गुरुवार की सुबह मुंबई के
मरीन ड्राइव पर सुबह टहलनेवालों का जमावड़ा लगा था तो किसी यह अंदाज नहीं था कि
दिन में जब धीरे-धीरे तापमान बढ़ेगा तो मायानगरी की सियासत का पारा भी उपर जाएगा ।
बेहद शांत समंदर इस बात का एहसास नहीं होने दे रहा था कि चढ़ते सूरज के साथ
मायानगरी मुंबई में कोई सियासी तूफान आनेवाला है जो तमाम कयासों को धवस्त कर देगा,
बौद्धिक जुगाली करनेवालों को और राजनीतिक चारा मिलेगा और हेतु-हेतु मदभूत वाली
चर्चा को पंख लगेंगे। सबकी जुबान पर एक ही सवाल था कि मुंबईं महानगरपालिका में
किसकी सरकार बनेगी । इस उत्सकुता की वजह यह भी थी कि पच्चीस साल बाद बीजेपी और
शिवसेना दोनों ने बीएमसी का चुनाव अलग अलग लड़ा था । एक तरफ सियासी उत्सकुकता का
वातावरण था तो वहीं मरीन ड्राइव पर ही देशभर के तमाम साहित्यकार, कलाकार और संगीत
से जुड़े लोगों का जमावड़ा होने लगा था । साहित्य, कला और संस्कृति के इस उत्सव लिट
ओ फेस्ट के तीसरे संस्कण को लेकर मुंबई में हलचल शुरू हो रही थी । सियासी कयासों
के बीच लि ओ फेस्ट की फेस्टिवल डायरेक्टर ने जब इसके शुरुआत का औपचारिक ऐलान किया
तो समारोह के दौरान भी कई लोग अपने मोबाइल पर बीएमसी के चुनाव नतीजे देख रहे थे
लेकिन जैसे जैसे सत्र शुरू हुए तो लोग साहित्य और कला की दुनिया में लौटने लगे । उद्घाटन
के बाद पहला बड़ा सत्र खोए वक्त की दास्तां को लेकर था जिसके पैनल में कथाकार,
संस्कृतिकर्मी, राजनीति विश्लेषकों ससे लेकर हिंदी के प्रकाशक भी मौजूद थे । यह
सत्र बहुत दिलचस्प रहा और इसमें लेखन की परंपरा, विरासत और नए विमर्शों पर खुलकर
चर्चा हुई । अरुण महेश्वरी, मीरा जौहरी, संदीप भूतोड़िया, गीताश्री, और अभय दूबे
ने खुलकर अपने विचार रखे । खोए वक्त की दास्तां की चर्चा अंतत: सृजनात्मकता के विमर्श पर हावी होने को लेकर हो गई । इसके
बाद कई और दिलचस्प सत्र हुए । एक और उल्लेखनीय सत्र रहा -बॉडी शेमिंग यानि महिलाओं
को अपने रंग रूप और उनके शरीर को लेकर समाज किस तरह का व्यवहार करता है । आत्मकथा
बनाम जीवनी वाला सत्र भी जीवंत रहा जिसमें किरण मनराल के साथ लता मंगेशकर पर बड़ी
किताब लिखनेवाले यतीन्द्र मिश्र, मोहम्मद रफी की जीवनी लिखनेवाली सुजाता देव और
दारा सिंह पर किताब लिखनेवाली सीमा सोनिक ने अपने विचार रखे लेकिन इसमें दिलचस्प
रहा वक्ताओं का अपने अनुभवों को बांटना । फिल्म लेखक आनंद नीलकंठम के साथ मिथक
लेखन पर स्मिता पारिख ने बेहद संजीदगी से बात की । इस सत्र में एक बात उभर कर आई
कि भारतीय समाज हर तरह के लेखन को लेकर कमोबेश उदार रहता है । छिटपुट घटनाओं को
छोड़कर लेखन के खिलाफ ज्यादा विरोध आदि नहीं होता है । यही भारतीय समाज की और
भारतीय पाठको की बहुलतावादी संस्कृति और हर तरह के विचारों का स्वागत करने की
प्रवृति को पुख्ता करती है । आनंद नीलकंठम ने भी माना कि हमारे मिथकों को लेकर,
