति के
चुनाव के वक्त वो ममता बनर्जी के साथ बैठक कर निकले थे और वहां लगभग तय हो गया था
कि वो ए पी जे अब्दुल कलाम को समर्थन देंगे लेकिन घर पहुंचते ही वो पलट गए थे । ऐसे
कई राजनीतिक यू टर्न मुलायम सिंह यादव के निर्णयों में देखने को मिल सकते हैं ।
हलांकि ये बात भी तय है कि यूपी में जिन भी दलों से समाजवादी पार्टी के गठबंधन की
बात चल रही थी वो लगभग बेअसर पार्टियां हैं । अगर गठबंधन होता भी तो फायदा इन दलों
को ही होता, समाजवादी पार्टी को कोई फायदा होता दिख नहीं रहा था । ये सब भांपते
हुए मुलायम ने अपने ऐलान से परिवार से लेकर नेताओं तक को एक संदेश दे दिया ।
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