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Tuesday, January 24, 2017

बजट का बेवजह विरोध

लोकतंत्र में विपक्ष की रचनात्मक भूमिका की परिकल्पना की गई थी । भारत के संविधान में विपक्ष को यह अधिकार दिया गया है कि वो सरकार के कामकाज पर नजर रखे और अगर सरकार निरंकुशता की ओर कदम बढ़ाए तो उसपर अंकुश लगाने के लिए वो विरोध आदि करे जिससे कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूती से कायम रह सके । इस अधिकार को देते वक्त विपक्ष से कुछ जिम्मेदारी की भी अपेक्षा की गई थी । संविधान में सारी चीजें लिखी नहीं होती हैं, कुछ परंपराएं भी कानून का आधार बनती हैं । सिर्फ विरोध के लिए विरोध या सरकार के हर कदम का विरोध करते रहने से विपक्ष की साख पर असर पड़ता है और धीरे-धीरे लोग इस तरह के कदमों से ऊबने लगते हैं । अभी जिस तरह से पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर विपक्ष ने केंद्र सरकार के आम बजट को रोकने के लिए कार्य किया वह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक गैरजरूरी कदम है । पहले तो विपक्ष ने चुनाव आयोग में अर्जी दी और मांग की विधानसभा चुनावों के मद्देनजर एक फरवरी को पेश होनेवाले केंद्रीय बजट को टाल दिया जाए । सरकार ने इसका विरोध किया और तर्क दिया कि इससे राज्यों के चुनाव पर असर नहीं पड़ेगा । इस बीच एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सरकार को बजट पेश करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की । बजट को लेकर एक तरफ चुनाव आयोग तो दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में मामला था । सोमवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की बजट पर रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया । जिरह के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह ने टिप्पणी की उससे भी जाहिर था कि ये मांग बेजा थी । सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षतावाली तीन जजों की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की और याचिकाकर्ता की मांग को कानून सम्मत नहीं पाया । सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक बजट से चुनाव की आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होता नहीं दिख रहा है । याचिकाकर्ता की दलील थी कि बजट की घोषणाओं से पांच राज्यों के चुनाव में मतदाताओं पर असर पड़ सकता है । याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो एक भी ऐसा उदाहरण पेश करें जिससे ये साबित हो कि केंद्रीय बजट से मतदाताओं पर प्रभाव पड़ता है या वोटरों को रिझाया जा सकता है । कोर्ट ने तो याचिकाकर्ता से यहां तक पूछा कि वो पिछले बजट से एक उदाहरण निकालकर ये बताएं कि वो राज्यों के मतदाताओं पर प्रभाव डाल सकते हैं । जब याचिकाकर्ता कोई ठोस दलील पेश नहीं कर पाए तो कोर्ट ने टिप्पणी कि इस देश में सालों भर चुनाव चलते रहते हैं और अगर राज्यों के चुनाव को आधार मान लिया जाए तो फिर तो केंद्र सरकार कभी बजट पेश ही नहीं कर पाएगी । बजट पेश करने से रोकने की याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि वो केंद्र सरकार के एक फरवरी को बजट पेश करने के फैसले में दखल नहीं डालेंगे । कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद यह साफ हो गया था कि अब चुनाव आयोग भी बजट रोकने के बारे में कोई फैसला शायद ही दे । अब अगर विपक्ष सचमुच संजीदा है तो उसको प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आमचुनाव और विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने के प्रस्ताव पर विचार करना चाहिए और इसपर अपना स्पष्ट मत प्रकट करना चाहिए । अगर दोनों चुनाव साथ हो जाएं तो इस तरह के मामलों से भी छुटकारा मिल जाएगा ।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सोमवार को ही देर शाम चुनाव आयोग ने भी विपक्ष की बजट रोकने की मांग को ठुकरा दिया । चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार को दो शर्तों के साथ एक फरवरी को बजट पेश करने का रास्ता साफ कर दिया । चुनाव आयोग ने कहा कि वित्त मंत्री अपने बजट भाषण में उत्तर प्रदेश, गोवा, पंजाब, उत्तराखंड और मणिपुर के लिए अलग से कोई विशेष ऐलान नहीं करें । दूसरी शर्त ये रखी गई है कि वित्त मंत्री अपने बजट भाषण में अलग से चुनाव वाले पांच राज्यों में केंद्र सरकार की स्कीमों की उपलब्धियों का बखान ना करें । इसके अलावा चुनाव आयोग ने चुनाव वाले राज्यों में पूर्ण हजट की बजाए जरूरत पड़ने पर लेखानुदान पेश और पास करने की इजाजत दे दी । दरअसल जनवरी के पहले हफ्ते में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की अगुवाई में चुनाव आयोग से मांग की थी कि वो आदर्श चुनाव संहिता को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को एक फरवरी को बजट पेश नहीं करने का आदेश दे । कांग्रेस ने यह आशंका जताई थी कि विधानसभा चुनाव के चंद दिनों पहले पेश किए जानेवाले बजट में केंद्र सरकार वोटरों को लुभाने के लिए कई तरह की घोषणाएं कर सकती हैं । कांग्रेस के नेताओं ने विरोध करते वक्त संविधान को भी नजरअंदाज किया ।  हमारे देश के संविधान में समवर्ती सूची में राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारों के बारे में साफ तौर पर दिशा निर्देश दिए गए हैं । वहां इसके बारे में विस्तार से चर्चा है । विपक्ष को यह समझना चाहिए कि केंद्र का बजट पूरे देश के लिए होता है ना कि किसी राज्य विशेष के लिए । इस बात को सुप्रीम कोर्ट ने समझा और उसी हिसाब से अपना फैसला सुनाया ।   

2 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति की लिंक 26-01-2017को चर्चा मंच पर चर्चा - 2585 में दिया जाएगा
धन्यवाद

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’दलबदल ज़िन्दाबाद - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...