हमारे पुराने ग्रंथों को लेकर पूर्व में लेखकों ने इतना लिखा है कि आगे के लेखकों
को उनमें से किसी ग्रंथ को उठाकर लेखन करने की छूट मिल जाती है । इस सत्र में यह
बात भी निकल कर आई कि अगर लेखक की मंशा किसी भी मिथकीय चरित्र को अपमानित करने की
ना हो तो पाठक भी उसको उसी परिप्रेक्ष्य में देखता है । इन दिनों तमाम तरह के लिटरेचर फेस्टिवल में मिथकों परर
अंग्रेजी लेखन को लेकर खासी चर्चा होती है । अलग अलग सत्रों में अलग अलग अंग्रेजी
लेखकों ने भारतीय पुराणों और धर्मग्रंथों में मिथकीय चरित्र को लेकर बेस्ट सेलर
लिखे जाने और उसकी वजहों पर सार्थक चर्चा यहां भी हुई । अश्विन सांघी ने माना कि
को वो मिथ और हिस्ट्री को मिलाकर मिस्ट्री की रचना करते हैं । उन्होंने भी माना कि
कई बार इतिहास और मिथक के बीच आवाजाही करते हुए उनको यथार्थ से मुठभेड़ करना पड़ता
है लेकिन अगर लेखकीय ईमानदारी होती है तो इस मुठभेड़ का स्वरूप विद्रूप नहीं होता
है ।
किसी शहर पर मुकम्मल किताब
हिंदी में कम लिखा गया है । इन दिनों शहरों को केंद्रित करके कुछ अच्छी किताबें आ
रही हैं जिनमें फैजाबाद और लखनऊ को केंद्र में रखकर दो किताबें शहरनामा फैजाबाद और
दूसरा लखनऊ प्रकाशित होकर पाठकों के द्वारा पंसद की जा रही है । नदीम हसनैन की
पुस्तक दूसरा लखनऊ के बहाने से लखनऊ और वहां की संस्कृति पर अनूप जलोटा, नदीम
हसनैन और अभय दूबे ने विमर्श किया । अनूप जलोटा ने लखनऊ के अपने दिनों को बेहद
शिद्दत से याद किया और बताया कि मोहब्बत के उस शहर में अब हजरतगंज में कंधों से
कंधे टकराते हुए इश्क की दास्तां कम लिखी जाती है लेकिन वहां प्यार कम नहीं हुआ है
। अनूप जलोटा ने उर्दू के यूपी में सिमटते जाने पर गहरी चिंता प्रकट की । उन्होंने
बेबाकी से कहा कि अगर यूपी में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है तो वो वहां
जाकर उर्दू को बढ़ावा देने के लिए काम करेंगे और आवश्यकता हुई तो वहां स्थायी रूप
से टिककर गालिब और मीर की यादों को जिंदा करेंगे । शाम को संगीत पर एक सत्र में गायक
अंकित तिवारी और अनूप जलोटा के साथ सौरभ दफ्तरी ने बेहद ही दिलचस्प बातचीत की । इस
सत्र में अंकित तिवारी और अनूप जलोटा के साथ सौरभ दफ्तरी ने भी अपनी गायकी से वहां
मौजूद श्रोताओं का मन मोह लिया। सौरभ दफ्तरी की संगीत की समझ चकित करनेवाली थी । एक
सत्र में कांग्रेस की पूर्व सांसद प्रिया दत्त ने अदिति महेश्वरी गोयल और प्रतिष्ठा सिंह से बात करते हुए ईमानदारी से
राजनीति सवालों के जवाब दिए । कांग्रेस में नेतृत्व की खोज के सवाल पर उन्होंने
माना कि उनकी पार्टी को आत्ममंथन की जरूरत है । प्रिया दत्त भले ही आत्मंथन की बात
करें पर इस वक्त कांग्रेस को इंट्रोस्पेक्शन की नहीं बल्कि खुद को रीइनवेंट करने
की कोशिश करनी चाहिए । यह मेला इस मायने में भी अनूठा है रहा कि इसमें किशोरों को साहित्यक
से जोड़ने की कोशिश की गई । आर्यमन ने एक हाइपर पैरेसेंट्स पर अपनी बात बेहतरीन
