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Saturday, February 18, 2017

हिंदी की ताकत का करार


बिहार की राजधानी पटना में आयोजित पुस्तक मेला हाल ही में संपन्न हुआ है । पुस्तक मेलों के लिहाज से देखें तो पटना पुस्तक मेला देश के बड़े पुस्तक मेलों में शुमार होता है । दिल्ली में आयोजित विश्व पुसतक मेला की ही तरह पटना में भी सांस्कृतिक कार्यक्रम और साहित्यक मसलों पर मंथन होता रहता है । पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित इस पुस्तक मेले को पूरब का सांस्कृतिक कुंभ कहना गलत नहीं होगा । ग्यारह दिन चलनेवाले इस पुस्तक मेले को लेकर देशभर के साहित्यकारों में उत्सुकता बनी रहती है । सहभागिता को लेकर भी और हाय हुसैन सिंड्रोम को लेकर भी पुस्तक मेला चर्चा में रहता है । इस बार तो इस मेले ने सोशल मीडिया पर भी अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज करवाई । इसके पक्ष और विपक्ष में कमेंट्स लिखे गए । कुछ ऊलजलूल आरोप भी लगे । बावजूद इसके यह आयोजन खूब सफल रहा और अपने तेइसवें संस्करण में भी पाठकों का जबरदस्त प्यार इसको मिला। इस बार पटना पुस्तक मेले में दलित साहित्य से लेकर लेखन से गायब होते रोमांस तक की चर्चा हुई । नरेन्द्र कोहली से लेकर स्थानीय लेखकों ऋषिकेश सुलभ और आलोक धन्वा की भागीदारी रही ।  बच्चों को लेकर दिनभर पुस्तक मेले में कार्यक्रम हुए लेकिन इस बार पुस्तक मेले में एक ऐसी साहित्यक घटना घटी जिसकी अनुगूंज काफी लंबे समय तक साहित्य जगत में सुनाई देनेवाली है ।
हिंदी में इस बात को लेकर हमेशा से रोना रोया जाता है कि लेखकों को पैसे नहीं मिलते । हिंदी की किताबों की कम बिक्री को लेकर लेखकों और प्रकाशकों के बीच चिंता देखी जा सकती है । इस बात पर कमोबेश हर गोष्ठी आदि में रेखांकित किया जाता है कि हिंदी में खरीदकर पढ़नेवाले पाठक नहीं हैं । बहुधा प्रकाशकों और लेखकों के बीच संबंध खराब होने की वजह किताबों की रॉयल्टी ही बनती रही है । लेकिन पटना में जो हुआ वो हिंदी में एरर नई मिसाल कायम करनेवाला है । बिहार के सबसे पुराने प्रकाशकों में से एक नोवेल्टी प्रकाशन ने अपने स्थापना के पचहत्तर वर्ष पूरे होने पर अब साहित्यक प्रकाशन के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला लिया है । ब्लूबर्ड नाम के नए प्रकाशन की शुरुआत के साथ ही नोवेल्टी प्लेटिनम सीरीज के तहत स्तरीय साहित्यक कृतियों के प्रकाशन की योजना बनाई है । संस्थान ने ऐलान किया कि थोक के भाव से साहित्यक कृतियों के प्रकाशन की बजाए वो साल में एक या दो ऐसी किताबों को छापेगा जिन्हें वृहत्तर पाठक वर्ग तक पहुंचाकर इस मिथक को तोड़ने का प्रयास होगा कि हिंदी में किताबें नहीं बिकती हैं । नोवेल्टी ने अपने इस नए उपक्रम नोवेल्टी प्लेटिनम के तहत पहली किताब चुनी है हिंदी के कथाकार, मीडिया विशेषज्ञ और संस्कृतिकर्मी रत्नेश्वर कुमार सिंह की । उनके उपन्यास रेखना मेरी जान को इस सीरीज के तहत प्रकाशित करने का एलान करते हुए नोवेल्टी ने रत्नेश्वर के साथ एक करोड़ पचहत्तर लाख के अनुबंध की घोषणा भी की । यह किसी भी भारतीय प्रकाशक के लिए किसी एक लेखक को दी जानी वाली अबतक की सबसे बड़ी राशि है । अनुबंध के लिए साइनिंग अमांउट के तौर पर रत्नेश्वर को ढाई लाख का चेक मेले के दौरान हुए प्रेस कांफ्रेंस में सौंपा गया । प्रकाशक ने रेखना मेरी जान की दस लाख प्रतियां बेचने का लक्ष्य रखा है । नोवेल्टी के अमित झा का दावा है कि उन्हें हिंदी की ताकत का एहसास है और उसके हिसाब से ही उन्होंने रत्नेश्वर की किताब को बेचने की रणनीति बनाई है । तीन अप्रैल से इस किताब की ऑनलाइन बुकिंग शुरू हो रही है और पांच अप्रैल से पाठकों के लिए उपलब्ध हो जाएगी । किसी एक किताब के लिए इस तरह की रणनीति और महात्वाकांक्षी लक्ष्य हिंदी में तो कम से कम पहली बार देखने को मिल रहा है । तमाम आशंकाओं को दरकिनार करते हुए लेखक और प्रकाशक दोनों मिलकर इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जुटे हुए हैं । देशभर के हर शहर में इस उपन्यास को लेकर कार्यक्रम आदि करने की योजना है जिसमें लेखक की मौजूदगी होगी और वो अपने पाठकों से संवाद भी करेंगे ।

