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Monday, January 30, 2017

अपाराधियों का हाथ, मायावती के साथ

किसी जमाने में यूपी में बहुजन समाज पार्टी का नारा गूंजता था- चढ़ गुडों की छाती पर बटन दबेगा हाथी पर । वही बीएसपी अब अपने इस नारे को भूल गई है । बीएसपी ने हाल ही में जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को अपनी पार्टी में परिवार समेत शामिल कर अपने इस नारे को ना केवल भुला दिया बल्कि मायावती ने अपने शासनकाल के दौरान बेहतर कानून व्यवस्था की अतीतजीविता को भी धूमिल कर दिया है । इस विधानसभा चुनाव के दौरान लोग यह कहते थे कि समाजवादियों के राज में अपराधी बेखौफ हो जाते हैं और बीएसपी के शासनकाल के दौरान वो दुबक जाते हैं । मायावती के राज में भ्रष्टाचार को लोग इसी बिनाह पर बर्दाश्त करते रहे हैं । मायावती ने ना केवल मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का विलय बीएसपी में किया बल्कि मुख्तार, उसके भाई और बेटे को भी पार्टी टिकट देकर इस बात को पुख्ता कर दिया कि अब अपराध और अपराधी से उनको परहेज नहीं है । उनके लिए सूबे की सत्ता महत्वपूर्ण है । गुंडा मुक्त प्रदेश का दावा करनेवाली मायावती ने जिस मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल करवाया है उसपर हत्या से लेकर कई संगीन जुर्म के मुकदमे दर्ज हैं । दो हजार पांच में बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोप में वो जेल में बंद हैं और इस हत्याकांड की सीबीआई जांच चल रही है ।
मायावती ने उसी मुख्तार को गले लगाया है जिसको उन्होंने दो बार पार्टी के बाहर का रास्ता दिखाया था । पहली बार 1997 में जब मुख्तार अंसारी पर विश्व हिंदू परिषद के कोषाध्यक्ष को अगवा करने का आरोप लगा था । इसके बाद फिर से उनको पार्टी में वापस लिया गया था और दो हजार दस में आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में पार्टी से निकाल बाहर किया गया था । अब एक बार फिर से उनको यह कहते हुए पार्टी में शामिल किया गया है कि वो भटक गए हैं और अब सुधरने की कोशिश कर रहे हैं । अपराधियों को सुधरने का मौका देने का ये तरीका लोगों को पच नहीं रहा है । दरअसल यह गुंडा से ज्यादा वोटबैंक की राजनीति है । माना जाता है कि मुख्तार अंसारी और उसके परिवार का बनारस, आजमगढ़ और मऊ इलाके के मुसलमान वोटरों पर प्रभाव है । उसके इस प्रभाव को भुनाने के चक्कर में ही मायावती ने मुख्तार अंसारी के दल का विलय बीएसपी में करवाया । यही सोच शिवपाल यादव की भी थी जब उन्होंने कौमी एकता दल का विलय चंद महीने पहले समाजवादी पार्टी में करवाया था । तब अखिलेश ने इसका तगड़ा विरोध किया था और माना जाता है कि चाचा-भतीजे के रिश्ते में दरार की बुनियाद वहीं से पड़ी थी । अखिलेश ने मुख्तार और उसके भाई को टिकट देने का भी विरोध किया था । अब मायावती को लगता है कि वो मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल कर पूर्वांचल के मुसलमानों के वोट हासिल कर लेगी । अगर चंद पलों के लिए यह मान भी लिया जाए कि मुख्तार का प्रभाव तीन जिलों के मुसलमान मतदाताओं पर है भी तो तीन जिलों के चंद वोटों की खातिर मायावती पूरे सूबे में अपनी अपराध और अपराधी विरोधी छवि को दांव पर लगाकर क्या हासिल कर लेगी ।
इस बार उत्तर प्रदेश में मायावती अपने सियासी जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रही हैं । अब से कुछ महीने पहले तक माना जाता था कि मायावती को ही यूपी की जनता शासन की कमान सौंपेंगी लेकिन बीजेपी ने जिस तरह से धीरे-धीरे जमीनी राजनीति करते हुए खुद को मजबूत किया उससे फिजां बदलती नजर आ रही है । उधर अखिलेश ने भी खुद की अपराध विरोधी छवि पेशकर समाजववादी पार्टी के खिलाफ लोगों का गुस्सा कम करने में सफलता हासिल की । कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में गठबंधन होने के बाद अब मुसलमान मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति बन सकती है । दरअसल पिछले कई सालों में अगर मुस्लिम बहुल इलाकों के वोटिंग पैटर्न का विश्लेषण करें तो यह पता चलता है कि वो उस पार्टी या उस उम्मीदवार को वोट करते हैं जो बीजेपी को हराने की क्षमता रखता है । इस बार शुरुआत में मुस्लिम वोटरों का रुझान बीएसपी की ओर था लेकिन जैसे जैसे अखिलेश को मजबूती मिलती दिखने लगी और परिवार का झगड़ा शांत होने लगा वैसे वैसे ये रुझान कम होने लगा । समाजवादी पार्टी के प्रचारतंत्र ने मुस्लिम मतदाताओं के बीच इस बात पर जोर देना प्रारंभ किया कि बीएसपी तो बीजेपी के साथ जा सकती है क्योंकि पूर्व में दोनों दल साथ मिलकर सरकार चला चुके हैं । समाजवादी पार्टी के इस सियासी दांव के जवाब में बीएसपी ने थोक के भाव में मुसलमान उम्मीदवारों को पार्टी का टिकट दिया । बीएसपी लगभग हर चुनाव में अपना नारा बदलती रहती है । तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार का नारा देनेवाली पार्टी ने नारा बदला और कहा हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश हैं । दो हजार सात में जब ब्राह्मणों का वोट मिल गया तो फिर चुनाव में नारा बदला और सर्वसमाज के सम्मान में बहनजी मैदान में । वोटों की खातिर बदलते स्टैंड को यूपी की जनता को समझना होगा और उसी हिसाब से मतदान करना होगा ।


2 comments:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’केन्द्रीय बजट का इतिहास - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

प्रतिभा सक्सेना said...

उस जनता की मति को क्या कहें जो ऐसे नेताओं को सिर चढ़ाती है !