ठंग से कही ।
अपने देश में जिस तरह से लिटरेचर फेस्टिवल में सितारों का
जमावड़ा लगता है और फिल्म अभिनेता से लेकर स्टार लेखकों को जुटाया जाता है वैसे
में यह कल्पना करना थोड़ा मुश्किल है कि किसी लिटरेचर फेस्टिवल जैसे आयोजन में गांव
को भी केंद्र में रखा जाएगा । एक अनुमान के मुताबिक इस वक्त पूरे देश में
छोटे-बड़े करीब साढे तीन सौ लिटरेचर फेस्टिवल होते हैं और कमोबेश सभी एक जैसे ही
होते हैं । पिछले दो संस्करणों में लिट-ओ-फेस्ट
भी उसी राह पर चलता नजर आ रहा था लेकिन तीसरे संस्करण के पहले उसने अपनी नई राह
बनाई । अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझते हुए लिट-ओ-फेस्ट ने
साहित्य, कला और संगीत को गांवों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया । मुंबई के पास के
शाहपुरा जिले के दहीगांव को लिट ओ फेस्ट ने गोद लिया है । लिट ओ फेस्ट इस गांव में
शिक्षा को बढ़ावा देने, कौशल विकास, स्वच्छता अभियान आदि के बारे में वहां के
लोगों को जागरूक बना रही है । लिट ओ फेस्ट की फेस्टिवल डायरेक्टर स्मिता पारिख के
मुताबिक लिटरेचर के साथ-साथ इन लोगों ने लिटरेसी की भी अपना एक अलग महत्व है । इतना
खूबसूरत साहित्य सृजन हुआ है उसके पाठक बनाना भी फर्ज हैं । अपनी इसी जिम्मेदारी
को समझते हुए लिट ओ फेस्ट ने महानगर के पास के गांव में पाठक तैयार करने का बीड़ा
उठाया है । इस योजना को पंख लगाने के लिए दहीगांव में एक पुस्तकालय की स्थापना की
जा रही है । लिट ओ फेस्ट से जुड़े प्रकाशकों ने इस पुस्तकालय के लिए किताबें देने
का एलान भी किया ।
दो साल पहले मुंबई के मशहूर जे जे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स से जो सफर शुरू हुआ था वो सेंट
जेवियर्स क़लेज से होते हुए ग्रांट मेडिकल कॉलेज जिमखाना तक पहुंचा । इस लिटरेचर फेस्टिवल की खास बात यह है कि इसके आयोजक नवोदित लेखकों
की पांडुलिपियां मंगवाते हैं और फिर उनकी जूरी उनमें से चुनाव कर उसको प्रकाशित भी
करवाते हैं । पिछले वर्ष चुनी गई पांडुलिपियों का प्रकाशन और विमोचन हुआ जिसमें
बिंदू चेरुन्गात का उपन्यास मेरी अनन्या भी है । मूलत: मलयाली बिंदू ने हिंदी में छोटा पर अच्छा उपन्यास लिखा है
। इस वर्ष चुनी गई पांडुलिपियों का एलान भी समारोहपूर्वक किया गया । इस साल भी
आमंत्रित पांडुलिपियों में से जूरी ने चुनाव कर लिया है और कश्मीर की कहानियों को
चुना गया है । अगर हम समग्रता में विचार करें तो मुंबई में आयोजजित होनेवाले इस
लिटरेचर फेस्टिवल ने तीन साल में ही अपनी एक अलग पहचान बनाई है । लिटरेचर फेस्टिवल
को गांवों से जोड़ने की अनूठी पहले करके इसके आयोजकों ने अन्य लिटरेचर फेस्टिवल्स
के सामने एक मिसाल तो पेश की है, चुनौती भी दी है । क्योंकि अगर शब्द के कद्रदान
बचेंगें तभी तो सृजन भी बचेगा और सृजन का उत्सव भी ।
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