अभी कुछ सालों पहले ही अंग्रेजी के एक प्रकाशक ने शिवा त्रैयी पर उपन्यास लिखनेवाले अंग्रेजी के स्टार लेखक अमीष त्रिपाठी के साथ उनके आगामी उपन्यासों के लिए पांच करोड़ रुपए का करार किया था । उस करार में किताब, आडियो बुक और ई बुक्स का वैश्विक अधिकार भी शामिल था । अमिष के प्रकाशक ने उनकी किताबों की बिक्री को आधार बनाकर यह करार करने का दावा किया था । अमिष त्रिपाठी पहले से बेस्टसेलर रहे हैं और अंग्रेजी में किताबों का एक बड़ा बाजार पहले से रहा है । पर फिर भी अमिष त्रिपाठी के उस करार को लेकर बाद में कई विवादित बातें सामने आई थी । लेकिन हिंदी में एक किताब के लिए पौने दो करोड़ का करार परीकथा की तरह लगता है । हिंदी के लेखकों को इस करार पर यकीन करने में मुश्किल हो रही है । रत्नेश्वर का प्रतीक्षित उपन्यास ग्लोबल वार्मिंग को केंद्र में रखकर लिखा गया है । ग्लोबल वार्मिग जैसे बड़े विषय के बड़े कैनवास के बीच इस उपन्यास में एक बेहदद इंटेंस प्रेम कथा भी साथ साथ चलती है । ग्लोबल वार्मिंग जैसे गंभीर विषय के साथ प्रेम को जोड़कर कथा को आगे बढ़ानेवाले रत्नेशवर को उम्मीद है कि पाठकों को यह विषय बहुत पसंद आएगा । आत्मविश्वास से लबालब रत्नेश्वर कहते हैं कि जिस देश में करीब साठ करोड़ हिंदी भाषी हों वहां दस लाख किताबें बिकनी ही चाहिए और इसपर जो लोग सवाल खड़े कर रहे हैं उनको हिंदी की ताकत का एहसास नहीं है । उनको उम्मीद है कि रेखना मेरी जान के प्रकाशन के बाद एक बार फिर से हिंदी की ताकत स्थापित होगी । रत्नेश्वर पौने दो करोड़ रुपए के करार को लेकर उत्साहित तो थे लेकिन दिमाग सातवें आसमान पर नहीं है । एक उपन्यास के लिए पौने दो करोड़ का करार करने वाले पहले हिंदी लेखक बनकर रत्नेश्वर को अपनी जिम्मेदारी का एहसास है। वो कहते हैं कि इस करार के बाद उनसे हिंदी की ताकत को स्थापित करने की साथी लेखकों और पाठकों की अपेक्षा बहुत ज्यादा है । वो इस बात से पूरी तरह से मुतमईन हैं कि उनका उपन्यास हिंदी लेखन में एक कीर्तिमान स्थापित करेगा और उसकी प्रतिष्ठा उसको हासिल होगी । 

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